लोकसभा हारकर आरजेडी-कांग्रेस ने समझा नीतीश का मोल, महागठबंधन टूटने का अब कर रहे अफसोस
बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 में आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन मिलकर 9 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाया। वहीं, नीतीश कुमार की जेडीयू ने एनडीए में रहकर अकेले 12 सीटें जीतीं।
बिहार के लोकसभा चुनाव 2024 में महागठबंधन को मिली हार के बाद आरजेडी और कांग्रेस को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इंडिया अलायंस छोड़ने का अफसोस हो रहा है। इंडिया गठबंधन के सूत्रधार रहे नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी में आरजेडी और कांग्रेस का साथ छोड़कर एनडीए में वापसी की थी। बीजेपी के साथ मिलकर बिहार की 16 सीटों पर लड़ी नीतीश की पार्टी जेडीयू ने 12 पर जीत दर्ज की। एनडीए बिहार की 40 में से 30 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। वहीं, महागठबंधन के खाते में महज 9 सीटें गईं।
आरजेडी, कांग्रेस और यहां तक कि लेफ्ट पार्टियों के नेताओं का भी मानना है कि बिहार में एनडीए ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की, इसका काफी हद तक श्रेय नीतीश की जेडीयू को ही जाता है। जेडीयू को अपने अति पिछड़ा वोटबैंक के साथ ओबीसी, कुर्मी, कुशवाहा, सवर्ण और यहां तक कि मुस्लिमों का भी समर्थन मिला। कोसी इलाके में अति पिछड़ा (ईबीसी) वोटर मुख्य भूमिका में हैं, इनमें मधेपुरा, सुपौल, शिवहर जैसी सीटे शामिल हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में यहां जेडीयू और बीजेपी ने लालू-तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया।
बिहार में पिछले साल हुआ जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 36 फीसदी हिस्सा अति पिछड़ी जातियों का है। ईबीसी वर्ग में 100 अधिक जातियां आती हैं। आरजेडी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि पार्टी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन 4 पर ही जीत मिली, जिसका नेताओं को मलाल है। इससे यह साबित होता है कि आरजेडी को अपने पारंपरिक एमवाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) के अलावा अन्य जातियों के वोट नहीं मिले।
आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि अगर नीतीश कुमार उनके साथ होते तो अति पिछड़ा और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के वोट भी महागठबंधन को मिल सकते थे। इससे एनडीए का समीकरण बिगड़ सकता था और इंडिया गठबंधन बिहार में ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होता। आरजेडी का मुस्लिम और यादव गठजोड़ कई लोकसभा सीटों पर काम नहीं कर पाया। यादव और मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ, जिससे एनडीए को मदद मिली।
आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री श्याम रजक का कहना है कि जिस गठबंधन में जितने ज्यादा सहयोगी दल होते हैं, वो उतना ज्यादा मजबूत होता है। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन का हिस्सा होते तो यह हमारे लिए फायदेमंद साबित हो सकता था। ओबीसी और ईबीसी वोट एकजुट हो सकते थे।
इसी तरह कांग्रेस नेताओं ने भी माना कि सीएम नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक मुसलमानों को साधकर मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल क्षेत्र में कटिहार और पूर्णिया के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण बिहार में भी बड़ी संख्या में एनडीए की मदद की। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सीएम नीतीश ने अपने सुशासन मॉडल, सांप्रदायिक सद्भाव और मुसलमानों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की उपलब्धियां बताकर अल्पसंख्यकों को साधा। इसका असर चुनाव नतीजों में देखने को मिला। यह स्पष्ट है कि मुसलमानों ने इस बार जेडीयू और सहयोगी दलों के प्रत्याशियों को बड़े पैमाने पर वोट दिया, जिससे एनडीए को फायदा मिला।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी ने कहा कि पिछड़ा, अति पिछड़ा, मुस्लिम, दलित और सवर्ण वर्ग के बीच नीतीश का मजबूत आधार किसी भी गठबंधन के लिए बोनस साबित होता है। अगर नीतीश इंडिया गठबंधन के साथ होते तो आरजेडी और कांग्रेस ने ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की होती। जेडीयू के पास सभी वर्गों का समर्थन मिलता है, जो कि उसके पारंपरिक वोटबैंक के अलावा बोनस के रूप में काम करता है।