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दो दशकों में शहर की आबादी ने मिटा दी बनमनखी दशहरा मेला की पहचान

बनमनखी, जो पहले दुर्गा पूजा के मेले के लिए प्रसिद्ध था, अब बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण मेले के लिए जगह नहीं बची है। पहले जहां बड़े मेले लगते थे, अब वह क्षेत्र रिहायशी इलाकों में बदल चुका है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, पूर्णियाTue, 8 Oct 2024 12:42 AM
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बनमनखी, संवादसूत्र। कभी मशहूर दशहरा मेला के लिए बनमनखी शहर की पूर्णिया जिले में पहचान हुआ करती थी। बनमनखी में लगने वाला दुर्गा पूजा का मेला इतना मशहूर था कि पूर्णिया जिला समेत पड़ोसी देश नेपाल, बंगाल आदि समेत बिहार के विभिन्न इलाकों से लोग राजहाट में लगने वाले मेला को देखने पहुंचते थे। यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद चखने के साथ-साथ राजहाट से हाथी, घोड़ा, बैल, ऊंट तक खरीद कर अपने साथ ले जाते थे। हाल के दो दशकों में बढ़ी शहर की आबादी के कारण मेला लगाने के लिए अब जगह नहीं बचा है। जिस जगह पर कभी मेले में सर्कस, मौत का कुएं, थिएटर मंदिर के सामने मैदान में लगा करते थे वह अब रिहाईसी इलाके में तब्दील हो चुका है। मेले का दायरा घनी आबादी के बीच सिमट कर रह गया है। वहीं बनमनखी रेलवे दुर्गा मंदिर के सामने भी कभी बड़ा मैदानी इलाका हुआ करता था परंतु 2 दशकों में हुए विकास कार्यों के कारण यहां भी मेले का दायरा लगातार सिमटता चला गया। बनमनखी रेलवे दुर्गा मंदिर के ठीक सामने अमृत भारत योजना अंतर्गत नए मॉडल रेलवे स्टेशन का निर्माण हो रहा है जिसके कारण मेले के लिए जगह कम पड़ गई है। पहले यहां रेलवे स्टेशन परिसर में भी बड़े मेले का आयोजन होता था तथा काफी दूर दराज इलाके से लोग यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने पहुंचते थे। यहां लगने वाले मेले में आदिवासियों को कोड़ा नृत्य और मां की धूप आरती देखने हजारों की संख्या में लोग पहुंचते थे। यह विशेष आयोजन दशमी पूजा के दिन होता था जो अब विलुप्त हो चुका है। इसी तरह ठाकुरबाड़ी स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर परिसर में पहले से ही मेले का आयोजन के लिए जगह नहीं है उक्त मंदिर पहले से ही रिहाइसी इलाके हैं। हालांकि सड़क के किनारे दोनों और छोटी-मोटी फुटकर दुकान मेले में जरूर लगती है। वहीं काझी हृदय नगर स्थित आप रूपी दुर्गा मंदिर चारों ओर उपजाऊ खेत के बीच अवस्थित है। वहां पहले कभी मेले का आयोजन नहीं हुआ है। बड़ी तादाद में लोग वहां दर्शन के लिए जरूर पहुंचते हैं। 70 वर्षीय बुज़ुर्ग उपेंद्र मंडल, 78वर्षीय बुजुर्ग चमक लाल साह कहते हैं कि जब हम लोग युवक थे उसे समय जिस तरह से बनमनखी राजघाट में दुर्गा पूजा पर मेला लगता वह अब याद बनकर रह गया है। बढ़ी आबादी एवं शहरीकरण के कारण शहर में मेला लगने के लिए अब जगह नहीं बचा है।

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