सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
- क्या आपको डीके पांडा की याद है? वही डीके पांडा, जो 1971 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के पुलिस अधिकारी के तौर पर जाने जाते थे और अचानक उन्होंने खुद को राधा के रूप में पेश करना शुरू कर दिया था। वह सोलह शृंगार कर ऑफिस जाने लगे थे…
क्या आपको डीके पांडा की याद है? वही डीके पांडा, जो 1971 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के पुलिस अधिकारी के तौर पर जाने जाते थे और अचानक उन्होंने खुद को राधा के रूप में पेश करना शुरू कर दिया था। वह सोलह शृंगार कर ऑफिस जाने लगे थे और अपने नाम के आगे उन्होंने दूसरी राधा लिखना आरंभ कर दिया था। जब अपने मातहत और नजदीकी तक मजाक उड़ाने लगे, तो उन्होंने ‘वॉलंटरी रिटायरमेंट’ ले लिया था। पांडा अब प्रयागराज में रहते हैं। लोग उन्हें भूल गए थे, पर पिछले दिनों अचानक वह फिर चर्चा में आए, जब उन्होंने प्रयागराज के धूमनगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई कि कुछ लोग उन्हें ‘टेरर फंडिंग’ के मामले में फंसाने की धमकी देकर आठ लाख रुपये वसूलना चाहते हैं। उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि ऑनलाइन टे्रडिंग के जरिये उन्होंने 381 करोड़ रुपये की रकम अर्जित की थी। इस धनराशि को जब उन्होंने अपने बैंक खाते में ट्रांसफर कराना चाहा, तो साइप्रस से किसी शख्स ने टेलीफोन किया। खुद का परिचय आरव शर्मा के तौर पर देते हुए उसने कहा कि वह टैक्स के तौर पर आठ लाख रुपये जमा कराएं। शक होने पर जब पांडा ने थोड़ी पूछताछ की, तो कथित आरव शर्मा गाली-गलौज पर उतर आया। उसने धमकी दी कि आठ लाख रुपये अगर हमारे बताए खाते में ट्रांसफर न किए, तो तुम्हें ‘टेरर फंडिंग’ के मामले में फंसा दिया जाएगा। पुलिस मामले की जांच कर रही है, लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी की कोई खबर नहीं है। दूसरा मामला। श्रीमान वशिष्ठ बतौर बैंक प्रबंधक सेवानिवृत्त होकर अब नोएडा में रहते हैं। गई 21 अक्तूबर की दोपहर उनके पास एक फोन आता है। फोन करने वाला कहता है कि आपके नाम से ‘फेडेक्स’ से जो कूरियर भेजा गया था, उसमें 16 फर्जी पासपोर्ट, 58 एटीएम कार्ड और 140 ग्राम ड्रग्स मिली है। वह शख्स उनकी एक कथित सीबीआई अधिकारी से बात कराता है, जो खुद को अनिल यादव बताता है। अनिल यादव यह भी कहता है कि उसके साथ हेड कांस्टेबल सुनील हैं। ये जालसाज उन्हें तीन घंटे तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखते हैं। उसी दौरान उन्हें बैंक की शाखा जाने का ‘हुक्म’ मिलता है। वह फोन किए हुए पते पर पहुंचते हैं और आठ लाख रुपये ‘निर्दिष्ट’ खाते में जमा कर देते हैं। कभी वह यहीं प्रबंधक हुआ करते थे, मगर खौफ ने उनके मुंह पर ताला जड़ दिया था। बाद में जालसाज उन्हें ऑनलाइन रसीद भी मुहैया कराते हैं। रसीद पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शशिकांत दास के फर्जी हस्ताक्षर हैं। इससे पूर्व भी जो अभिलेख उन्हें ऑनलाइन सौंपे गए थे, वे तकनीकी ज्ञान न रखने वाले लोगों को वास्तविक प्रतीत होंगे। खुद को सीबीआई का ‘स्पेशल ऑफिसर’ बताने वाला तथाकथित अनिल यादव वशिष्ठ साहब को अपना जाली पहचान-पत्र भी भेजता है। यह सब कुछ इतना सुनियोजित और सुविचारित था कि लंबे समय तक बैंक में सेवा कर चुका वह परिपक्व प्रोफेशनल तक गच्चा खा ही गया। थोड़ी देर बाद जब वशिष्ठ सदमे से उबरते हैं, तो उन्हें अपने साथ हुई ठगी का एहसास होता है। वह स्थानीय पुलिस से संपर्क करते हैं। पुलिस तत्काल ठगों द्वारा बताए गए खाते को ‘सीज’ करती है, लेकिन तब तक उसमें सिर्फ 49 हजार रुपये रह बचे थे। सुबह इस खाते का ‘ओपनिंग बैलेंस’ महज 20 रुपये था। अगले आठ घंटों में देखते-देखते चार करोड़, 48 लाख, 43 हजार रुपये इसमें जमा हो गए। इस बड़ी धनराशि को दिन भर में लगातार यूपीआई और आरटीजीएस से विभिन्न खातों में ट्रांसफर किया जाता रहा। यह बैंक खाता ईश्वर फाइनेंस के नाम से मुंबई में खुला था। मतलब साफ है, जालसाजों की कई टीमें लोगों को फंसाने में जुटी थीं। तमाम निर्दोष उनके शिकार बने थे। ऊपर बताए गए दोनों मामले बेहद सनसनीखेज हैं। पहला एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से जुड़ा हुआ है, तो दूसरा तजुर्बेकार बैंक प्रबंधक से। ठगों ने उन्हें भी नहीं बख्शा। डिजिटल ठगी या अरेस्ट के तमाम चेहरे हैं। भारत में तो यह एक कुटीर उद्योग के तौर पर पनप चला है। पहले सिर्फ झारखंड का जामताड़ा इसके लिए बदनाम हुआ करता था। अब मथुरा, मुजफ्फरनगर, मेवात, अलवर और न जाने कहां-कहां नौजवान ‘इजी मनी’ की चाहत में इसमें जुट पडे़ हैं। प्रादेशिक पुलिस बल चाहकर भी ऐसे मामलों में बहुत कुछ नहीं कर पाते। उनके पास आवश्यक तकनीक और संसाधनों की कमी है। इसके अलावा वीआईपी ड्यूटी, कानून-व्यवस्था का संचालन एवं अपराधों की तफ्तीश के साथ कर्मचारियों की कमी रास्ते में रोड़ा बनती है। कोई आश्चर्य नहीं कि इन ठगों का धंधा दिन दोगुना रात-चौगुना बढ़ रहा है। भरोसा न हो, तो भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की इस प्रेस विज्ञप्ति पर नजर डाल देखिए। इस विज्ञप्ति के अनुसार, इस साल के शुरुआती तीन महीनों में ही ‘डिजिटल अरेस्ट’ के जरिये लोगों से 120.3 करोड़ रुपये वसूले गए। इसके अलावा टे्रडिंग के नाम पर 1,420.48 करोड़ रुपये, निवेश का झांसा देकर 222.58 करोड़ रुपये और डेटिंग घोटाले में 13.23 करोड़ रुपये का नुकसान आमजन को उठाना पड़ा है। साइबर सुरक्षा से जुड़ी कंपनी ‘जैडस्केलर’ के मुताबिक, साल 2023 में भारत में सात करोड़, 90 लाख से अधिक ‘फिशिंग हमले’ हुए। इनमें से 33 फीसदी की शिकार टेक्नोलॉजी कंपनियां बनीं। अमेरिका और ब्रिटेन के बाद ‘फिशिंग अटैक’ के मामले में भारत तीसरा सबसे बड़ा शिकार है। गौरतलब है कि संसार के सर्वाधिक संपन्न और सशक्त देश अमेरिका में सर्वाधिक यानी 56 फीसदी घटनाएं हुईं। इसके बाद ब्रिटेन का नंबर था। वहां समूचे संसार की 5.6 फीसद घटनाएं दर्ज की गईं। भारत 3.9 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। ‘डिजिटल अरेस्ट’ के प्रति जागरूकता की अहमियत कितनी है, आप इसका अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसमें दखल देना पड़ा। उन्होंने मन की बात के पिछले एपिसोड में देशवासियों से कहा कि कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर इस तरह की धमकी नहीं देती और न ही पैसों की मांग करती है। उन्होंने सूत्र दिया कि यदि कोई इस तरह का फोन करता है, तो ‘रुको, सोचो, एक्शन लो।’ मोदी ने देश को यह भी आश्वासन दिया कि इस तरह की घटनाओं से सरकार सख्ती से निपटेगी। ऐसे मामलों में सरकार तो जो करेगी, वह करेगी ही, परंतु सच यह है कि डिजिटल अरेस्ट अथवा फिशिंग अटैक से बचने के लिए हमें खुद जागरूक होना पडे़गा। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि ठग अक्सर सुरक्षा अथवा सरकारी विभागों के अधिकारी का वेश धारण कर शिकार पर निकलते हैं। हमें इन भेड़ियों के झुंड से सतर्क रहना होगा।
@shekharkahin
@shashishekhar.journalist
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