नए वायरस से कितना डरना चाहिए
भारत में भी ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस एक सामान्य वायरस है और देश के विभिन्न हिस्सों मेें एक फीसदी से 19 फीसदी तक इसके मामले आते रहे हैं…
राजीव दासगुप्ता, प्रोफेसर (कम्यूनिटी हेल्थ), जेएनयू
सोमवार दोपहर तक कर्नाटक के बेंगलुरु में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के दो और गुजरात में एक मामला सामने आने के बाद अचानक भारत में चिंता का माहौल बनने लगा है। एचएमपीवी के तीनों मामले बच्चों से जुड़े हैं, जिनमें से एक तीन महीने की बच्ची है, तो दूसरा आठ महीने का लड़का। तीसरा दो महीने का बच्चा है। तीनों फिलहाल स्थिर हैं, पर एचएमपीवी को लेकर खौफजदा तस्वीरें पेश करने वाले लोग इस वायरस को कोरोना से जोड़ने लगे हैं। उनका दावा है कि चीन में एचएमपीवी कहर बनकर टूटा है, इसलिए अपने यहां भी इसका विस्फोट हो सकता है। मगर क्या वे सच हैं?
एचएमपीवी कोई नया वायरस नहीं है। सबसे पहले साल 2001 में ही नीदरलैंड में इसका पता लगा था। जिन देशों में तुलनात्मक रूप से अधिक जांच या डायग्नोस्टिक लैब की व्यवस्था है, वहां बच्चों में सांस से जुड़ी न्यूमोनिया जैसी बीमारियों में एचएमपीवी संक्रमण का स्थान दूसरा रहा है। चीन में बेशक इन्फ्लूएंजा ए, माइकोप्लाज्मा न्यूमोनिया, कोविड-19 और अब एचएमपीवी जैसे संक्रमण दिखे हैं, लेकिन सर्दियों और वसंत के दौरान इस तरह के मामलों में वृद्धि कोई नई बात नहीं है। यही कारण है कि सोशल मीडिया में चीन की गंभीर स्थिति का दावा किया जा रहा है, लेकिन न तो चीन के अधिकारियों ने और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस तरह की किसी इमरजेंसी का एलान किया है। अपने देश में भी जो मामले सामने आए हैं, उसके लिए अस्पतालों में नियमित तौर पर की जा रही निगरानी का शुक्रिया अदा करना चाहिए। अब अपना स्वास्थ्य तंत्र भी काफी संजीदा हो गया है। वास्तव में, यह ‘ट्रिपलडेमिक्स’ का मौसम है, यानी वह परिस्थिति, जिसमें इन्फ्लूएंजा, सामान्य सर्दी की वजह से बनने वाले रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) और एचएमपीवी के मामले बढ़ते ही हैं। ये तीनों ही कमोबेश एक जैसे लक्षण वाले संक्रमण हैं, हालांकि आरएसवी और एचएमपीवी का परिवार एक ही है। एचएमपीवी में नाक बहने की शिकायत आती है और गले में खराश बना रहता है। यह हमारी सांस की नली के ऊपरी और निचले, दोनों हिस्से को संक्रमित करता है, इसलिए इसके मरीजों में खांसी और घरघराहट, दोनों दिखते हैं। पहली बार संक्रमित होने के बाद हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इससे लड़ने के लिए अमूमन तैयार हो जाता है, इसलिए बाद में इसका संक्रमण बहुत हल्का दिखता है। बहुत छोटे बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए इसका पहला संक्रमण गंभीर हो सकता है। सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों व कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले व्यक्तियों को भी विशेष सावधानी बरतने की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि, कोरोना की तरह आरटीपीसीआर टेस्ट से इसके संक्रमण का पता लगाया जा सकता है, पर अपने देश में बहुत आसानी से उपलब्ध होने के बावजूद आमतौर पर इसकी जांच नहीं कराई जाती।निचले श्वसन पथ के संक्रमित होने पर इसके लक्षण कहीं गंभीर हो सकते हैं और अगर ब्रोंकियोलाइटिस, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, अस्थमा, फेफड़़ों की पुरानी बीमारी और कान के संक्रमण का साथ मिला, तो मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है। फिलहाल ऐसी कोई एंटीवायरल दवा नहीं, जो खास इसी के लिए बनाई गई हो, पर इसके संक्रमण के ज्यादातर मामले अपने आप ठीक हो जाते हैं। गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट देकर और कॉर्टिकोस्टेरॉइड से इलाज किया जाता है। इसमें मृत्यु दर काफी कम है और इसका खतरा तभी बढ़ता है, जब कैंसर, प्रत्यारोपण, कोविड-19 या गंभीर इन्फ्लूएंजा वाले मरीजों में एचएमपीवी का संक्रमण होता है।
बहरहाल, सांस से जुडे़ अन्य संक्रमणों की तरह इसका संक्रमण भी मरीज के सीधे संपर्क में आने और वायरस से संक्रमित वस्तु को छूने आदि से होता है। इसी कारण संक्रमण से बचने के लिए खांसने, छींकने, हाथ मिलाने आदि में सावधानी बरतने, शारीरिक संपर्क से बचने और फोन, दरवाजे के हैंडल, कीबोर्ड, खिलौने आदि न छूने की सलाह दी जाती है। साबुन और पानी से बार-बार हाथ धोना, अल्कोहल वाले सैनिटाइजर का प्रयोग, खांसते या छींकते समय नाक व मुंह को नंगे हाथ के बजाय कोहनी से ढकना और चेहरे, आंखों, नाक व मुंह को छूने से बचना आदि बुनियादी बातें हैं, जिनका हमें ख्याल रखना चाहिए। इतना ही नहीं, जिन लोगों में संक्रमण के लक्षण दिखें, उनको घर पर ही रहना चाहिए। भीड़भाड़ में जाने पर अनिवार्य रूप से मास्क लगाना चाहिए।
अच्छी बात है कि अपने देश में पहले से ही आईएलआई जैसी इन्फ्लूएंजा सरीखी बीमारियां या सांस की गंभीर बीमारियों (एसएआरआई) के एकीकृत निगरानी की व्यवस्था रही है। इसे कहीं अधिक गहन बनाने की आवश्यकता है। एकीकृत रोग निगरानी परियोजना (आईडीएसपी) की जिला व राज्य इकाइयों को भी विशेषकर छोटे बच्चों, बुजुर्गों और सह-रुग्णता वाले मरीजों की खास निगरानी करनी होगी। इसके आंकड़ों को लगातार ‘अपडेट’ करना होगा और निजी अस्पतालों पर भी निगरानी बढ़ानी होगी।
हमें यह भी समझना होगा कि चीन में रोग नियंत्रण व रोकथाम केंद्र- सीडीसी द्वारा दिसंबर के आखिरी सप्ताह तक दर्ज आंकड़ों से पता चलता है कि वहां इस मौसम में फ्लू जैसी कई बीमारियों का फैलना सामान्य है। रुझान यही बताते हैं कि इन्फ्लूएंजा के तमाम मामलों में जिन 30.2 प्रतिशत लोगों में आईएलआई या एसएआरआई की पुष्टि की गई, उनमें से 17.7 प्रतिशत लोग अस्पताल में भर्ती हुए। जबकि, 6.2 प्रतिशत एचएमपीवी संक्रमितों में से 5.4 प्रतिशत ही अस्पतालों में भर्ती के लिए आए।
रही बात अपने देश की, तो यहां आमतौर पर इसकी जांच नहीं की जाती। अपने यहां भी यह एक सामान्य वायरस है और देश के विभिन्न हिस्सों में एक फीसदी से 19 फीसदी तक इसके मामले आते रहे हैं। बेशक यह मुख्य रूप से समशीतोष्ण जलवायु में छोटे बच्चों की बीमारी है, लेकिन अब तक उपलब्ध भारत के आंकड़े बताते हैं कि इसके 44 फीसदी मामले 15-50 वर्ष की आयु वर्ग वाले लोगों में रहे हैं। इन्फ्लूएंजा, आरएसवी, डेंगू, लेप्टोस्पाइरा और स्क्रब टाइफस जैसे कई संक्रमणों के साथ भी इसका संक्रमण पाया गया है, जिसके कारण कभी-कभी यह गंभीर बन सकता है। जाहिर है, व्यापक जांच-पड़ताल के बाद ही पूरी तस्वीर साफ हो सकती है और सामान्य वायरस होने के कारण जांच में इसके अधिक मामले सामने आ सकते हैं। प्राथमिक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्तापूर्ण अस्पताल प्रबंधन से ही हम सुनिश्चित कर सकेंगे कि यह हमारे लिए चिंता की वजह न बने।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।