सीमावर्ती क्षेत्र का सिद्धपीठ है कुरनिया माता मंदिर
घोड़ासहन के कुरनिया माता मंदिर को सिद्धपीठ का दर्जा प्राप्त है। यहां हर सोमवार और शुक्रवार को मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं। दशहरा पूजा के अवसर पर विशेष आयोजन किया...
सिकरहना / घोड़ासहन, निज संवाददाता / निज प्रतिनिधि। घोड़ासहन के विख्यात कुरनिया माता मंदिर को नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में सिद्धपीठ का दर्जा प्राप्त है। शहर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर ढाका -घोड़ासहन मुख्य सड़क के किनारे अवस्थित इस भगवती स्थान पर प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें सीमावर्ती नेपाल तथा जिले के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु मन्नत मांगने अथवा मन्नत पूरा होने पर पूजा अर्चना कर चढ़ावा अर्पित करने के लिए यहां आते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि दशकों पूर्व यहां भगवती का एक छोटा पिंड हुआ करता था और स्थानीय लोग कभी-कभार यहां खास अवसरों पर पूजा पाठ करते थे। निकटवर्ती पुरनहिया कोठी स्थित नील पेराई की मशीन के बार बार खराब होने से परेशान अंग्रेज अधिकारी को ग्रामीणों ने इस भगवती स्थल की पूजा करने की सलाह दी थी। अंग्रेज दंपति के द्वारा इस पिंड की पूजा करने के बाद मशीन के ठीक हो जाने से प्रभावित अंग्रेज अधिकारी के द्वारा यहां नियमित पूजा शुरू कर दी गई। तब से आसपास के गांव के लोग भी यहां विशेष अवसरों पर पूजा पाठ करने लगे। नब्बे के दशक में स्थानीय व्यवसायियों व ग्रामीणों का ध्यान इधर गया और उनके सामूहिक सहयोग से एक मंदिर का निर्माण करा कर कायापलट कर दिया गया। तब से यहां नियमित पूजा पाठ शुरू हो गया। मंदिर की ख्याति फैलने के साथ दूर दराज के श्रद्धालु सोमवार और शुक्रवार को यहां जुटने लगे। श्रद्धालुओं में अधिक संख्या ऐसे लोगों की होती है जो पुत्र प्राप्ति तथा पुत्री की शादी के लिए मन्नत मांगने आते हैं। माना जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नत निश्चित रूप से पूरी होती है। नवरात्रि के अवसर पर यहां क्षेत्र का सबसे बड़ा आयोजन किया जाता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष विनय कुमार यादव तथा महामंत्री धनंजय कुमार ने बताया की दशहरा पूजा के अवसर पर यहां की व्यवस्था के लिए करीब चार लाख रुपये खर्च किए जाने का अनुमान लगाया गया है। फिलहाल हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा अर्चना के लिए प्रतिदिन उमड़ रही है। नवमी और दशमी के दिन विशेष पूजा कर कबूतर छोड़े जाएंगे। हालांकि यह सिद्ध पीठ धार्मिक न्यास परिषद के अधीन है। लेकिन अन्य सदस्यों का चयन अब तक पूरा नहीं हो पाया है।
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