सीएम इन वेटिंग ही रह गए नीतीश के सबसे प्रिय उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, कागज के डॉक्टर थे बीजेपी नेता
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी छात्र जीवन से सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों को लेकर जुझारू रहे। वे पांच दशक तक बिहार के राजनीतिक पटल पर छाये रहे और राजनीति की काजल की कोठरी से बेदाग निकले।
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी का सोमवार की रात एम्स दिल्ली में निधन हो गया। वह यूरिनरी ब्लैडर के कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। सुशील मोदी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते थे। उनके निधन पर नीतीश कुमार ने शोक जताते हुए कहा कि आज मैंने अपना सच्चा दोस्त खो दिया। कई मौकों पर नीतीश कुमार ने सुशील मोदी को अपना सबसे प्रिय उपमुख्यमंत्री बताया था। अपने बयान को प्रमाणित करने के लिए सुशील मोदी आवश्यक दस्तावेजों को सदैव मीडिया के सामने प्रस्तुत करते थे। सुशील मोदी को बहुचर्चित चारा घोटाले का कहा माना जाता है। जंगलराज हटाने की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सुशील मोदी ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को नीतीश कुमार के लिए कुर्बान कर दिया था।
सुशील मोदी तो कई बार पार्टी नेताओं की ओर से भी इस बात के लिए निशाने पर आ चुके थे कि वह पार्टी में रहकर भी नीतीश कुमार के आदमी की तरह काम करते हैं। इसलिए, जब नीतीश कुमार के पलटने की चर्चाएं शुरू हुईं तो लगा कि सुशील मोदी उन्हें फिर से एनडीए के पाले में लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मजबूरी बन सकते हैं। लेकिन, विजय कुमार सिन्हा और सम्राट चौधरी का नए डिप्टी सीएम के तौर पर नाम आने के बाद सुशील मोदी फिर से वेटिंग पर पोस्टिंग वाले मोड में रह गए।
बिहार में भाजपा को पहचान दिलाने के साथ ही सुशील मोदी विरोधियों पर लगातार हमलावर रहते थे। चर्चित चारा घोटाला को उजागर करने और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को जेल भिजवाने में सुशील मोदी की अहम भूमिका रही। सुशील कुमार मोदी वर्ष 1996 में चारा घोटाले में पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दायर करने वालों में से एक थे। इस याचिका के दम पर चारा घोटाला सबके सामने उजागर हुआ था। लालू प्रसाद जेल गए थे। इसके बाद भी लगातार वे भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दे उठाते रहे। जब वर्ष 2015 में महागठबंधन की सरकार बनी। तब एक बार फिर उन्होंने लालू परिवार को निशाने पर लिया। लगातार चारा घोटाला और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दे उठाते रहे। 4 अप्रैल 2017 के बाद लालू परिवार की बेनामी संपत्ति को लेकर लगातार 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस की। नतीजन 26 जुलाई 2017 को महागठबंधन सरकार गिर गई। नई एनडीए सरकार 27 जुलाई को बनी जिसमें सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री बने।
छात्र जीवन से ही जुझारू रहे थे सुशील मोदी
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी छात्र जीवन से सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों को लेकर जुझारू रहे। वे पांच दशक तक बिहार के राजनीतिक पटल पर छाये रहे और राजनीति की काजल की कोठरी से बेदाग निकले। उनके चरित्र पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। वे बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एवीबीपी) से जुड़े रहे। जब 70 के दशक में विश्वविद्यालयी शिक्षा के लिए पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराए तो छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए वे हमेशा आगे रहे। यहीं उनका राजनीति से प्रथम परिचय हुआ। 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में लालू प्रसाद अध्यक्ष और सुशील कुमार मोदी महासचिव निर्वाचित किए गए। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति में शामिल होने लगे। 1974 के आंदोलन के दौरान उनकी सक्रियता काफी बढ़ गयी और इस छात्र आंदोलन के तत्कालीन नायकों में वे प्रमुख रहें। 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तब वे स्थापना काल से ही उससे जुड़ गए और पार्टी के तेज-तर्रार नेता के रुप में उभर कर सामने आए।
पांच दशक की संघर्ष, सत्ता, सादगी और संजीदा यात्रा का अंत
बिहार भाजपा के चर्चित चेहरा सुशील मोदी ने राजनीति में अपने संघर्ष के दम पर पहचान बनाई। वर्ष 1968 में वे आरएसएस से जुड़े और आजीवन सदस्य बने। वर्ष 1973 में पटना विवि छात्र संघ के महासचिव बने। वर्ष 1974 में बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के सदस्य बने। जेपी आंदोलन के दौरान वर्ष 1974 में जेल गए और 19 महीने तक जेल में रहे। 1977 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। वर्ष 1983 में अखिल भारतीय वद्यिार्थी परिषद के राष्ट्रीय स्तर पर महासचिव बने। राजनीति में आने के पहले सुशील मोदी ने व्यक्तिगत जीवन में भी खूब संघर्ष किया। जीविका के लिए पैतृक व्यवसाय रेडिमेड को भी संभाला। कम्प्यूटर संस्थान खोले। बच्चों को भी पढ़ाकर अपना खर्च निकाला।
इस बीच उन्हें 1990 में पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया। चुनाव जीतने पर वे विधायक दल के मुख्य सचेतक बने। नवम्बर 1996 से 2004 तक बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। वर्ष 2000 में पहली बार सात दिनों की नीतीश सरकार में संसदीय मंत्री बने। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में भागलपुर से सांसद बने। वर्ष 2005 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने। नवम्बर 2005 में जब बिहार में एनडीए सरकार बनी तो उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया। जून 2013 में भाजपा के सरकार से अलग होने पर विप में नेता प्रतिपक्ष और विधानमंडल के नेता बने। जुलाई 2017 में जब फिर से बिहार में एनडीए सरकार बनी तो नीतीश सरकार में फिर से बिहार के उपमुख्यमंत्री बने। दिसम्बर 2020 में वे राज्यसभा के सांसद बने। इसी साल उनका सांसद का कार्यकाल समाप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपनी बीमारी सार्वजनिक की थी।
लोकसभा व विधान सभा सहित चारों सदनों के सदस्य रहे
भाजपा के दिग्गज नेता सुशील कुमार मोदी लोकसभा सहित चारों सदनों के सदस्य रहे हैं। छात्र आंदोलन से राजनीति में कदम रखने वाले सुशील कुमार मोदी लोकसभा, राज्य सभा, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। 1990 से वे सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। पटना केंद्रीय विधान सभा (अब कुम्हरार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र) विधायक निर्वाचित हुए। भाजपा ने उन्हें विधानसभा में मुख्य सचेतक बनाया। वे विधान परिषद के सदस्य भी रहे। 2004 में भागलपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 2005 में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने पर उन्हें उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। अप्रैल 2024 में ही उनका राज्यसभा का कार्यकाल पूरा किया था।