Hindi Newsबिहार न्यूज़पटना106th Bihar Hindi Literary Conference Celebrates Foundation Day with Inauguration by Justice Ravi Ranjan

भारत की भी एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए: न्यायमूर्ति रवि रंजन

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 106वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि रंजन ने किया। उन्होंने भारत की राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल दिया। सम्मेलन में विभिन्न...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाSat, 19 Oct 2024 06:23 PM
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साहित्य सम्मेलन के दो दिवसीय 106वें स्थापना दिवस समारोह में 43वें महाधिवेशन का हुआ उद्घाटन पटना, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि।

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दो दिवसीय 106वें स्थापना दिवस का उद्घाटन शनिवार को हुआ। उद्घाटन झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और महानदी जल-विवाद न्यायाधिकरण के सदस्य न्यायमूर्ति रवि रंजन ने किया। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य राष्ट्रों की तरह भारत की भी एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। देश को एक सूत्र में बांधने के लिए संवाद की कोई एक भाषा नितांत आवश्यक है। इस अवसर पर डा सुलभ ने रवि रंजन को सम्मेलन की उच्च मानद उपाधि 'विद्या वारिधि' प्रदान की। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के स्वर में पहली बार बिहार ही हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने का संघर्ष आरंभ किया है, जिसे पूरे देश का समर्थन प्राप्त हो रहा है। महात्मा गांधी द्वारा स्थापित 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष और विश्रुत विद्वान प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि 'विद्यावाचस्पति' दी गई। उद्घाटन-समारोह में पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के 12 वर्षीय विद्वान प्रधानमंत्री डा शिव वंश पाण्डेय ने किया। मंच-संचालन डा शंकर प्रसाद ने किया।

इस अवसर पर साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित कथाकार अम्बरीष कांत के उपन्यास 'ख़त मिला नहीं', युवा-लेखिका पुनीता कुमारी श्रीवास्तव के उपन्यास 'सिद्धार्थ की सारंगी',लेखिका किरण सिंह की पुस्तक 'लय की लहरों पर' तथा सम्मेलन की पत्रिका 'सम्मेलन साहित्य' के महाधिवेशन विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। इस सत्र के संयोजक कुमार अनुपम थे।

कार्यक्रम में तीन सत्रों का आयोजन हुआ। महाधिवेशन के प्रथम सत्र का विषय 'भारत की राष्ट्रभाषा और अन्य भारतीय भाषाओं पर इसका प्रभाव रखा गया था। सत्र के मुख्य वक्ता और मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रवींद्र कुमार ने कहा कि हिन्दी भारतीय दर्शन और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा है। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन स्वागत समिति के उपाध्यक्ष पद्मश्री विमल जैन ने किया। सत्र का संचालन सम्मेलन के प्रचार मंत्री डा ध्रुव कुमार ने किया। इस सत्र के संयोजक थे डा मनोज गोवर्द्धनपुरी।

दूसरे सत्र का विषय था 'महाप्राण निराला की काव्य-दृष्टि'। मुख्य वक्ता और अनुग्रह नारायण महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो कलानाथ मिश्र ने कहा कि महाप्राण निराला की रचनाओं में दिव्य-चेतना है। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन स्वागत समिति के उपाध्यक्ष पारिजात सौरभ ने किया। सत्र की संयोजिका थी डा सुषमा कुमारी। तीसरे सत्र का विषय 'रामवृक्ष बेनीपुरी की भाव-भाषा' था। इस सत्र के मुख्य वक्ता और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी बच्चा ठाकुर ने कहा कि बेनीपुरी कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अवदान करते हुए एक महान साहित्यकार हो गए। पूर्णिया की वरिष्ठ साहित्यकार डा निरुपमा राय, डा सुमेधा पाठक तथा सागरिका राय ने भी विशिष्ट वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त किए। स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने, धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के पुस्तकालय मंत्री अशोक कुमार ने किया। मंच संचालन सम्मेलन की संगठन मंत्री डा शालिनी पाण्डेय ने किया। इस सत्र के संयोजक स्वागत समिति के उपाध्यक्ष डा आर प्रवेश थे।

तीनों वैचारिक सत्रों के बाद एक सांस्कृतिक-कार्यक्रम का आयोजन हुआ। सबसे पहले निराला की चर्चित काव्य-रचना 'राम की शक्ति पूजा' पर नृत्य-नाटिका का प्रदर्शन किया गया, जिसका निर्देशन सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास ने किया।इसके बाद 'हमन है इश्क़ मस्ताना' शीर्षक से डा शंकर प्रसाद का गायन हुआ। तीसरी प्रस्तुति सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक 'हवालात' के रूप में हुई। अंतिम प्रस्तुति बिहार की पारंपरिक लोक-नृत्य 'कजरी' और 'मुखौटा' नृत्य के रूप में हुई, जिनका नृत्य-निर्देशन सोमा आनंद ने किया।

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