Hindi Newsबिहार न्यूज़Will Prashant Kishor Asaduddin Owaisi factor derail electoral prospects of Tejashwi Yadav RJD in 2025 Assembly

इधर कुआं, उधर खाई; क्या 2025 में सीएम-इन-वेटिंग तेजस्वी यादव का तेज छीन लेगा PA फैक्टर?

  • बिहार के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे और चुनावी राजनीति में पांव रखते ही उपमुख्यमंत्री बन गए तेजस्वी प्रसाद यादव पिछले नौ साल से सीएम-इन-वेटिंग हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में उनकी संभावनाओं पर PA फैक्टर का ग्रहण लगता दिख रहा है।

Ritesh Verma लाइव हिन्दुस्तान, पटनाWed, 27 Nov 2024 11:29 AM
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बिहार की राजनीति में नौ साल से सीएम-इन-वेटिंग चल रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव की 2025 के विधानसभा चुनाव में संभावनाओं पर PA फैक्टर का ग्रहण बढ़ रहा है। राज्य के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राबड़ी देवी के बेटे तेजस्वी यादव राजनीति में पांव रखते ही 2015 में उप-मुख्यमंत्री बन गए थे। नीतीश कुमार उनके नेता और मुख्यमंत्री बने। 2022 के अगस्त में नीतीश ने दोबारा तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाया लेकिन इस साल जनवरी में फिर विपक्ष का नेता बनने के लिए छोड़ दिया।

2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को A फैक्टर यानी असदुद्दीन ओवैसी ने परेशान कर दिया तो 2025 के चुनाव से पहले प्रशांत किशोर यानी P फैक्टर उनके सिर पर मंडरा रहा है। हाल ये है कि तेजस्वी के लिए एक तरफ प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का कुआं है तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) की खाई है। पीके और ओवैसी से अपने वोट को बचाकर तेजस्वी को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेतृत्व वाले मजबूत एनडीए से भिड़ना है।

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प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने तेजस्वी यादव को चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में इस महीने अपनी ताकत की नुमाइश भी करा दी है। जन सुराज को दो सीट पर भले नाम मात्र का वोट मिला हो लेकिन इमामगंज में आरजेडी कैंडिडेट रोशन मांझी की हार में जन सुराज पार्टी के जितेंद्र पासवान का 37 हजार वोट जुटा लेना एक अहम कारण है। जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी इस सीट से महज 5945 वोट के अंतर से जीती हैं। ओवैसी की पार्टी के कैंडिडेट कंचन पासवान को 7493 वोट आए। एक महीने पहले बनी पार्टी जिसके सिंबल का प्रचार-प्रसार ठीक से ना हुआ हो, उसका 37 हजार वोट जुटाना, राजद के लिए खतरे की घंटी है।

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बेलागंज में भी जन सुराज पार्टी के कैंडिडेट मोहम्मद अमजद ने 17 हजार से ऊपर वोट लाया जो भले जेडीयू की मनोरमा देवी की आरजेडी के विश्वनाथ यादव से जीत के अंतर से कम हो लेकिन महत्वपूर्ण है। ओवैसी की पार्टी ने यहां भी 3533 वोट काटा। जन सुराज पार्टी के कैंडिडेट को दोनों सीट पर मिले वोट राजद को नुकसान के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर इसके उलट कहते हैं कि इमामगंज में अगर जन सुराज पार्टी नहीं लड़ती तो राजद कैंडिडेट की और भयानक हार होती। पीके ने कहा नहीं लेकिन उनका चिराग पासवान की तरफ है जिस जाति का उनका कैंडिडेट था। पीके ने बेलागंज पर कहा कि मुसलमान बूथों पर जेडीयू को वोट मिला है इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि जन सुराज ने मुस्लिम वोट काटा है।

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प्रशांत किशोर ने जन सुराज से 40 मुसलमान और 40 महिलाओं को विधानसभा चुनाव 2025 में टिकट देने का ऐलान कर रखा है। उपचुनाव में मिले लगभग 10 फीसदी वोट को पीके ने बढ़ाकर 40 परसेंट तक ले जाने का टारगेट सेट किया है। जन सुराज और पीके की यहां से आगे की चढ़ाई किसी ना किसी पार्टी के वोट की कीमत पर होगी, जिसमें तेजस्वी की पार्टी सबसे आसान निशाना साबित हो सकती है। प्रशांत किशोर सभाओं में तेजस्वी और लालू पर सबसे ज्यादा बोलते हैं।

प्रशांत किशोर के राजनीति में पांव रखने से पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने राजद को सीमांचल में बढ़िया नुकसान पहुंचाया था। एआईएमआईएम ने अररिया में एक सीट तो किशनगंज और पूर्णिया में दो-दो सीट जीत ली थी। ओवैसी ने 20 कैंडिडेट उतारे थे जिसमें 14 सीमांचल में थे। उनके कैंडिडेट पांच सीट अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन जीत गए। बाद में तेजस्वी ने उनमें से चार को राजद में मिला लिया। ओवैसी के कैंडिडेच चार सीट पर चौथे और छह सीट पर चौथे नंबर पर रहे थे। रानीगंज सीट को छोड़ दें तो किसी भी सीट पर ओवैसी के कैंडिडेट ने अगर जीत नहीं दर्ज की तो हार-जीत के अंतर से नीचे रहे।

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माय समीकरण के नाम से मशहूर तेजस्वी के मुस्लिम-यादव वोट पर ओवैसी पहले से चोट कर रहे थे और अब प्रशांत किशोर भी अल्पसंख्यकों को रिझाने में लगे हैं। यानी राज्य की राजनीति में जो तीसरा विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं वो भी राजद के वोट पर ही आंख लगा रखे हैं। ऐसे में पहले से ही एनडीए से बार-बार पिछड़ रहे तेजस्वी के लिए 2020 के चुनाव जितना वोट शेयर लाना और सीटें बचाना एक बड़ी चुनौती होगी।

ओवैसी के बिहार में डटे रहने और प्रशांत की जन सुराज पार्टी के उभार से भाजपा और जेडीयू फिलहाल किसी परेशानी में नहीं दिख रही है। प्रशांत खुद को विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं जिसका फायदा उन्हें सीट दर सीट दोनों गठबंधनों के कैंडिडेट से नाराज वोटरों के साथ के तौर पर मिल सकता है। आगे जो हो, वो होगा, लेकिन इस समय राज्य की राजनीति में हो रहा कोई भी बदलाव तेजस्वी यादव की तेज को बढ़ाता नहीं दिख रहा है।

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