लखीसराय : पहले दाना ने किया नुकसान, अब कीड़े खा रहे दलहनी फसल
बड़हिया के किसानों का चेहरा चिंता में है। रबी की फसल चक्रवात और कीड़ा खोरी के कारण बर्बाद हो गई है। कई किसानों को दोबारा बुआई करनी पड़ी है, लेकिन कीड़ों की अधिकता के कारण खेती और मुश्किल हो गई है।...
बड़हिया, एक संवाददाता। दाल का कटोरा कहे जाने वाले बड़हिया टालक्षेत्र में रबी की खेती करने वाले किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। प्रकृति पर ही आश्रित किसानों की खेती चक्रवात और कीड़ा खोरी के भेंट चढ़ चुके हैं। ज्ञात हो कि बड़हिया के विशाल टालक्षेत्र स्थित रेपुरा, नरसिंघौली, शरमा, तुरकैजनी, सायरबीघा, निजाय, सदायबीघा आदि महाल में ससमय मसूर और खेसारी की बुआई हो गई थी। जिसे दाना चक्रवात की नजर लग गई। बुआई के ठीक बाद होने वाले लगातार चक्रवाती बारिश से अंकुरित बीज धरती से बाहर तो निकल आए, पर उनकी वृद्धि थम-सी गई। आखिरकार सैकड़ों एकड़ में लगी दलहनी फसल प्राकृतिक आपदा और कीड़ा की भेंट चढ़ गयी।
दुबारा करनी पड़ी बुआई
किसान भागीरथ सिंह, रामजी महतो, हरिकांत सिंह, देवेंद्र सिंह, रामस्वारथ सिंह, रामनिवास सिंह, सच्चू सिंह, श्याम सिंह आदि ने कहा कि वे दोहरी मार झेलने को मजबूर हैं। जहां एक से डेढ़ इंच के हो चुके नवोदित पौधे दाना चक्रवात के भेंट चढ़ गए। तो वहीं अब कीड़ा की अधिकता से खेती दूभर साबित हो रही है। दाना चक्रवात से पहले 500 से भी अधिक बीघे में लगाई गई फसल फफूंदी की जद में आकर उजली होकर बर्बाद हो गयी। दाना चक्रवात के बाद हुई बुआई वाले खेतों की भी यही स्थिति है। जिसे पलटकर दुबारा खेतों में बीजों की बुआई की जा रही है। इस वर्ष कीड़े की भी अधिकता है। खेतों में बुआई के दौरान डाले जा रहे कीटनाशक दवाइयों का भी कोई असर नहीं हो रहा है। कीड़ा खोरी और दुबारा बुआई की मार झेल रहे किसानों के समक्ष आर्थिक समस्याएं विकराल हो गई है। किसान कर्ज के बोझ तले दबने को मजबूर हैं। क्षतिग्रस्त हुए फसलों की क्षतिपूर्ति मांग के साथ ही किसानों ने कहा कि विलंब से हो रहे दुबारा बुआई की स्थिति में उत्पादन का प्रभावित होना निश्चित ही है। बावजूद हम किसान प्रकृति के सहयोगी बनने की आस में अपने काम में लगे हुए हैं।
कहते हैं बीएओ
इस संबंध में प्रखंड कृषि पदाधिकारी मो शौकत अली ने कहा कि क्षतिग्रस्त हुए नए पौधों के लिए अनुदान अथवा लाभ के कोई प्रावधान नहीं हैं। जबकि खेतों में बताई जा रही कीड़ाखोड़ी की समस्याओं को लेकर किसान को लिखित रूप से आवेदन करना चाहिए। इसके बाद पौधा संरक्षण से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों को खेत मे भेजकर आवश्यक उपचार और सलाह दी जायेगी।
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