Hindi Newsबिहार न्यूज़मुंगेरJain Community Celebrates Day Four of Paryushan Festival with Emphasis on Purity and Detachment from Greed

मन की शुद्धि से लोभ पर पाया जा सकता विजय

न की पूजा करते जैन समुदाय के लोग मुंगेर फोटो- 4, जैन मंदिर में भगवान की भक्ति में तल्लीन होकर भजन पर डांडिया नृत्य करती श्रद्धालु महिलाएं मन की शुद्

Newswrap हिन्दुस्तान, मुंगेरThu, 12 Sep 2024 01:01 AM
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मुंगेर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। जैन धर्मावलंबियों ने दस दिवसीय पर्यूषण पर्व का चौथा दिन बुधवार को उत्तम शौच धर्म के रूप में मनाया। सुबह जैन मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ के अभिषेक एवं पूजा के बाद श्रद्धालुओं ने भगवान के जयमाल कार्यक्रम में भाग लिया। महिला श्रद्धालुओं ने भगवान की भक्ति में तल्लीन होकर भजन पर डांडिया नृत्य किया। जैन समाज के निर्मल जैन ने बताया कि उत्तम शौच धर्म पवित्रता का प्रतीक है। पवित्रता संतोष के माध्यम से आती है। लोभ से इच्छा और इच्छा से तृष्णाएं बढ़ती है, जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। लोभ पापों का मूल है। इच्छा करना एवं लोभ होने में अंतर है। लोभ से स्वार्थ का तत्व जुड़ा रहता है। यह दिमाग को भ्रष्ट कर देता है, इसलिए पाप से बचने के लिए लोभ से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए। लोभ नहीं रहेगा तो पाप भी नहीं होगा। लोभ के त्याग से आत्मिक शुद्धता आती है। इसके लिए मन की शुद्धि जरूरी है। मन की शुद्धि से ही लोभ के उपर विजय पाया जा सकता है। व्यक्ति को अपने जीवन में पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखना चाहिए, जिससे वह आत्मशुद्धि की दिशा में आगे बढ़ सके, शौच धर्म का यही उद्देश्य है।

उत्तम शौच लोभ परिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी: श्री जैन ने बताया कि संतों ने कहा है उत्तम शौच लोभ परिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी, अर्थात जिस व्यक्ति ने अपने मन को निर्लोभी बना लिया है, उसका जीवन परम शांति को प्राप्त करता है। सभी को अपने जीवन में भगवान ने जो दिया है, उसमें ही खुश रहना चाहिए। किसी की बराबरी करने की सोच नहीं रखना चाहिए। कर्मो के हिसाब से जो मिला है, अगर उसी में संतोष कर लें तो जीवन सफल हो जाएगा। लोभ ही पाप को जन्म देता है, जिसने लोभ को वश में कर लिया उसका जीवन सुखमय हो जाता है।

धन साधन है, साध्य नहीं: धन की चाह कभी पूरी नहीं होती है। यह बढ़ती रहती है। यह सोच रखना चाहिए कि धन साधन है, साध्य नहीं। धन की आसक्ति को छोड़कर शौच धर्म की राह पर चलने से जीवन को सुखयमय बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तम शौच धर्म का अर्थ है शुचिता का भाव, जो मन से लोभ दूर करे। व्यक्ति का सबसे प्रथम धर्म है, अपने अंत:करण को शुद्ध करे, क्योंकि जबतक अंत:करण शुद्ध नहीं होगा तबतक सारी बाह्य क्रिया बेकर है। लोभ का त्याग कर ही शौच धर्म का पालन करना ही उत्तम शौच है।

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