Hindi Newsबिहार न्यूज़pension dispute between jharkhand and bihar 975 crore pending in last three years

बिहार-झारखंड में पेंशन को लेकर फंसा विवाद, 3 साल में लग गया 975 करोड़ का बकाया

पेंशन दायित्व के बंटवारे को लेकर झारखंड के रवैये के कारण बिहार सरकार से फिर तकरार शुरू हो गयी है। झारखंड पेंशन का बकाया 975 करोड़ नहीं दे रहा है। 2018-19 से लेकर 2020-21 तक के तीन वित्तीय वर्षों में...

Ajay Singh मुकेश बालयोगी, पटना Mon, 20 Dec 2021 07:11 AM
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पेंशन दायित्व के बंटवारे को लेकर झारखंड के रवैये के कारण बिहार सरकार से फिर तकरार शुरू हो गयी है। झारखंड पेंशन का बकाया 975 करोड़ नहीं दे रहा है। 2018-19 से लेकर 2020-21 तक के तीन वित्तीय वर्षों में बिहार को एक पाई भी नहीं दी है। इसे लेकर बिहार के वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को कड़ा पत्र लिखा है। उन्होंने बिहार को पेंशन मद के बकाये का जल्द भुगतान करने की मांग की है।

एस सिद्धार्थ ने लिखा है कि बार-बार अनुरोध के बाद भी झारखंड सरकार की ओर से पेंशन दायित्व की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। उन्होंने याद दिलाया है कि केंद्रीय गृह सचिव की मध्यस्थता में यह फैसला हुआ था कि पेंशन दायित्व की गणना महालेखाकार की ओर से की जाएगी। महालेखाकार कार्यालय के सत्यापित आंकड़े की प्रति भी झारखंड सरकार को भेजने पर कोई परिणाम नहीं निकला है।

केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में बिहार और झारखंड के मुख्य सचिवों की बैठक में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने तक जनसंख्या अनुपात में झारखंड की ओर से राशि का भुगतान करना तय किया गया है। झारखंड ने इस पर सहमत होते हुए उसके मुताबिक बकाये के एक हिस्से का भुगतान भी किया। अब इस सहमति से मुकरते हुए फिर से तीन साल से कोई राशि नहीं दे रहा है।

क्यों हो रहा विवाद

साल 2000 में झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए संसद से पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम में 15 नवंबर 2000 तक के दायित्वों के बंटवारे का फॉर्मूला तय किया गया था। इसके तहत उस समय तक सेवानिवृत्त हुए राज्य सरकार के कर्मचारियों की पेंशन राशि का बंटवारा उस समय दोनों राज्यों के कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में करने का प्रावधान किया गया। कई साल तक बिहार सरकार झारखंड सरकार को हर साल पेंशन मद में होने वाले खर्च का ब्योरा भेजती रही और झारखंड उस राशि को स्वीकार करते हुए भुगतान करता रहा। बाद में बकाया बढ़ जाने पर आनाकानी करने लगा। उसके बाद झारखंड के नेताओं ने पेंशन फॉर्मूले के बंटवारे पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। उसे कर्मचारियों की संख्या के अनुपात की जगह आबादी के अनुपात में करने की मांग करने लगे। झारखंड सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इस पर न तो रोक लगाई गई है और न ही फैसला दिया गया है। इस कारण केंद्रीय गृहसचिव ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक बुलाकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने तक आबादी के अनुपात में झारखंड को पेंशन दायित्व का भुगतान करने के लिए सहमत कराया। इस आधार पर बकाये का एक हिस्सा देने के बाद झारखंड फिर पिछले तीन साल से पेंशन की राशि नहीं दे रहा है।

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