2024 में भारतीय विदेश नीति
- 2024 में वैश्विक परिदृश्य अत्यधिक जटिल और अस्थिर है। यूरोप और मध्य पूर्व में दो महत्वपूर्ण युद्धों ने न केवल भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ाया है अपितु वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और खाद्य सुरक्षा को भी अस्थिर कर दिया है। इन संकटों ने अन्य क्षेत्रों में चुनौतियों को बढ़ा दिया है…
हर्षवर्धन श्रृंगला
2024 में वैश्विक परिदृश्य अत्यधिक जटिल और अस्थिर है। यूरोप और मध्य पूर्व में दो महत्वपूर्ण युद्धों ने न केवल भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ाया है अपितु वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और खाद्य सुरक्षा को भी अस्थिर कर दिया है। इन संकटों ने अन्य क्षेत्रों में चुनौतियों को बढ़ा दिया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण चीन सागर और भारत समेत इसकी सीमाओं पर चीन की बढ़ती आक्रामकता ने क्षेत्र में अस्थिरता का वातावरण बना रखा है। म्यांमार के आंतरिक संकट का इस क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा है और बांग्लादेश को अत्यधिक राजनीतिक अशांति का सामना करना पड़ा है, जिसने बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और अल्पसंख्यक समुदायों पर इसके प्रभाव और क्षेत्रीय स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी है।
भू-आर्थिक चुनौतियों में वृद्धि हुई है। वैश्विक मुद्रास्फीति अधिक बनी हुई है, महामारी और यूक्रेन युद्ध से बाधित आपूर्ति श्रृंखलाएं अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुई हैं और कई विकासशील अर्थव्यवस्थाएं बढ़ते कर्ज से जूझ रही हैं। चीन की आर्थिक मंदी ने अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है, इसके व्यापक प्रभाव वैश्विक व्यापार में महसूस किए जा रहे हैं। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान का आर्थिक संकट गंभीर बना हुआ है, जबकि श्रीलंका और मालदीव हाल की वित्तीय उथल-पुथल से उबर रहे हैं, भारत उनकी स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इन परस्पर जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए कूटनीति और मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता होती है। भारत ने ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उल्लेखनीय कुशलता और दक्षता का प्रदर्शन किया है। इन अशांत स्थितियों के बीच भारत ने न केवल रणनीतिक दूरदर्शिता के साथ अपना रास्ता तय किया है, बल्कि विश्व मंच पर एक विश्वसनीय भागीदार और स्थिरता में सहायक शक्ति के रूप में भी उभरा है।
2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रिय कूटनीति ने भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाया है। अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में वह फरवरी में संयुक्त अरब अमीरात और कतर, मार्च में भूटान, जून में इटली, जुलाई में रूस और ऑस्ट्रिया, अगस्त में पोलैंड और यूक्रेन, सितंबर में ब्रुनेई और सिंगापुर, सितंबर में अमेरिका, अक्टूबर में लाओस, अक्टूबर में रूस, नवंबर में नाइजीरिया, ब्राजील और गुयाना तथा दिसंबर में कुवैत का दौरा कर चुके हैं। इन यात्राओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया है। भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाया है।
43 वर्षों में कुवैत की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने एक रणनीतिक साझेदारी और सहयोग की नई संभावनाएं उत्पन्न की है। वास्तव में, 2024 में कतर और कुवैत की अपनी यात्राओं से प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत के समीकरण को आपसी संदेह और झिझक से घनिष्ठ मित्रता और सहयोग में बदल दिया है जिससे व्यापार और निवेश, ऊर्जा और सुरक्षा और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा मिला है। प्रधानमंत्री मोदी को कुवैत के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से सम्मानित किया गया। यह उनका 20वां अंतरराष्ट्रीय सम्मान है।
प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन की यात्रा किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है। यह वैश्विक शांति और कूटनीति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। नाइजीरिया में, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बोला टीनूबू ने समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबले में संबंधों को मजबूत करने का संकल्प लिया। इससे अफ्रीका में भारत की रणनीतिक उपस्थिति बढ़ी है। ये रणनीतिक जुड़ाव और मान्यताएं ग्लोबल साउथ के देशों के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने, भारत की अंतर्राष्ट्रीय नीति को बढ़ाने, रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने और वैश्विक शांति और विकास में योगदान देने की प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
2024 में भारतीय कूटनीति का एक निर्णायक क्षण जून में प्रधानमंत्री मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की राजकीय यात्रा थी। इस महत्वपूर्ण यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। इसमें प्रधानमंत्री मोदी ने लोकतंत्र के साझा मूल्यों और दोनों देशों के बीच गहरी साझेदारी पर जोर दिया। इस यात्रा के परिणामस्वरूप उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के संयुक्त विकास के लिए एक नीति अपनाने और भारत में जेट इंजन बनाने के लिए जीई एयरोस्पेस के लिए 2 बिलियन डॉलर का ऐतिहासिक सौदा सहित महत्वपूर्ण समझौते हुए। ये समझौते भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने, भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और तकनीकी बढ़त को बढ़ाने के प्रयासों को दर्शाता है।
भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक अस्थिरता से बचाने के लिए अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। रियायती रूसी तेल खरीदना जारी रखते हुए भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल के आयात को बढ़ाया है। यह अब इसके कुल तेल आयात का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा है। इसमें पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अमेरिका अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में भी उभरा है। विशेष रूप से, भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में 100 बिलियन डॉलर जुटाना है ताकि भारत सतत ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर सके।
रक्षा और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर भारत पर निरंतर ध्यान देने के परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं। एक ऐसी व्यवस्था जो निर्माण, अनुसंधान एवं विकास, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अंतरिक्ष जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में क्षमताओं पर केंद्रित है। इस क्षेत्रों में बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय रुचि इस बात का प्रमाण है कि इन क्षेत्रों की ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान जा रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध पर कठोर रुख अपनाने के पश्चिमी दबावों के बावजूद भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए रणनीतिक स्वायत्तता की नीति को बनाए रखा है। इस व्यावहारिकता ने घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद की है, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं उच्च ऊर्जा लागत की समस्या से जूझ रही हैं। भारतीय उपभोक्ताओं को कम ऊर्जा लागत की लाभ देने के सरकार के फैसले को वैश्विक वित्तीय संस्थानों द्वारा लचीलापन और जन-केंद्रित शासन के मॉडल के रूप में सराहा गया है।
मध्य पूर्व में जैसे-जैसे इजराइल और हमास के बीच युद्ध बढ़ता गया, भारत ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, दोनों पक्षों के साथ बातचीत की और अपने प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए मानवीय सहायता की पेशकश की। बातचीत और शांतिपूर्ण समाधान के लिए नई दिल्ली के आह्वान को अच्छा समर्थन मिला। इससे इस क्षेत्र में भारत की एक स्थिरता के समर्थक राष्ट्र की छवि मजबूत हुई है।
भारत ने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ भी महत्वपूर्ण राजनायिक कुशलता का परिचय दिया है। भारत ने श्रीलंका और मालदीव में महत्वपूर्ण वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की, जिससे उनको अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में मदद मिली। भारत की सामयिक क्रेडिट लाइन की कोलंबो की सराहना और भारत की विकासात्मक भूमिका के लिए माले का समर्थन नई दिल्ली के क्षेत्रीय नेतृत्व में बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। बांग्लादेश में भारत स्थिर संबंधों को बनाए रखने में कामयाब रहा है, उन कार्यों से परहेज कर रहा है जो संबंधों को अस्थिर कर सकते हैं। फिर भी भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बांग्लादेश की नई सरकार और उसके पीछे के लोग ऐसा कोई कदम न उठाएं जो भारत के मूल हितों के लिए हानिकारक हो।
एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत का नेतृत्व अर्थव्यवस्था से परे सुरक्षा और कनेक्टिविटी तक है। भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी परियोजनाएं क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। आपदा प्रबंधन में प्रथम उत्तरदाता के रूप में इसकी भूमिका एक भरोसेमंद पड़ोसी के रूप में इसकी स्थिति को और मजबूत करती है।
वैश्विक मंच पर 2024 में भारत की जी20 की अध्यक्षता एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। दिसंबर 2023 में अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक समाप्त करते हुए भारत ने ऐतिहासिक उपलब्धि- अफ्रीकी संघ को जी20 के स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करना और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं की ऋण चिंताओं का समर्थन करना- प्राप्त करने के बाद इसका नेतृत्व ब्राज़ील को सौंप दिया। नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने से ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में भारत की छवि मजबूत हुई। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका दोनों ने इस विरासत को आगे बढ़ाया है।
जी20 और क्वाड और ब्रिक्स जैसे अन्य समूह अपने आप में बहुपक्षीय मंच बन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय भारतीय भागीदारी और नेतृत्व ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि ये राजनीतिक विवादों के मंच के बजाय समस्या सुलझाने वाले निकाय बने।
भारत एक वैश्विक विचारक नेता के रूप में उभरा है। डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को वैश्विक सार्वजनिक के रूप में स्वीकार किया जाता है। मानव केंद्रित वैश्वीकरण पर पीएम मोदी के वन हेल्थ के दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाया गया है।
जनसंख्या के रुझान और आर्थिक विकास के पैटर्न देखने से यह भी पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी प्रवासन और गतिशीलता पर काम करने में दूरदर्शी है। भारतीय कौशल और उद्यमशीलता की उनकी गतिशीलता और क्षमताओं के कारण से अनेक राष्ट्रों में उनकी मांग बढ़ी है।
अब जबकि वर्ष 2024 समाप्त हो रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति ने व्यावहारिकता, महत्वाकांक्षा और अनुकूलनशीलता का एक दुर्लभ मिश्रण प्रदर्शित किया है। राष्ट्रपति बाइडेन और ट्रंप समेत वैश्विक नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने की मोदी की क्षमता भारत की भावी नीतियों के लिए लाभदायी है। चाहे सत्ता में कोई भी हो। उनका रणनीतिक नेतृत्व भारत को न केवल एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में बल्कि एक बहुध्रुवीय और न्यायसंगत विश्व व्यवस्था को आकार देने वाले एक वैश्विक राष्ट्र के रूप में दर्शाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक विशिष्ट ‘भारतीय तरीका’ गढ़ा है। प्रमाणों से पता चलता है कि भारत की रणनीति शानदार तरीके से सफल हो रही है।
(लेखक भारत के पूर्व विदेश सचिव और संयुक्त राज्य अमेरिका, बांग्लादेश और थाईलैंड में राजदूत रहे हैं।)
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