Bihar Land Survey: जमीन का सर्वे हो पर शोर नहीं; चुनावी साल में धीमे चलेगा काम, सबको मिलेगा टाइम
- बिहार के लगभग 45 हजार गांवों में जमीन का मालिकाना हक स्पष्ट करने और लैंड रिकॉर्ड में उसे अपडेट करने के मकसद से 20 अगस्त से चल रहे बिहार भूमि सर्वेक्षण का काम रुकेगा नहीं लेकिन सर्वे का काम इस रफ्तार से होगा कि शोर ना हो। आम आदमी से विभाग तक सबको टाइम मिलेगा।
बिहार के लगभग 45 हजार गांवों में जमीन के मालिकाना हक का खाता-खतिहान ठीक करने के उद्देश्य से चल रहा बिहार भूमि सर्वेक्षण रुकेगा नहीं लेकिन उसे पूरा करने की जल्दबाजी विभाग या सरकार नहीं दिखाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर 20 अगस्त से काम शुरू हुआ है। इसके बाद से पुश्तैनी जमीन पर दावा करने के लिए जरूरी दस्तावेज बनाने में राज्य भर से आम लोगों की परेशानियों की खबरें आ रही हैं। वंशावली बनवाने में तो पसीने छूट रहे हैं। अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव है और पुराने विपक्षी दलों के साथ-साथ प्रशांत किशोर भी इसे जोर-शोर से उठा रहे हैं। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इससे घर-घर में झगड़ा-झमेला की शुरुआत हो गई है।
जेडीयू, बीजेपी और दूसरे एनडीए दलों के नेता गांव-गांव में जमीन सर्वेक्षण में आम लोगों को आ रही दिक्कतों का फीडबैक पटना पहुंचा रहे हैं। ऐसे में आधिकारिक रूप से सरकार के अधिकारी और मंत्री भले कह रहे हैं कि इसमें कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन जनता की चिंता से सरकार भी चिंता में आ गई है। सरकार में एक तबका है जिसे लगता है कि जमीन सर्वेक्षण के दौरान दिक्कतों का सामना कर रहे आम लोगों को विपक्षी दल भड़का या बरगला सकते हैं और विधानसभा चुनाव में इस कारण नुकसान हो सकता है।
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बिहार भूमि सर्वेक्षण के लिए सरकार ने कोई समयसीमा तय नहीं की है। इसलिए सरकार और भूमि सुधार विभाग के पास बिना इससे पीछे हटे, इसे लंबे समय में पूरा करने का विकल्प खुला है। माना जा रहा है कि सर्वे को लेकर जमीन पर लोगों की बेचैनी को देखते हुए सरकार इसे धीमे-धीमे आगे बढ़ाएगी। जैसी-जैसी समस्या सामने आएगी, उसका समाधान करते हुए काम पूरा किया जाएगा। इससे आम लोगों को पेपर बनाने और ठीक करने का जबकि विभाग को काम पूरा करने का समय मिल जाएगा।
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बीजेपी के एक बड़े नेता ने हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि काफी समय से लंबित जमीन सर्वेक्षण एक जरूरी काम था और नीतीश कुमार ने एक साहसिक फैसला लिया है। लेकिन जमीन के कागजात तैयार करने में लोगों को जमीन पर जो समस्या हो रही है उसका इस चुनावी साल में नुकसान हो सकता है। उन्होंने बताया कि कई नेताओं ने मुख्यमंत्री को पेपर तैयार होने में लग रहे समय और लोगों की समस्या से अवगत कराया है। बिहार में 100 साल से अधिक समय से सर्वे नहीं हुआ है और कई जमीन मालिक बाहर चले गए हैं। कई की जमीन की रसीद दादा और परदादा के नाम पर है। बहुत सारे लोगों की रसीद और कागजात अपडेट नहीं हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो दो-तीन पीढ़ी पहले प्रवासी हो गए और उन्हें पता तक नहीं है कि उनकी जमीन है कहां।
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हालांकि जमीन सर्वे पर सरकार का रुख साफ करते हुए राज्य के भूमि सुधार मंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने मंगलवार को कहा है कि कुछ जमीन माफिया सर्वे को रोकना चाहते हैं लेकिन यह जारी रहेगा। उन्होंने कहा- “कहीं कोई विवाद नहीं है। सर्वे नहीं रुकेगा।” इसी विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि सर्वे जारी रहेगा और प्रक्रिया के दौरान जो भी दिक्कत सामने आएगी, उसका निराकरण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सर्वे का फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है और यह समय की मांग भी है। उन्होंने कहा कि जनता के लिए ही यह सर्वे किया जा रहा है।
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भाजपा नेता ने बताया कि सरकार के सामने एक और समस्या है। सरकार के पास सरकारी जमीन का ही पूरा हिसाब नहीं है। इसकी वजह से कई परियोजनाएं लेट हो रही हैं। पटना-गया एक्सप्रेसवे इसका एक उदाहरण है जिसके लिए भूमि अधिग्रहण का काम कई साल से अटका हुआ है।
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सीएम नीतीश का साफ मानना है कि जमीन का विवाद बिहार में कानून-व्यवस्था की समस्या की अहम वजह है। एक बार जमीन का मालिकाना हक सही से तय हो जाएगा तो कई समस्याएं खुद-ही खत्म हो जाएंगी। देश भर में अपराध की हिसाब रखने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक जमीन विवाद के कारण क्राइम के मामले में बिहार देश भर में नंबर एक पर था। बिहार के लगभग 60 परसेंट मुकदमे के पीछे जमीन का विवाद था।