बिना सही लाइसेंस चल रहा हर पांचवां कमर्शियल वाहन, हर छठा चालक नाबालिग, 11 में एक बगैर डीएल
परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में बड़ा खुलासा हुआ है। जिसमें पता चला है कि बिहार में हर छठा ड्राइवर नाबालिग है, हर 11वां वाहन चालक बिना लाइसेंस के वाहन चला रहा है।
यूपी के उन्नाव में लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस पर हुए बस हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई। जिसमें 16 लोग बिहार के रहने वाले थे। जिस बस-टैंकर की टक्कर हुई थी। उसका परमिट, बीमा और फिटनेस तीनों चीजें एक्सपायर्ड हो चुकी थी। बिना कागजात के बिहार की बस दिल्ली तक अवैध तरीके से दौड़ रही थी। बात अगर बिहार की करें तो सूबे में हर पांचवां व्यावसायिक वाहन चालक बगैर उपयुक्त लाइसेंस के गाड़ी चला रहा है। उसके पास कॉमर्शियल लाइसेंस ही नहीं है। यही नहीं हर छठा ड्राइवर नाबालिग है। जबकि हर 11वां वाहन चालक बगैर किसी लाइसेंस के गाड़ी दौड़ा रहा है। पिछले दिनों परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में इसका खुलासा हुआ है।
यही नहीं यह भी पता चला है कि वाहनों के परिचालन के लिए निर्धारित लाइसेंस का उपयोग भी नहीं किया जाता है। मतलब बिहार में गाड़ी चलाने के लिए जो जरूरी दस्तावेज और ड्राइविंग के जो नियम हैं। उसका पालन बड़ी तादाद में लोग नहीं कर रहे। यही वजह है कि राज्य में रोड एक्सीडेंट के मामले भी काफी बढ़े हैं।
मुजफ्फरपुर समेत उत्तर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी, बेतिया से 350 से अधिक स्लीपर डबल डेकर बसें दिल्ली व अन्य राज्यों के बड़े शहरों तक जाती हैं। लंबी दूरी की इन बसों में से ज्यादातर में पुरानी बसों में ही मनमाना बदलाव कर डबल डेकर बनाकर चलाई जाती हैं। बस में बदलाव के लिए एमवीआई से मंजूरी भी नहीं ली जाती। बिना मंजूरी मनमाने बदलाव के बाद भी अवैध बसों का फिटनेस एमवीआई कार्यालय से पास हो जाता है और इस आधार पर इन्हें टूरिस्ट परमिट मिल जाता है।
बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को ठूंसकर बैठाया जाता है। एक बस में 70 से 80 यात्रियों को ढोया जाता है। डबल डेकर बनाई गई बसों को लोहे के चादर और प्लाइवुड से पैक कर दिया जाता है। इनमें न इमरजेंसी गेट होता है न स्पीड गवर्नर। दिल्ली जाने वाली अधिकांश बसों का परिचालन चौक-चौराहों से हो रहा है।
टूरिस्ट वीजा होने के कारण स्टैंड से इनका परिचालन नहीं होता है। स्टैंड से स्थाई परमिट वाली बसें ही खुलती हैं। हालांकि, अवैध तरीके से दिल्ली चलाई जा रही बसों के ऑनर का बैरिया, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी बस स्टैंड में कार्यालय भी खुला है, जहां टिकट की बुकिंग की जाती है।
उत्तर बिहार के जिलों के तमाम इलाकों से हर दिन 250 से 300 बसें यूपी, दिल्ली और राजस्थान के लिए खुलती हैं, लेकिन इनमें से महज पांच बसों का ही निबंधन मुजफ्फरपुर में हुआ है। इन बसों में 85 प्रतिशत यूपी के विभिन्न जिलों में तो 10 फीसदी नई दिल्ली में निबंधित हैं। शेष बसों का कुछ अता पता नहीं है, क्योंकि ये बाकी निबंधित बसों के कागजात के सहारे चलाई जा रही हैं।
मिली जानकारी के अनुसार इन बसों का संचालन रास्तों में पड़नेवाले जिलों के परिवहन पदाधिकारियों, पुलिस थानों और अन्य संबंधित विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से होता है। लंबी दूरी की ज्यादातर बसें सिंगल ड्राइवर के हवाले रहती हैं। ऐसे में बस चालक को 18 से 24 घंटे तक लगातार बस चलानी पड़ जा रही है। इस कारण रास्ते में नींद आने के कारण भी हादसे होते हैं। नियम के अनुसार लंबी दूसरी वाली बसों में कम से कम दो चालक रखना अनिवार्य है। दो चालकों का ब्योरा देने पर ही टूरिस्ट परमिट मिलता है।
लंबी दूरी की ज्यादातर बसों का परिचालन टूरिस्ट परमिट पर हो रहा है। ये बसें नियमित सवारियां ढोती हैं। झारखंड व पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य किसी राज्य के लिए बसों को परमिट नहीं है। टूरिस्ट परमिट पहली बार अधिकतम 14 दिनं का मिलता है। यह दो बार अधिकतम 28 दिनों के लिए बढ़ता है। अंतरराज्यीय बस परिवहन के लिए बिहार का केवल झारखंड और पश्चिम बंगाल से करार है।