अब 15 मिनट में शराबबंदी हटाने लगे प्रशांत किशोर, बिहार से छोटे राज्यों की भी कमाई है हड़बड़ी का राज
- दो दिन बाद पार्टी बनाने जा रहे जन सुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर ने अब बिहार में 8 साल से चल रही शराबबंदी को 15 मिनट में हटा देने का ऐलान किया है। पहले वो एक घंटे में हटाने की बात करते थे। पीके की हड़बड़ी का राज बिहार से कम आबादी वाले छोटे राज्यों की शराब से कमाई में छुपा है।
जन सुराज अभियान से दो दिन बाद बन रही पार्टी के 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में 130-135 सीट जीतने को भी अपनी हार बताने वाले प्रशांत किशोर ने सरकार बनने पर शराबबंदी को खत्म करने का समय एक घंटा से घटाकर 15 मिनट कर दिया है। कुछ दिन पहले प्रशांत ने कहा था कि जन सुराज की सरकार बनी तो बिहार में शराबबंदी को एक घंटे में हटा दिया जाए। उन्होंने अब कहा है कि सरकार बनने के 15 मिनट में शराबबंदी को उठा के फेंक देंगे। प्रशांत बिहार में शराब बैन खत्म करने की बात खुलकर करने वाले और उसे चुनावी एजेंडा बनाने वाले पहले नेता हैं। प्रशांत किशोर की इस हड़बड़ी को समझना है तो बिहार से कम आबादी वाले छोटे-छोटे राज्यों की शराब से हो रही कमाई का नंबर देखकर समझ आएगा। पीके ने रविवार को कहा भी कि इस फैसले से बिहार को हर साल 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
प्रशांत किशोर के शराबबंदी के खिलाफ खुलकर उतरने का राजनीतिक महत्व तब और गहरा हो जाता है जब हम बिहार में बाकी दलों का स्टैंड देखते हैं। नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार ने 2016 में जब शराब बैन किया था तब कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सरकार में थी। जब नीतीश भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास लौटे तो भी बदलाव नहीं हुआ। शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में लोकसभा के 2 और विधानसभा के 1 चुनाव हो चुके हैं लेकिन किसी पार्टी ने शराबबंदी हटाने की बात करने का साहस नहीं किया।
बिहार से बड़े ही नहीं छोटे राज्यों की शराब से कमाई बताती है पीके की बेचैनी
2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र आबादी में बिहार से बड़े राज्य हैं। इन दोनों की उत्पाद विभाग की पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 की कमाई क्रमशः 47600 और 23250 करोड़ है। बड़े राज्यों की छोड़िए बिहार से कम आबादी वाले पश्चिम बंगाल का पिछले वित्तीय वर्ष का राजस्व 23000 करोड़ रहा जिसमें 17000 करोड़ सिर्फ टैक्स है। बिहार में शराबबंदी लागू होने से पहले 2015-16 में पश्चिम बंगाल का उत्पाद राजस्व मात्र 4015 करोड़ था। बंगाल का राजस्व बढ़ने में बिहार में वहां से शराब की तस्करी भी एक कारण है क्योंकि बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य बिहार से सटे हुए हैं।
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पांच करोड़ से ऊपर आबादी वाले राज्यों में मध्य प्रदेश ने पिछले वित्तीय वर्ष में उत्पाद शुल्क से 13590 करोड़ कमाए। तमिलनाडू ने शराब से 45856 करोड़ कमाए जिसमें 35 हजार करोड़ से ज्यादा सिर्फ वैट है और बाकी उत्पाद शुल्क। राजस्थान ने 2024-25 के लिए उत्पाद शुल्क मद से 17100 करोड़ की कमाई का लक्ष्य रखा है। कर्नाटक ने पिछले वित्त वर्ष में 34628 करोड़ कमाया जहां शराब पर सबसे ज्यादा टैक्स है। गुजरात में भी शराब पर कुछ अपवादों को छोड़कर प्रभावी प्रतिबंध है और उसके उत्पाद विभाग की कमाई पिछले वित्त वर्ष में 155 करोड़ थी।
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बिहार ने जब 1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी लागू की तो उससे ठीक पहले के वित्तीय वर्ष 2015-16 में उसे शराब से 3141 करोड़ की कमाई हुई थी। 2016-17 में सरकार की उत्पाद शुल्क से कमाई घटकर 29 करोड़ रह गई। अब हाल ये है कि बिहार सरकार शराबबंदी लागू करने के लिए उत्पाद विभाग पर 600 खर्च कर रही है।
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बिहार से छोटे राज्य राज्य जिनकी आबादी बिहार से लगभग एक तिहाई है उनके उत्पाद विभाग की कमाई पर भी नजर डाल लेते हैं। तेलंगाना ने पिछले वित्तीय वर्ष में 36493 करोड़, केरल ने 19088 करोड़, असम ने 3138 करोड़ और झारखंड ने 2300 करोड़ कमाया है। आंकड़ों से साफ है कि शराब से सरकारी राजस्व की भरपूर संभावना है।
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लौटते हैं प्रशांत किशोर की बात पर। उन्होंने कहा कि शराबबंदी से अगर फायदा है तो वो तब हो जब शराब बैन लागू हो। बिहार में शराबबंदी के नाम पर शराब की दुकान बंद है और घर-घर में डिलीवरी चालू है। उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार बनी तो शराब से होने वाली कमाई को राज्य के बजट में लेने के बदले बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया जाएगा। ऐसा करने पर 12-15 साल में बिहार में शिक्षा पर 5 लाख करोड़ तक खर्च किया जा सकता है। पीके ने कहा कि लोगों ने उनसे कहा कि शराबबंदी हटाने की बात करने पर महिलाएं वोट नहीं देंगी तो मेरा कहना है कि ना देती हों, तो ना दें लेकिन हम गलत नहीं बोलेंगे।