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मेरा सिंदूर मिटाने वालों से बदला पूरा, जख्म पर मरहम लगा; शहीद की पत्नी के छलके आंसू

भारतीय सेना के पाकिस्तान और पीओके में आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर पर कारगिल युद्ध में शहीद हुए सुनील कुमार की पत्नी भावुक हो गई। उन्होंने कहा कि आखिर उनके सिंदूर छीनने वालों से बदला पूरा हो गया।

Jayesh Jetawat हिन्दुस्तान, प्रमुख संवाददाता, मुजफ्फरपुरWed, 7 May 2025 09:54 PM
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मेरा सिंदूर मिटाने वालों से बदला पूरा, जख्म पर मरहम लगा; शहीद की पत्नी के छलके आंसू

हम अमन चाहते हैं, पर जुल्म के खिलाफ जंग लाजमी है तो फिर जंग ही सही। आतंकवाद के खिलाफ सेना के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दो शहीदों के परिवार की भावनाएं कुछ इस तरह छलकीं। भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के करजा के सुनील कुमार की पत्नी मीना देवी ने गर्व से कहा, मेरा सिंदूर मिटाने वालों से बदला ले लिया गया। यह हमारे दर्द पर मरहम है। वहीं, शहीद प्रमोद की मां ने झुर्रियों भरे हाथों से बेटे की तस्वीर चूमते हुए कहा, ‘मेरी कोख उजाड़ने वालों को सजा मिली। इससे दिल को बहुत सुकून मिला है।’

मुजफ्फरपुर के इन दोनों शहीदों के परिवारों ने कहा कि हमारे देश में आतंक कोई और नहीं बल्कि पड़ोसी पाकिस्तान ही फैला रहा है। आज ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पड़ोसी को उसकी भाषा में जवाब मिला है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की ताकत और हमारी सेना की वीरता को दिखा दिया है।

पीठ पीछे वार करने वालों में हम नहीं, यह तो शुरुआत

कारगिल विजय से ठीक 3 दिन पहले 23 जुलाई 1999 को सुनील कुमार शहीद हो गए थे। उन्होंने पैरा कमांडो के तौर पर अपनी यूनिट के साथ कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लिया था। मड़वन प्रखंड के फंदा निवासी नायक सुनील कुमार के चार बच्चे तब दो से छह साल के थे। पत्नी मीना देवी और बेटा विवेक कहते हैं, ऑपरेशन सिंदूर ने हमें पीड़ा से उबरने में मदद की है।

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विवेक ने कहा, हमें पता है कि इस बार हमारी वीर सेना बदला पूरा करेगी। हम पीठ पीछे वार करने वालों में नहीं हैं। मीना देवी ने कहा, ‘इन आंतिकयों ने मेरी जैसी कितनी महिलाओं की मांग का सिंदूर पोंछ दिया। आज मेरा सिर गर्व से दमक रहा है।’

बेटा जहां भी होगा, गर्व से भारत माता की जय बोल रहा होगा

वर्ष 1996 में सेना में शामिल हुए कुढ़नी के माधोपुर निवासी शहीद प्रमोद ने 1999 के युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया था। युद्धभूमि में जाने के दौरान अपने बड़े भाई श्यामनंदन से कहा था, ‘भैया, दुश्मन घर में घुस गया है। मैं कूच कर रहा हूं। मां को बोलना छठ में आऊंगा।’ 30 मई 1999 को मां और बड़े भाई को आभास हो गया था कि उनका लाडला दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गया है। 38 दिनों तक शव बर्फ में दबा रहा।

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इन बातों को याद करते हुए मां दौलती देवी बुधवार को भी कई बार रोईं, पर बार-बार गर्व और संतोष की चमक आ रही थी। उन्होंने कहा, आज मेरा बेटा जहां कहीं भी होगा, ‘भारत माता की जय’ बोल रहा होगा। 84 वर्षीय दौलती देवी ने कहा कि तब प्रमोद 22 साल का था। आज मेरी जैसी मांओं को अपने बेटे के हत्यारों को सजा मिलते हुए देखने का सौभाग्य मिला है। भाई दिलीप कहते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर ने दिखा दिया कि हम अमन-चैन चाहते हैं, पर कोई तंग करे तो बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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