चकचंदा पर्व में चांद को महिलाओं ने दिया अर्घ्य
चकचंदा पर्व में चांद को महिलाओं ने दिया अर्घ्य
लखीसराय, एक प्रतिनिधि। हरतालिका तीज के बाद कई घरों में चकचंदा पर्व शुक्रवार की संध्या मनाया गया। इस दौरान महिलाओं के द्वारा घर के आंगन में संध्या बाद चंद्रमा की पूजा की गई। कई जगह शनिवार को भी पर्व मनाया जायेगा। चकचंदा के दिन परवैतिन सुबह से शाम व्रत रखकर भक्ति भाव में लीन रहती हैं। शाम के समय घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपकर साफ करते हैं। जहां आंगन सीमेंट का है। वहां साफ पानी से धो दिया जाता है। लोग अब इस पूजा को घर की छत पर भी मनाते हैं। आंगन या छत को साफ कर वहां पर केले के पत्ते की मदद से गोलाकार चांद बनाया जाता है। डलिया को फल-फूल के साथ पकवान से सजाया जाता है। पकवानों में खीर, मिठाई, गुजिया आदि शामिल किये जाते हैं। इसके बाद पश्चिम दिशा की ओर मुख करके हाथ में डाला लेकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। डलिया के साथ दही का भी भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर के लोग चंद्रमा के सामने शीश नवाते हैं। वे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। लंबी उम्र व परिवार की खुशहाली का आशीष मांगते हैं। हर मौसम की अलग-अलग धार्मिक संस्कृति है। यहां डूबते-उगते सूर्य की पूजा होती है तो चांद की भी उसी तन्मयता के साथ आराधना होती है। वैसे तो चांद को कई रूपों में पूजा की जाती है। लेकिन भादो माह में गणेश चतुर्थी के मौेके पर चांद की जो आराधना होती है, बिल्कुल छठ के अंदाज में उसी के आस्था के साथ अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन चांद की आराधना-उपासना की जाती है। व्रती या श्रद्धालु भादो की शुक्ल चतुर्थी की शाम भगवान गणेश के साथ चांद की पूजा करते हैं, वे चंद्र दोष से मुक्त हो जाते हैं। इस पर्व को चकचंदा या चौठ चांद भी कहा जाता है।
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