पुलिस का पहरा-कोर्ट का डंडा, नहीं थम रहा नशे का धंधा
हिन्दुस्तान खास : -ढाई साल में 47 तस्करों को अदालत ने दी सजा -नए-नए तरीके से पुलिस को चकमा दे रहे तस्कर पूर्णिया, मनोज सिंह। पुलिस का पहरा और कोर्ट
पूर्णिया, मनोज सिंह। पुलिस का पहरा और कोर्ट का डंडा चलने के बावजूद सीमांचल में नशे का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते ढाई वर्षों में पूर्णिया की अदालत ने ऐसे 47 कारोबारियों को जेल की सजा दी जो स्मैक एवं गांजा तस्करी से जुड़े थे। दरअसल, सख्ती के बाद भी लोगों में नशे की वस्तुओं की मांग बनी हुई है। यह मांग आपूर्ति को जन्म देती है और अवैध रूप से नशे के कारोबारियों को मुनाफा कमाने का अवसर मिल जाता है। इन दिनों युवाओं में नशे का प्रचलन ज्यादा बढ़ गया है। शराबबंदी के बाद से युवा वर्ग का झुकाव स्मैक और गांजा जेसे नशीले पदार्थों की ओर अधिक हुआ है। जानकारों का मानना है कि सीमांचल का यह इलाका नेपाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से सटा है, जहां से तस्करी के जरिए गांजा एवं स्मैक आसानी से लाया जाता है। इन सीमाओं की निगरानी करना भी चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे तस्करी को रोक पाना कठिन हो जाता है। तस्कर अक्सर ग्रामीण इलाकों और अन्य राज्यों से होकर तस्करी करते हैं, जहां पुलिस की सतर्कता कम होती है।
...तस्करी के अपनाए जाते तरीके :
तस्कर लगातार नए-नए तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें छोटे वाहनों, ट्रकों, लक्जरी गाड़ियों और यहां तक की मरीजों को ढोने वाले एंबुलेंस का भी सहारा लेते हैं। अभी हाल के दिनों में अदालत ने ऐसे की एक गांजा तस्कर को सजा सुनाई जो एंबुलेंस में मरीज के स्ट्रेचर के नीचे गांजा छुपाकर लाया था। वहीं कई ऐसे मामले होते हैं जिसमें नशे के कारोबारी महिलाओं और बच्चों का भी इस्तेमाल गांजा एवं स्मैक को एक स्थान से दूसरे स्थान पर धड़ल्ले से पहुंचाते हैं। पुलिस के लिए इन तस्करी को रोकना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हालांकि कई मामलों में पुलिस को सफलता भी मिलती है लेकिन इससे तस्करों का मनोबल नहीं टूटता है।
...सामाजिक और आर्थिक कारण :
गांजा तस्करी में शामिल कई लोग गरीब और बेरोजगार होते हैं जो आर्थिक लाभ के कारण इस अवैध गतिविधि में शामिल होते हैं। तस्करी का यह नेटवर्क इतना व्यापक हो गया है कि इसे जड़ से खत्म करना मुश्किल हो रहा है। वहीं नशे का अवैध कारोबार लोगों को बहुत लाभकारी लगता है इसलिए कई लोग इस जोखिम को उठाने के लिए तैयार होते हैं, चाहे कानून कितना भी कठोर क्यों ना हो जाय।
....तस्करी का मजबूत नेटवर्क :
इस क्षेत्र में तस्करी का एक मजबूत नेटवर्क पहले से ही मौजूद है, जिसमें स्थानीय लोगों का सहयोग भी शामिल होता है। तस्करों को स्थानीय स्तर पर समर्थन मिलने से उनका धंधा फलता-फूलता है। इसके साथ ही कई मामलों में स्थानीय राजनीति और तस्करों के बीच के संबंध भी तस्करी को बढ़ावा देते हैं। कुछ मामलों में उतस्करों को राजनीतिक संरक्षण मिलने की वजह से उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती।
...समाज में जागरुकता की कमी:
समाज में नशे के दुष्प्रभावों के बारे में पर्याप्त जागरुकता नहीं है। इसके कारण लोग अवैध रूप से शराब और नशे की वस्तुएं खरीदते और बेचते रहते हैं। सीमांचल का अधिकांश हिस्सा आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, जहां बेरोजगारी और गरीबी अधिक है। इन परिस्थितियों में स्थानीय लोग तस्करी में शामिल होने के लिए मजबूर होते हैं क्योंकि यह उनके लिए शीघ्र एवं आसान आय का स्रोत होता है।
....कानून प्रवर्तन की कमजोरियां:
सीमांचल क्षेत्र के दूरदराज के इलाकों में पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों की पहुंच सीमित है। इन इलाकों में अक्सर गश्त और निगरानी की कमी होती है, जिससे तस्करों को अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने में सुविधा होती है। यहां की भौगोलिक स्थिति खासकर नेपाल और बांग्लादेश से निकटता, इसे तस्करी के लिए एक आदर्श मार्ग बनाती है। इन सीमाओं के माध्यम से अवैध रूप से गांजा और स्मैक जैसी नशीली पदार्थों की तस्करी आसानी से की जा सकती है। साथ ही कई मामलों में गांजा तस्करी के आरोपी कानूनी प्रक्रिया की धीमी गति का लाभ उठा लेते हैं और अपने कारोबार को जारी रखते हैं।
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-साल -सजा पाने वाले तस्कर
2020 10
2021 04
2022 07
2023 25
2024 (अगस्त तक) 15
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...बोले अधिकारी :
युवाओं में नशे के सेवन का प्रचलन अधिक हुआ है। पुलिस की सख्ती के बावजूद तस्कर नए-नए तरीके अपनाकर कारोबार करते हैं। अदालत भी ऐसे मामलों में कड़ा रूख अख्तियार कर तस्करों पर कार्रवाई कर रही है।
-शंभू आनंद, विशेष लोक अभियाजक (एनडीपीएस)।
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