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स्वरोजगार से दूर हो रही बेरोजगारी

आज से लगभग नौ वर्ष पहले 15 अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में स्टार्टअप इंडिया का जिक्र किया था और इसके ठीक छह महीने के बाद 16 जनवरी को इसकी शुरुआत भी कर दी गई…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानThu, 16 Jan 2025 10:56 PM
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आज से लगभग नौ वर्ष पहले 15 अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में स्टार्टअप इंडिया का जिक्र किया था और इसके ठीक छह महीने के बाद 16 जनवरी को इसकी शुरुआत भी कर दी गई। इसका मुख्य उद्देश्य एक मजबूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना, देश में उद्यमियों को समर्थन देना व रोजगार चाहने वालों के देश के बजाय भारत की छवि रोजगार मुहैया कराने वाले राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है। इसी मकसद से कई कार्यक्रम भी शुरू किए गए, जिससे देश की आर्थिक रीढ़ को मजबूती मिली है। इस पहल से रोजगार के अवसर बढ़े हैं। चूंकि हमारे देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, इसलिए उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाले ऐसे अभियान काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। स्टार्टअप को बढ़ावा देने के साथ-साथ सरकार कौशल विकास को भी प्रोत्साहन देने में तत्पर है। इसके लिए भी समय-समय पर तमाम तरह की योजनाएं अमल में लाई जा रही हैं। किसी भी उम्र के इंसान के लिए अपने कौशल का विकास काफी जरूरी है। यह भी एक वजह है कि सरकार ने बहुत से नए स्किल इंडिया ट्रेनिंग सेंटर खोलने का एलान किया है। वास्तव में, भारत की सभ्यता, संस्कृति, भाषा, कलाकृति आदि की राह पर चलकर ही देश को आत्मनिर्भर बनाने का सपना पूरा किया जा सकता है और निस्संदेह, सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार

बढ़ता हुआ भारत

स्टार्टअप इंडिया का उद्देश्य सिर्फ उद्यमशीलता को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि देश में नवाचार और आत्मनिर्भरता को भी सशक्त करना है। साल 2016 में जहां देश मेें केवल 300 स्टार्टअप पंजीकृत थे, वहीं आज यह संख्या 1.5 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है। यह वृद्धि न केवल सरकार की नीतियों की सफलता दर्शाती है, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि भारतीय युवा अपनी रचनात्मकता और साहस के साथ दुनिया में बदलाव लाने के लिए तैयार हैं। यह ऐसे बदलाव का प्रतीक है, जिसने भारत को वैश्विक व्यापार के मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया है। स्टार्टअप ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता को कम करने में योगदान दिया है और ऐसी-ऐसी सेवाएं प्रदान की हैं, जो न केवल देश की जरूरतें पूरी करती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से भी प्रतिस्पद्र्धा करती हैं। महिलाओं की भागीदारी में अभूतपूर्व वृद्धि भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम की एक और अहम उपलब्धि है। इसी कारण, आज महिलाएं सिर्फ उपभोक्ता नहीं हैं, बल्कि वे उद्यमशीलता के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। यह सब नए भारत का संकेत है।

आरके जैन ‘अरिजीत’, शिक्षाविद

सरकारी क्षेत्र में बढ़नी चाहिए संभावना

यह सही है कि स्टार्टअप इंडिया जैसे अभियानों की इस देश में जरूरत है, लेकिन रोजगार की समस्या का समाधान सिर्फ इससे नहीं हो सकता। इसके लिए हमें सार्वजनिक क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाएं बढ़ानी होंगी। मगर दिक्कत यही है कि अब सरकारी क्षेत्र में या तो नौकरी नहीं है और अगर है भी, तो वह अमूमन स्थायी नहीं है, यानी अनुबंधित नौकरी करने को लोग मजबूर हैं। इस कारण देश में बेरोजगारी दर भी बढ़ी है। अगर सरकारें अपने यहां की रिक्त पदों को ही भर लें, तो लाखों युवाओं को रोजगार मिल सकता है, लेकिन सरकारी सुस्ती के कारण ऐसा नहीं हो रहा और नौजवान बेरोजगार बनकर सड़कों की धूल फांकने को अभिशप्त हैं। वास्तव में, स्टार्टअप जैसे अभियान कुछ प्रतिभाशाली युवाओं के लिए ही उचित हैं, बहुतायत में इसका लाभ लेने वाले नौजवान नहीं हैं। उनमें इतनी कुशलता कहां है कि वे नए-नए स्टार्टअप खोल सकें या उससे अपनी आर्थिकी चला सकें?

कुछ गड़बड़ियां ऐसे अभियानों में भी हैं। मसलन, स्वरोजगार के लिए धन चाहिए और सरकारी कर्ज कुछ भाग्यशालियों को ही नसीब होता है। शेष जरूरतमंद महाजन के भरोसे रहते हैं या फिर किसी न किसी तरह से कर्ज जुटाने के। इसके लिए दफ्तरों के चक्कर काटना उनकी मजबूरी बन जाती है। इतना ही नहीं, कई बार स्टार्टअप जोर-शोर से शुरू तो किए जाते हैं, लेकिन वे बाजार नहीं पकड़ पाते और समय से पूर्व दम तोड़ देते हैं। उनको राहत देने के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए, वे काफी नहीं दिखते। विफलता को जब सफलता की सीढ़ी माना जाता है, तो विफल इंसान को इतनी रियायत तो मिलनी ही चाहिए कि वह फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सके। इसके लिए जो सुविधाएं उसे चाहिए, वे उसे बिना किसी तकलीफ के मिलें। फिर, देश में पढ़े-लिखे तबकों में उन नौजवानों की संख्या अधिक है, जो जोखिम लेने से कतराते हैं। ऐसे नौजवानों को बाजार के भरोसे छोड़ देना सही नहीं होगा।

इन्हीं सबको देखते हुए यह कहा जाता है कि सरकारों को अपने तईं स्थायी रोजगार देने की व्यवस्था करनी चाहिए। निजी क्षेत्र में कुछ अपवादों को छोड़कर शोषण की खबरें ही अधिक आती रहती हैं। इनको खत्म करने के लिए सरकारों को प्रयास करना चाहिए। हां, कुछ हद तक स्वरोजगार समाधान हो सकता है, लेकिन इसे एकमात्र हल नहीं माना जा सकता। वैसे भी, पहले इसकी गड़बड़ियों को हमें दूर करना होगा, तभी इसका वह फायदा मिल सकेगा, जिसकी अपेक्षा इसको शुरू करते समय की गई थी।

लक्ष्मी आचार्य, टिप्पणीकार

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