जलालगढ़ किला उपेक्षित, सीएम के दौरे के बाद भी नहीं बदली सूरत
कसबा में पर्यटन विकास की संभावनाओं के बावजूद ऐतिहासिक जलालगढ़ किला उपेक्षित है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा की गई घोषणाओं के बावजूद किले की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इतिहास के इस धरोहर को...
कसबा। पर्यटन विकास की तमाम संभावनाओं के बावजूद न तो यहां कभी कारगर कदम उठाए गये और ना ही ऐतिहासिक धरोहरों को अक्षुण्ण रखने का इंतजाम किया गया। जिससे कसबा विधानसभा क्षेत्र की ऐतिहासिक पहचान मिटती जा रही है। हालांकि आठ वर्ष पूर्व जलालगढ़ स्थित जलालउद्दीन के किले का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रमण किया था। उसके बाद किले की रखरखाव को लेकर कई घोषणाएं भी हुई थी। फिर भी किला का हाल अब भी पूर्व की तरह है। कसबा मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित जलालउद्दीन का किला है। तत्कालीन जिला पदाधिकारी द्वारा इसे पूर्णिया जिले का मुख्यालय बनाये जाने की बातें इस किले के ईंट में दफन होकर रह गयी। बताया जाता है कि सैय्यद राय खान के इकलौते पुत्र राजा सैय्यद मोहम्मद जलाल उद्दीन खां ने जलालगढ़ में किले का निर्माण कराया था। मध्य युग का यह गौरवशाली किला आज पूर्णत: उपेक्षित है। कोसी के कछार के बीच इस विशाल किले को मुस्लिम शासकों द्वारा नेपाल की ओर से होने वाले आक्रमणों को रोकने के उद्देश्य से एक सीमावर्ती दुर्ग की तरह इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि इस किले का निर्माण कब हुआ और किसने करवाया आज भी यह एक पहेली बनी हुई है।
प्रसिद्ध ब्रिटिश सर्वेक्षणकर्ता डॉ. बुकानन ने अपने पुस्तक में लिखा है कि जलालगढ़ स्थित जीवछ तालाब के आसपास किले का निर्माण पूर्णिया के नबाब मिर्जा महियार खां ने कराया था। वहीं इस पुस्तक में लिखा गया है कि वीरनगर के राजा को पंद्रह हजार घुड़सवार एवं पैदल सेना थी। स्थानीय चकवार जनजाति के लोग विद्रोही हो गये थे। वीरनगर आने जाने वाले को ये चकवार लोग लूटते थे। जिससे जनता को यात्रा करने में कठिनाई होती थी। इसलिए मोरंग की सीमा के पास जलालगढ़ किले का निर्माण कराया गया था। एक अन्य दूसरे पुस्तक के अनुसार सन 1723 ई. में जब नवाब सैफ खां पूर्णिया का फौजदार बना तो उसे जलालगढ़ किले का कमांडेन्ट बनाया गया और किले की देखरेख के लिए जागीरें प्रदान की गयी। जलालगढ़ स्थित इस किले के बारे में यह भी कहा जाता है कि पूर्णिया के उस समय के जिला पदाधिकारी के जलालगढ़ का किला भा गया था। साथ ही किले के चारों तरफ कलकल बहती नदी की धारा से जिला पदाधिकारी प्रसन्नचित होकर इसे पूर्णिया जिले का मुख्यालय बनाना चाहते थे। किन्तु उक्त जिलाधिकारी के तबादले के बाद किले में जिला मुख्यालय स्थापित करने की योजना धरी रह गयी।
महाभारतकालीन अवशेष महाभारत की याद दिलाती: वहीं हाल गढ़बनैली स्थित काली पोखर व मंदिर का है जहां महाभारतकालीन अवशेष आज भी महाभारत काल की याद दिलाती है। इसी तरह कसबा मदारघाट दरगाह शरीफ स्थित जिंदा शाह मदार का मजार भी उपेक्षा के कारण अपनी ऐतिहासिक पहचान को खोता जा रहा है। जरूरत है ऐसे धरोहकर को संजोकर रखे जाने की जिनकी अबतक सरकारी पहल तक नहीं हो सकी है। हालांकि, किले को लेकर कानूनी अड़चनें भी व्यवधान हैं।
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