छठ गीतों से बॉलीवुड तक बिखेरा आवाज का जादू, जानिए कौन थीं पद्म श्री शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा को संगीत में उनके योगदान के लिए 1991 में 'पद्म श्री' और 2018 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। साल 2016 में 'सुपावो ना मिले माई' और 'पहिले पहिल छठी मैया' जैसे दो नए छठ गीत रिलीज किए। इन गीतों से लोगों ने छठ पूजा के महत्व को समझा।
बिहार की लोकप्रिय गायिका शारदा सिन्हा का दिल्ली एम्स में मंगलवार को निधन हो गया। बीते कई दिनों से उनका इलाज चल रहा था। वो ब्लड कैंसर मल्टीपल मायलोमा से जूझ ही थीं। अपनी आवाज से उन्होने पूरे देश में शोहरत और मुकाम हासिल किया। बिहार का भी नाम रोशन किया। आपको बताते हैं कौन थीं शारदा सिन्हा? शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 में सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ था। अपने परिवार में 8 भाइयों की इकलौती बहन थीं। बचपन से ही उन्हें संगीत में रूचि थी। मैथिली लोकगीत से उनका प्रेम बहुत गहरा था। बेगूसराय के सिंहमा में ससुराल थी, समस्तीपुर महिला कॉलेज में संगीत की प्रोफेसर और एचओडी थी। और काफी वक्त से पटना में परिवार के साथ रह रहीं थी। शारदा सिंह ने मैथिली के अलावा भोजपुरी, मगही और हिंदी में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। बॉलीवुड की कई फिल्मों में उन्होने अपनी आवाज दी।
शारदा सिन्हा को संगीत में उनके योगदान के लिए 1991 में 'पद्म श्री' और 2018 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। साल 2016 में 'सुपावो ना मिले माई' और 'पहिले पहिल छठी मैया' जैसे दो नए छठ गीत रिलीज किए। इन गीतों से लोगों ने छठ पूजा के महत्व को समझा। शारदा सिन्हा छठ पूजा के गीतों की लोकप्रिय गायिका थीं। उन्होंने 'केलवा के पात पर उगलन सूरजमल झुके झुके' और 'सुनअ छठी माई' जैसे छठ गीत गाए, जो लोगों की जुबां पर चढ़ गए। शारदा सिन्हा के छठ गीतों से महापर्व और भी खास बन जाता है। शारदा सिन्हा की आवाज का जादू सिर्फ बिहार तक ही नहीं बल्कि पूरे देश में छाया रहा। इलाहाबाद में हुए बसंत महोत्सव में शारदा ने अपने गायन से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था।
सलमान खान की फिल्म सुपरहिट फिल्म 'मैंने प्यार किया' का गाना 'काहे तो से सजना' उनकी आवाज में बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा, 'गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2' और 'चारफुटिया छोकरे' जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अपनी आवाज दी। शारदा सिन्हा पारंपरिक गायिकी के साथ-साथ आधुनिकता को भी अपनाया। सोशल मीडिया पर भी वो काफी एक्टिव रहती थीं। अपने फैंस से उनका कनेक्शन हमेशा रहता था। पिछले पांच दशकों से बिहार की लोकगायन परम्परा की सशक्त हस्ताक्षर रहीं शारदा सिन्हा के गाये छठ और विवाह गीत घर-घर में लोकप्रिय हैं।
उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और मगही लोक संगीत को न सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश और विश्व में पहचान दिलाई। 1979 में उनकी नियुक्ति ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में बतौर संगीत शिक्षिका के तौर पर हुई थी। वह समस्तीपुर स्थित महिला महाविद्यालय से 2017 में रिटायर हुई थीं। शारदा सिन्हा के पति बृजकिशोर सिन्हा थे। वो शिक्षा विभाग में रिजनल डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे। इसी साल 22 सितंबर को निधन हुआ था। तभी से शारदा सिन्हा भी सदमे रहती थीं। उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी।