गंगा पर ग्रहण, बक्सर से भागलपुर तक एक तिहाई सिकुड़ गई; केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट क्या कहती है?
गंगा के प्रवाह पर नदी किनारे बसे कस्बों-गांवों की बढ़ती आबादी, पानी की बढ़ती मांग, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण का प्रभाव पड़ा है। इससे गंगा के प्रवाह में कमी आई है। इसकी दिशा भी प्रभावित हुई है। इसके जलग्रहण का दायरा भी कम हुआ है। बक्सर से कहलगांव तक गंगा की धारा सिकुड़कर एक तिहाई रह गई है।
गंगा के प्रवाह पर नदी किनारे बसे कस्बों-गांवों की बढ़ती आबादी, पानी की बढ़ती मांग, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण का प्रभाव पड़ा है। इससे न केवल गंगा के प्रवाह में कमी आई है बल्कि इसकी दिशा भी प्रभावित हुई है। इसके जलग्रहण का दायरा भी कम हुआ है। बक्सर से कहलगांव तक गंगा की धारा दो दशक में सिकुड़कर एक तिहाई रह गई है। भले ही गंगा का पाट चौड़ा दिखता है, लेकिन पानी की धारा लगातार सिकुड़ती चली गई और अधिकतर शहरों से गंगा की धारा कोसों दूर चली गई है। जेठ के महीने में तो कई जगह धूल उड़ती है।
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार देश की 26 फीसदी भूमि गंगा बेसिन के दायरे में आती है। लगभग 43 फीसदी जनसंख्या गंगा के प्रभाव में है। बिहार की आठ करोड़ तो देश की 50 करोड़ आबादी गंगा से प्रभावित होती है। देश का सबसे बड़ा बेसिन गंगा नदी का है, लेकिन इसमें क्षमता से आधे से भी कम पानी का स्टोरेज है। विशेषज्ञों के अनुसार पहले गंगा में सालों भर पानी रहता था, लेकिन अब नवम्बर से मार्च तक गंगा में सबसे कम पानी रहता है। अप्रैल, मई और अक्टूबर में पानी का बहाव औसत और जून से सितम्बर तक सामान्य से 30 फीसदी अधिक रहता है।
बक्सर में चौसा से शहर तक गंगा का पाट करीब डेढ़ किलोमीटर है। अहिरौली से नैनीजोर जिले की सीमा तक नदी का पाट घटकर करीब आधा किलोमीटर रह गया है। शहर से पूरब की ओर आगे बढ़ने पर अहिरौली से केशोपुर, गंगौली होते हुए नैनीजोर तक गंगा में हर साल कटाव काफी तेजी से हो रहा है। इन दिनों यहां गंगा में लगभग 800 क्यूसेक पानी है। सुल्तानगंज से पीरपैंती तक नदी के पाट की चौड़ाई इतनी कम है कि दो-तीन दशक पहले कहलगांव से तीनटंगा जाने में नाव से दो घंटे लगते थे। अब 30 मिनट लगता है।
500 मीटर से 4 किमी तक दूर हो गई गंगा
पटना में गंगा नदी कुछ जगहों को छोड़ दे तो शहर से न्यूनतम 500 मीटर और अधिकतम 4 किलोमीटर दूर जा चुकी है। पटना जिले में नदी की धारा आधा हो गई है। जेपी गंगा पथ समेत अन्य कारणों से गंगा अब हमेशा के लिए घाटों से दूर जा चुकी है। वर्ष 1984-85 में गंगा की गहराई करीब 35 फीट थी। अब दीघा से दीदारगंज तक तक गंगा की गहराई औसतन 14 से 15 मीटर ही रह गई है। दीघा से गांधी घाट तक किनारा छोड़ चुकी है। वहीं गाय घाट से दीदारगंज तक गंगा में बड़े-बड़े टापू नजर आने लगे हैं। भूगोलविद् प्रो.रास बिहारी सिंह ने बताया कि गंगा नदी लगातार दूर जा रही है। इसके कारणों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। गंगा नदी में बने पीलर पानी को रोकते हैं। रोकने के समय धारा पीछे की ओर लौटती है और धारा की गति कम होती है। इस दौरान मलवा और गाद जमा होने लगता है। जिसके कारण शहर के किनारे से गंगा दूर चली गई।
टापूओं पर किसानों ने खेती शुरू कर दी। बड़े-बड़े प्लांट लग गए हैं। पानी घट गया, क्षेत्र कम हो गया और भूमिगत जलस्तर में भी कमी आ गई।
तब गंगा किनारे खड़ा होने में डरता था
मेरी उम्र 65 साल है। 90 के दशक तक गंगा किनारे खड़ा होने पर डर लगता था कि कहीं दीवार धंस न जाए। तब सामान्य दिनों में भी घाट के किनारे चार से पांच फीट तक पानी रहता था। अब तो गंगा तल की गहराई लगातार घटती जा रही है और शहर से गंगा दूर जा चुकी है। -कृष्ण कुमार शुक्ला, खाजेकलां सदर गली, पटना सिटी
पानी कम होने से मछलियों की कई प्रजातियां हो गईं विलुप्त
सारण के डोरीगंज और सोनपुर के पास का गंगा का पानी आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। गंगा नदी में पानी कम होने से मछलियां कम मिल रही हैं। इस वजह से मछुआरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई है। मछुआरा राजगृह ने बताया कि पहले गंगा नदी में हिल्सा, सौंक्ची, झींगा आदि मछलियां मिलती थीं लेकिन अब ज्यादातर प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। वैशाली में महनार से होकर गुजरने वाली 4-5 किलोमीटर तक गंगा की धारा पहले की अपेक्षाकृत अब सिकुड़ गई है।
गंगा में रेत प्रदूषण की बड़ी वजह
गंगा में जहां-तहां रेत उभर आते हैं। गर्मी के दिनों में यही रेत सूखकर शहर से सटे इलाकों में प्रदूषण की बड़ी वजह बन जाते हैं। बक्सर, भोजपुर, वैशाली, मुंगेर, खगड़िया सहित जहां-जहां से गंगा गुजरती है, वहां हवा में धूलकण की मात्रा अधिक रहती है। बक्सर के नाविक नारायण चौधरी और रामप्रीत पासवान बताते हैं कि यूपी की ओर गंगा में गाद अधिक जमा होती है। इससे रेत के टीले उभरते हैं और प्रदूषण का कारक बनते हैं।