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सर्द मौसम में आरोग्य का वरदान देगा सीमांचल का सुस्वादु साग

-फोटो : पूर्णिया, धीरज। जाड़ों में आरोग्य का वरदान दे रहा है सीमांचल का सुस्वादु साग। अभी सर्दी के मौसम में खाने की थाली में 10 प्रकार के साग का स्वाद

Newswrap हिन्दुस्तान, पूर्णियाTue, 24 Dec 2024 12:10 AM
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पूर्णिया, धीरज। जाड़ों में आरोग्य का वरदान दे रहा है सीमांचल का सुस्वादु साग। अभी सर्दी के मौसम में खाने की थाली में 10 प्रकार के साग का स्वाद ले सकते हैं। बाजार में अभी पालक, बथुआ, मेथी, मटर, चना, खेसारी साग की मांग बढ़ गयी है। लाफा साग के शौकीन पिछले एक माह से इसका स्वाद ले रहे हैं। कटैया साग का तो स्वाद ही निराला है। सरसों के साग के साथ मक्के की रोटी का भी लो जमकर आनंद ले रहे हैं। साग न सिर्फ एक भोजन है जिसके स्वाद निराले हैं बल्कि यह शरीर के लिए भी आरोग्यदायी है। आमतौर पर साग में फाइबर होता है, जो कैंसर, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हॉर्ट की बीमारी से बचाता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। चूंकि सीमांचल के चारों जिलों में बच्चे से लेकर महिलाएं एनीमिया (रक्त अल्पता) की चपेट में हैं। इसलिए उनके लिए साग रामबाग है। सीमाचंल में साग की खेती का दायरा भी बढ़ा है। यहां गांव से लेकर शहर तक अमूमन हर घर दरवाजे पर लोग पालक के अलावा लाल व हरी साग समेत कोई न कोई साग लगाते हैं। साग की बढ़ती मांग और जरूरत को देखते हुए अब इसकी खेती का दायरा भी बढ़ने लगा है। सीमांचल में करीब चार से पांच हजार हेक्टेयर में साग की खेती होती है।

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-स्वास्थ्य के लिए वरदान : इम्यूनिटी बूस्टर है साग :

-साग ना सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, बल्कि खाने का स्वाद भी दोगुना कर देते हैं। शरीर में आयरन की कमी भी दूर होती है। साग में कई तरह के पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे आयरन, फ्लेवोनॉएड्स, पॉलीफेनॉल्स, विटामिन ए, सी, के, पोटैशियम, मैंगनीज आदि। यह शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करते हैं और शरीर को फ्री रैडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। साग खाने से आपकी इम्यूनिटी बूस्ट होती है, जिससे आप कई तरह की बीमारियों से बचे रह सकते हैं। साग में विटामिन सी भी होता है और यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। साग में फाइबर भी अधिक होता है, जो पाचन शक्ति को दुरुस्त रखता है।

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-कहते हैं वैज्ञानिक : सीमांचल के लोग चाव से खाते हैं साग :

-भोला पासवान कृषि महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक डॉ. विकास कुमार कई सीमाचंल और कोसी में साग की खेती काफी होती है। जहां सर्दी ज्यादा होती है, वहां साग की प्रचूरता होती है। पूर्णिया में पालक, बथुआ, मेथी, लाल साग, हरा साग, लाफा साग, मटर, खेसारी, चना साग, कटैया साग समेत कई तरह के साग उगाए जाते हैं। वैज्ञानिकों के शोध में पाया गया है कि साग में आयरन, खनिज लवण एवं विटामिन प्रचूर मात्रा में उपलब्धता होती है। साग स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना जाता है। सीमांचल के क्षेत्रों में साग को बढ़े चाव से खाया जाता है।

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-खेती का तरीका : घर-द्वार में भी लगाते हैं साग : 45 से 60 दिनों में तैयार :

-सर्दी के मौसम में ही साग उगाई जाती है। 45 से 60 दिन में साग तैयार होती है। बीज को मिट्टी में डालने से लेकर कटाई तक 60 दिनों की पूरी प्रक्रिया है, जिसमें साग की खेती होती है। बीज बाजार में आसानी से उपलब्ध है। सितंबर से दिसंबर तक कभी भी साग लगा सकते हैं। बीज को पानी में एक रात डालकर रखें। जर्मिनेशन नहीं होने वाले बीज तैरने लगते हैं। इसे छांट लेते हैं। इसका छिड़काव करते हैं। पंक्तिबद्ध विधि ही साग लगाने का वैज्ञानिक तरीका है।

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-धार्मिक मान्यता :

-दुर्योधन का मेवा त्योगा, साग विदुर घर खाओ मेरे मोहन। यह धार्मिक गीत है। जो सीमांचल के क्षेत्रों में महिलाओं के द्वारा गुनगुनाया भी जाता है। साग की धार्मिक महत्ता है। यहां के भोज-भात में साग भी प्रमुखता से परोसा जाता है। कहा जाता है कि अज्ञातवाश के दौरान पांडव सीमांचल के इलाके में थे। ऐसे में कुछ साधु-ऋषि अचानक पहुंच गये। द्रोपदी के बर्तन में साग का एक कण था। उन्होंने श्री कृष्ण की आराधना की। सभी साधु चावल और साग भरपेट खाकर विदा हुए।

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