लालबीघा सूर्य पंचायतन मंदिर और छठ घाट पर पसरी है गंदगी
काशीचक प्रखंड के लालबीघा स्थित सूर्य पंचायतन मंदिर में छठ पूजा के लिए हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। हालांकि, यहां की साफ-सफाई का कार्य अब तक शुरू नहीं हुआ है। श्रद्धालु भगवान सूर्य की उपासना के साथ-साथ...
काशीचक, एक संवाददाता। काशीचक प्रखंड के लालबीघा स्थित सूर्य पंचायतन मंदिर व यहां का छठ घाट आस्था का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। यहां हजारों व्रती छठ पूजा में पहुंचते हैं लेकिन अब तक यहां साफ-सफाई का कार्य शुरू नहीं हो सका है। मंदिर परिसर में चार दिवसीय छठ व्रत के लिए हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। विगत तीन दशक से छठ व्रतियों के अर्घ्य दान के लिए यह छठ घाट स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्ष 1983 में जगद्गुरु आद्य श्री शंकराचार्य जी के द्वादश शताब्दी महोत्सव पर कैलाश पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री स्वामी विद्यानंद गिरी जी महाराज की पहल पर यहां स्थापित मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। वर्ष 1987 में महाराज जी के द्वारा ही मंदिर में भगवान भास्कर की पांच मुद्राओं वाली प्रतिमा की वैदिक रीति से प्राण-प्रतिष्ठा की गई थी। कालक्रम से मंदिर की महत्ता बढ़ती ही जा रही है। फलस्वरूप सूर्योपासना के लिए हर साल हजारों की संख्या में छठ व्रती यहां पहुंचते हैं और अपनी आस्था दर्शाते हैं। यहां अवस्थित 60 फीट ऊंचा भव्य मंदिर बेहद आकर्षक है। जबकि इसी परिसर में स्थित विशाल छठ घाट भी क्षेत्रीय तथा आस्थावान लोगों के लिए अपनी अलग ही अहमियत रखता है। ग्रामीण शम्भू सिंह बताते हैं कि वर्ष 1983 में स्वामी विद्यानंद गिरी जी महाराज की पहल पर मंदिर की आधारशिला रखे जाने तथा वर्ष 1987 में मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बाद के दिनों में श्रद्धालुओं के आर्थिक सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर परिसर स्थित विशाल पोखर के चारों और घाट की सीढ़ियों का निर्माण भी कराया गया। छठ महाअनुष्ठान को लेकर है विशेष महत्ता यहां होने वाले छठ महानुष्ठान को लेकर विशेष महत्ता है। हर मनोकामना पूर्ति होने की मान्यता से इसे दिनानुदिन प्रसिद्धि मिलती जा रही है। यही कारण है कि कार्तिक व चैत्र महीने के छठ व्रत के दिनों में यहां रहकर चार दिवसीय अनुष्ठान करने तथा अर्घ्यदान के लिए आस्थावान व्रतियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस मौके पर श्रद्धालु भगवान सूर्य की उपासना के बाद संतान, नौकरी-रोजगार और जीवन में सुख-शांति तथा समृद्धि की मनौती मांगते हैं। संतान प्राप्ति के बाद लोग यहां बाजे-गाजे के साथ बच्चों का मुंडन करने आते हैं। हजारों की संख्या में छठ करने आनेवाली व्रतियों के ठहरने के लिए परिसर स्थित धर्मशाला, पुस्तकालय भवन व समुदायिक भवन हैं। वहीं, भीड़ बढ़ने पर हर ग्रामीणों के घर के दरवाजे भी सभी के लिए खुले रहते हैं। इतने महत्वपूर्ण स्थान के भी सौंदर्यीकरण को लेकर प्रशासन द्वारा जारी अनदेखी से ग्रामीणों ने निराशा है लेकिन सभी अपने हाथ जगन्नाथ के भरोसे छठ पर्व के आखिरी दिनों में खुद ही घाट की सफाई करेंगे।
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