बिहटा के लाल की शहादत पर गर्व से चौड़े सीने में भरा है गुस्सा, पिता ने कहा- शहादत का बदला कब लेगी सरकार
लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों और हिन्दुस्तानी जवानों के बीच हुई हिंसक संघर्ष में बिहटा के लाल सुनील कुमार शहीद हो गए। तारानगर सिकरिया पंचायत में जैसे ही सुनील के शहीद होने की सूचना थानाध्यक्ष...
लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों और हिन्दुस्तानी जवानों के बीच हुई हिंसक संघर्ष में बिहटा के लाल सुनील कुमार शहीद हो गए। तारानगर सिकरिया पंचायत में जैसे ही सुनील के शहीद होने की सूचना थानाध्यक्ष अवधेश कुमार झा और सीओ विजय कुमार सिंह ने दी गांव में सन्नाटा छा गया। लोग सुनील के घर के पास इकट्ठा होने लगे। तारानगर में सुनील के माता-पिता रहते हैं। पिता का नाम वासुदेव साव है।
शहीद सुनील की मां ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस लॉकडाउन में उनका लाल उनको घर में रहने की हिमायत करता था और सुरक्षित रहने की सलाह देता था। वही, लॉकडाउन उनके वीर सपूत के लिए काल बन जाएगा। मां यह कहते-कहते फफक पड़ीं कि लॉकडाउन के कारण उनका लाल घर नहीं आ सका। अगर लॉकडाउन नहीं होता तो आज उनका लाल उनके पास होता। दरअसल शहीद सुनील कुमार पिछले साल नवंबर में अपने घर तारानगर आए थे और वो इसी हफ्ते घर आने वाले थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण छुट्टी नहीं मिल सकी।
मां को तो ये भी नहीं पता है कि किस युद्ध ने उनके लाल को निगल लिया। वो तो सिर्फ इतना ही जानती है कि उनका बेटा किसी बर्फ वाली जगह पर देश की रक्षा कर रहा है। उनका मन ये मानने को तैयार नहीं थीं कि अब सुनील इस साल घर नहीं आयेगा। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उनकी बूढ़ी आंखों से अचानक रोशनी छीन ली हो। पिता कुछ बोल नहीं रहे थे, सिर्फ लोगों की सूरत निहार रहे थे। इस गमगीन माहौल के बीच शहीद सुनील अमर रहे के नारे लगते रहे।
शहादत का बदला कब लेगी सरकार
पिता वासुदेव की जुबान पर गम और गुस्सा दोनों था। गम इस बात का कि उन्होंने एक देशभक्त बेटे को खोया और गुस्सा इस बात का आखिर ये कब तक। पिता की जुबान मौत की खबर मिलने के बाद मौन है। अब शायद सरकार से उनका सवाल यही होगा कि उनके बेटे की मौत का बदला सरकार कब लेगी। यही नहीं देश पर मर मिटने वाले ऐसे बीसों भारतीय सपूतों के परिजनों का भी यही सवाल होगा। शहीद के घर पर मौजूद हर शख्स यही सवाल करता रहा।
वीर को सलामी देने लगाए रहे टकटकी
देर शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव नहीं आया था। लोगों की निगाहें उस वीर को सलामी के लिए टकटकी लगाए बैठी है। दानापुर से सेना के अफसर भी सलामी की तैयारियों में गांव आ चुके थे। उनके बड़े भाई अनिल कुमार ने बताया कि वो चाहते हैं कि उनके भाई का अंतिम संस्कार अब गुरुवार सुबह ही हो क्योंकि बारिश के कारण रात को परेशानी होगी।
तिरंगा लेकर सुनील अमर रहे के नारे लगाते रहे क्षेत्र के युवा
शहीद सुनील के गांववालों को अपने लाल की शहादत पर गर्व है। तभी तो गांव के युवाओं की टोली जोश में उनके घर के बाहर तिरंगा लहराती रही। युवाओं का जोश इतना था सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद लोग तिरंगा लेकर सुनील के घर पर आ गए। तिरंगे को घर के आगे लगा दिया, पलभर में डीजे पर देश भक्ति गीत गूंजने लगे, मानो आज ही पंद्रह अगस्त है। गम के माहौल में गर्व भी हो रहा था कि सुनील ने उनके गांव के नाम को देश के मानचित्र पर अमिट निशान छोड़ दिया। यह सदियों - सदियों तक याद किया जाएगा।
वर्ष 2002 में हुई थी बहाली
शहीद सुनील की स्कूली शिक्षा अपने पैतृक गांव में ही हुई थी। बाद में वह बाघाकोल हाई स्कूल से मैट्रिक और बिहटा जीजे कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की थी। वे बिहार रेजिमेंट में वर्ष 2002 में शामिल हुए और शादी 2004 में सकरी निवासी रीति कुमारी से हुई थी। शहीद सुनील कुमार के दो बेटे हैं और एक बेटी है।
6 माह पहले छुट्टी पर आए थे सुनील
दानापुर सगुना मोड़ के पास मैनपुरा की रीति देवी मंगलवार दिनभर टीवी पर भारत-चीन सेना के बीच खूनी संघर्ष की खबरें देखती रहीं। अगली सुबह बुधवार सुबह भी बच्चों को खाने-खिलाने में जुटी थीं। टीवी चल रहा था। उसे क्या पता था कि जो वह देख-सुन रही है, उसमें उसकी जिंदगी उजड़ने की मनहूस खबर भी है।
सीमा पर संघर्ष ने उनके सुहाग को छीन लिया है। बुधवार सुबह जब रीति के ज्येष्ठ अनिल कुमार मैनपुरा स्थित घर पहुंचे तो उनके बच्चे बड़े पापा को देख खुश हुए। शहीद सुनील की 13 वर्षीय पुत्री सोनाली, 11 वर्षीय पुत्र आयुष व 5 वर्षीय पुत्र विराट उनके पास पहुंचे। विराट उनसे लिपट गया लेकिन अनिल ऐसे खड़े रहे जैसे उन्हें काठ मार गया हो। अनिल की चुप्पी को देख तीनों मासूम बच्चे चुप्पी को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे। तभी कमरे में पहुंची रीति उनके चेहरे को देख भांप गई।
इधर रीति को देखकर अनिल से रहा न गया। उनकी डबडबायी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी। देखते ही देखकर घर में कोहराम मच गया। अनिल ने बताया कि भाई छह महीना पहले छुट्टी पर आया था। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए मैनपुरा में घर बनवाया। तीनों बच्चे आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं। पैतृक घर बिहटा के तारानगर सिकड़ी है। जहां पिताजी वासुदेव साव, मां रुक्मिणी देवी और हम अपने परिवार के साथ रहते हैं। शहादत की खबर सुनकर तारानगर में घर पर ग्रामीणों की भीड़ उमड़ी हुई है। अनिल ने बताया कि इस शहादत का बदला चीन से लेने की जरूरत है। चीनी सेना ने विश्वासघात किया है।