काराकाट का किंग कौन? सेंधमारी के खेल में कौन निकलेगा आगे, चुनावी मैदान में तीन महारथी
काराकाट लोकसभा सीट पर आखिरी चरण यानी 1 जून को मतदान है। भोजपुरी एक्टर पवन सिंह की एंट्री से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। अब उपेंद्र कुशवाहा, राजाराम और पवन सिंह के बीच है।
धान का कटोरा कहे जाने वाले काराकाट में जेठ की दुपहरी में सियासी फसल काटने की होड़ है। भोजपुरी और मगही की मिश्रित संस्कृति वाला यह इकलौता संसदीय क्षेत्र है, जिसे सोन की धार दो हिस्सों में बांटती है। यही कारण है कि सियासी जानकार अभी भी यहां के मतदाताओं के मन की थाह नहीं लगा पाए हैं। मतदान एक जून को है। मतदाताओं ने भी अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
रणबीर सेना और एमसीसी के खूनी भिड़ंत का गवाह रहे इस क्षेत्र के ग्रामीण अब रतजगा नहीं करते हैं। हालांकि, जातीय गोलबंदी अभी भी चरम पर है। काराकाट में भाकपा माले के राजाराम सिंह और रालोमो के उपेंद्र कुशवाहा के बीच भोजपुरी सुपर स्टार पवन सिंह की इंट्री से सियासी समर रोचक बन गया है।
भाजपा से बागी होकर चुनाव मैदान में निर्दलीय उतरे पवन ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। भोजपुरी भाषी और मगही इलाके के घरों में बजने वाले पवन के गीत उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बताने के लिए काफी हैं। यही महागठबंधन और एनडीए के प्रत्याशियों को परेशान किए हुए है।
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यह क्षेत्र यादव, राजपूत और कोइरी बाहुल्य है। मुस्लिम वोट भी यहां बड़ी संख्या में हैं। वैश्य, चंद्रवंशी, मल्लाह, अतिपिछड़ा वर्ग और दलित आदि परिणाम को निर्णायक मोड़ देते रहे हैं। तीनों अपने कोर वोटरों को एकजुट करने में लगे हैं। सेंधमारी के प्रयास में दिन-रात लगे हुए हैं। निर्दलीय पवन ने फिल्मी सितारों का जमावड़ा भी लगा दिया है। इसी कारण एनडीए और महागठबंधन के नेताओं को ज्यादा पसीना बहाना पड़ रहा है। डेहरी में पीएम मोदी की सभा के दिन ही गोड़ारी मैदान में फिल्मी सितारों को उतारकर उन्होंने मजबूत उपस्थिति का संकेत दिया।
एनडीए के कोर वोट में बिखराव को रोकने के लिए उपेंद्र के समर्थन में डेहरी में पीएम मोदी तो दाउदनगर में अमित शाह आ चुके हैं। योगी, राजनाथ, नड्डा की सभा प्रस्तावित है। राजपूत नेताओं को काराकाट में जनसंपर्क करने को कहा गया है। पवन सिंह के प्रचार में उतरे सितारों की फौज में अभिनेत्री काजल राघवानी, पाखी हेगड़े, अंकुश राजा, अनुपमा यादव, अरविंद अकेला कल्लू, शिल्पी राज आदि हैं। राजाराम के पक्ष में राजद नेता तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी और माले महासचिव दीपंकर की कई प्रखंडों में सभा हो चुकी है। माले जूलूस निकाल वोटरों को एकजुट करने में जुटा है।
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स्थानीय राजनीति इसे बिक्रमगंज व ओबरा में प्रभावित करती दिख रही है। ओबरा विस चुनाव में यादव व कुशवाहा जाति के प्रत्याशी आमने-सामने रहे हैं। इसका असर इस चुनाव पर भी दिख रहा है। माले की पुरानी छवि की परछाई राजाराम का पीछा नहीं छोड़ रही है। एनडीए के कोर वोटर खासकर कुशवाहा व राजपूत के मन में ऊहापोह है। इन्हीं कारणों से उपेंद्र को कहीं-कहीं नाराजगी झेलनी पड़ रही है। वे अबकी बार क्षेत्र में रहने और आते रहने का वादा करते फिर रहे हैं। इस तरह तीनों प्रत्याशी परिणाम अपने पक्ष में करने में जुटे हैं। मतदाता यह भांपने में लगे हैं कौन कितना वजनी है। पवन भीड़ को वोट में कितना बदल पाते हैं। कोर वोटरों को एकजुट रखने और वोट की सेंधमारी करने में जो सफल होगा, वही काराकाट का बादशाह बनेगा।
क्षेत्र में तीनों के समर्थक मुखर दिखे। विरोध और समर्थन के अपने-अपने तर्क हैं। बिक्रमगंज के बलिराम कुशवाहा की नाराजगी एनडीए प्रत्याशी से दिखी। हालांकि, वे कहते हैं कि उपेंद्र को राष्ट्रीय स्तर के नेता होने का फायदा मिलेगा। मोदी के नाम पर लोग वोट देंगे। घोसिया खुर्द के बटेश्वर पटेल कहते हैं कि वोट महंगाई के खिलाफ पड़ेगा। ओबरा विस क्षेत्र में राजाराम सिंह का घर है। यहां के तरार में सभी वर्ग के लोग हैं। मनोरंजन प्रसाद राष्ट्रीय हित को देखते हुए वोट देंगे। वहीं, ललन को ऐसा नेता चाहिए जो आगे भी उनका ख्याल रखे। नबीनगर में पवन के गाने ज्यादा बज रहे थे।
उपेंद्र कुशवाहा
एनडीए प्रत्याशी रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा तीसरी बार काराकाट से चुनाव मैदान में हैं। वर्ष 2014 में वे एनडीए प्रत्याशी के तौर चुनाव जीते। वर्ष 2019 में महागठबंधन प्रत्याशी के तौर पर चुनाव हार गए। कुशवाहा राज्यसभा, बिहार विधानसभा और विधानपरिषद के सदस्य भी रहे हैं। वैशाली जिले के महनार प्रखंड के जायज गांव के रहने वाले हैं।
राजाराम सिंह
महागठबंधन प्रत्याशी भाकपा माले के राजाराम सिंह ओबरा के दो बार के विधायक रह चुके हैं। काराकाट लोकसभा क्षेत्र से तीन बार किस्मत आजमा चुके हैं। जहानाबाद लोकसभा का चुनाव भी उन्होंने लड़ा था। उन्हें सफलता नहीं मिली। वे वर्ष 1995 और 2000 में ओबरा विधानसभा से विधायक रहे। औरंगाबाद जिले के एकौनी गांव के रहने वाले हैं।
पवन सिंह
निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर चुनाव मैदान में हैं। उनकी पहचान भोजपुरी सुपर स्टार के रूप में है। पवन सिंह का जन्म आरा जिले के जोकहरी में हुआ था। उन्होंने देवरा बड़ा सतावेला, भोजपुरिया राजा जैसी प्रमुख भोजपुरी फिल्मों में अभिनय किया है। 2014 में उन्होंने भाजपा ज्वाइन की थी।
जाति के शोर में दब गए मुद्दे
जाति के शोर में अन्य मुद्दे दब गए हैं। क्षेत्र के लोगों को टिस है कि डालमियानगर में कब रेल पहिया कारखाना शुरू होगा। नोखा की दम तोड़ चुकीं चावल मिलें कब रफ्तार पकड़ेगी। किसानों को सालोंभर सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलना भी एक समस्या है। कदवन डैम की वर्षों पुरानी मांग अभी भी फाइलों में बंद है।
देख रहे किसका पलड़ा भारी
बिक्रमगंज के पास कंडा डीह के निर्मल यादव टेम्पो चालक हैं। कहते हैं पवन के पीछे लइकन पागल बा। ऐसे अभी देख रहे हैं किसका पलड़ा भारी होगा। बिक्रमगंज गाँव के ही नूर मोहम्मद कहते हैं कि जो विकास कराएगा उसी को वोट गिरेगा। अभी यहां माले के विधायक हैं। पवन भी प्रयास कर रहे हैं। उनके पक्ष में कई यादव गांवों में भी सभाएं हो चुकी हैं। नोखा के चंद्रमा सिंह यादव व खुर्शीद आलम खुलेआम महागठबंधन की तरफदारी करते दिखे तो टुडू कुमार और जितेंद्र सिंह एनडीए व पवन के।
तीन बार से एनडीए का कब्जा
परिसीमन के बाद इस सीट पर 2009 से अब तक हुए तीन चुनावों में एनडीए और कुशवाहा जाति के प्रत्याशियों का कब्जा रहा है। दो बार 2009 और 2019 में जदयू के महाबली सिंह और एक बार 2014 में रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा यहां से सांसद चुने गए हैं। 2019 में हार के बाद उपेंद्र इस बार एनडीए के रथ पर सवार हैं।