अंतरिक्ष में कामयाबी
- भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक और बड़ी कामयाबी दर्ज की है, जिसकी खूब सराहना हो रही है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को दो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में परस्पर जोड़कर एक सैटेलाइट बनाने का कारनामा कर दिखाया है…
भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक और बड़ी कामयाबी दर्ज की है, जिसकी खूब सराहना हो रही है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को दो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में परस्पर जोड़कर एक सैटेलाइट बनाने का कारनामा कर दिखाया है। इसे वैज्ञानिक भाषा में स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पाडेक्स) कहा जाता है और ऐसी क्षमता हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ने ही इस कारनामे को अंजाम दिया है। अत: इस बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि के वैश्विक महत्व को समझा जा सकता है। भारत ने अपनी क्षमता का स्वयं विकास किया है। अपने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत की यह कामयाबी दूसरे देशों को चकित और प्रेरित करेगी। अमेरिका और रूस की वैज्ञानिक तरक्की किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा चीन को पहले अमेरिका से और अब रूस से किस तरह तकनीकी सहयोग मिल रहा है, यह भी गोपनीय नहीं है। प्रगतिशील देश के रूप में देखें, तो भारत की यह कामयाबी अलग से रेखांकित की जा सकती है।
इस बड़ी कामयाबी की तारीफ सभी पक्ष या दलों के नेताओं ने की है, तो आश्चर्य नहीं। यह घोषणा करते हुए इसरो के उत्साह को भी समझा जा सकता है। इसरो ने एक्स पर किए गए अपने एक पोस्ट में कहा है, ‘भारत ने अंतरिक्ष इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया! गुड मॉर्निंग इंडिया...।’ ध्यान रहे, स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन 30 दिसंबर, 2024 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था और डॉकिंग या सैटेलाइट जोड़ने की मुख्य प्रक्रिया को 12 जनवरी को अंजाम दिया गया। भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल सैटेलाइट को जोड़कर एक बनाया, बल्कि उन्हें वापस अलग भी किया। यह तकनीक बहुत काम की है, क्योंकि भविष्य में भारत को अपना अंतरिक्ष केंद्र बनाना है। अंतरिक्ष केंद्र बनाते समय एक यंत्र को दूसरे से जोड़ने की कला में माहिर होना सबसे जरूरी है। अंतरिक्ष में कोई भी निर्माण एक झटके में नहीं पूरा होगा। मान लीजिए, अंतरिक्ष में कोई हल्का या छोटा ही घर बनाना हो, तो भी उस घर के टुकड़ों को बारी-बारी अंतरिक्ष में ले जाने की जरूरत पड़ेगी। अगर एक बड़े सैटेलाइट को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करना मुश्किल हो, तो छोटे-छोटे सैटेलाइट जोड़कर बड़ा सैटेलाइट तैयार किया जा सकता है।
इस तकनीक में जब भारत माहिर हो जाएगा, तब अंतरिक्ष में किसी भी पुराने पड़ते सैटेलाइट को फिर से रिचार्ज या दुरुस्त किया जा सकेगा। अंतरिक्ष विज्ञान में कामयाबी के लिए किसी देश का पावर ट्रांसफर में सक्षम होना भी जरूरी है। यह क्षमता बहुत उपयोगी है। क्या इस क्षमता के जरिये अंतरिक्ष कक्षा की सफाई भी की जा सकती है? हम अक्सर सुनते हैं कि अंतरिक्ष में बेकार की चीजें भी हवा में तैर रही हैं। अगर इस बारे में अमेरिका, रूस और चीन ज्यादा नहीं सोच रहे हैं, तो भारत को अपनी सीमित क्षमता के बावजूद अंतरिक्ष में सफाई अभियान के बारे में सोचना चाहिए। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो को ऐसे अच्छे काम करते रहने चाहिए, ताकि भारतीय विज्ञान की सकारात्मक चर्चा दुनिया के तमाम देशों में जारी रहे। गौर करने की बात है, अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में व्यवसाय विकसित हो रहा है, जिसमें भारत की भी हिस्सेदारी है और यह हिस्सेदारी तेजी से बढ़नी चाहिए। इसरो को ज्यादा पेशेवर या व्यावसायिक दृष्टि से काम करना चाहिए, ताकि भारत अंतरिक्ष विज्ञान में विकसित के साथ ही, आत्मनिर्भर भी बने।
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