शारदा सिन्हा को राष्ट्रीय और राजकीय सम्मान मिले, पूर्व राष्ट्रपति ने बिहार कोकिला को दी श्रद्धांजलि
शारदा सिन्हा को याद करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने सेवाओं से संबंधित कठिनाइयां मुझसे साझा की थीं। मैंने उचित प्रक्रिया का पालन किया
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पटना में आयोजित एक समारोह में बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा सच्चे अर्थों में संगीत साधना की देवी थीं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें श्रद्धांजलि देनी पड़ेगी। आज के आधुनिक चिकित्सा के युग में 80 वर्ष तक आयु तो कम से कम होनी चाहिए। उनकी आयु मात्र 71 - 72 वर्ष की थी। मैं बिहार में एक दीक्षांत समारोह में आया था। मुझे सूचना मिली तो आए बिना न रह सका। जब वे पहली बार राजभवन में मिलीं तो बहुत प्रभावित किया। शिक्षा जगत की भद्र महिला के रूप में उनकी पहचान है। वह काफी संवेदनशील थीं। उन्होंने शारदा सिन्हा को राष्ट्रीय सम्मान दिए जाने की वकालत की।
शारदा सिन्हा को याद करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने सेवाओं से संबंधित कठिनाइयां मुझसे साझा की थीं। मैंने उचित प्रक्रिया का पालन किया। मुझे पता चला कि अगर उनकी सेवा को नियमित नहीं किया गया तो 36 साल के बाद उन्हें सेवानिवृत्ति का लाभ नहीं मिलेगा। उनके साथ साथ अन्य कई शिक्षकों का लाभ मिला। मुझे खुशी है कि उनके लिए कुछ कर सका। इससे ज्यादा खुशी थी कि उच्च शिक्षा के लिए कार्यरत शिक्षकों के साथ न्याय हो सका। मैं बिहार में अपनी पोस्टिंग के लिए ईश्वर का धन्यवाद देता हूं। यह संयोग है कि मेरे हाथों से उन्हें सम्मान मिला जबकि पद्म भूषण की घोषणा पहले ही हो चुकी थीं। यह मेरा सौभाग्य से कि संगीत विद्या की आराधिका को सम्मानित करने का मौका मिला। वे भारतीय लोकगीत परम्परा की अनुपम उदाहरण थीं।
उन्होंने कहा कि राजभवन में उन्हें पांच छह बार उन्हें बुलाया। मुख्यमंत्री भी आए थे। पूरा मंत्रिमंडल आता था। शारदा सिन्हा छठ का पर्याय थीं। उनके लोकगीतों ने बिना छठ पर्व अधूरा है। मॉरीशस की एक घटना की याद दिलाते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि वे कार में बैठी थीं उस कार का चालक उनका ही छठ गीत बजा रहा था। यह अनायास हो रहा था। चालक से पूछने पर बताया कि भारत की महान गायिका शारदा जी का गीत है। शारदा जी ने जब अपनी पहचान बताई तो भावुक हो गया। शारदा जी को सबने देखा कम, सुना ज्यादा। छठ व्रत में हमारी बहनें शारदा जी की तस्वीर सामने रखकर छठ कर थीं। उनका संकल्प, अप्रतिम साधना, उनके गीत हमारे बीच हैं। उन्हें राष्ट्रीय और राजकीय सम्मान मिले। यह सम्मान एक तरफ और लोक में उनकी छवि एक तरह। वे सच में महान थीं। अपनी गायन कला के प्रति प्रेम यह कि अंतिम सांस तक गुनगुनाती रहीं।