Hindi Newsबिहार न्यूज़Durga temple where Bali without blood offering is completed only after goat unconscious

वो दुर्गा मंदिर जहां बिना खून बहाए बलि दी जाती है, बकरे के अचेत होने भर से पूरा होता है चढ़ावा

कैमूर की पंवरा पहाड़ी पर स्थित मंदिर में विराजमान मां मुंडेश्वरी के दरबार में बकरे की बलि देने की प्रथा अद्भुत है। ऐसी बलि जहां रक्त की बूंद नहीं गिरती और बकरा अचेत हो जाता है। जब मंदिर के पुजारी मंत्र पढ़कर बकरे के उपर फूल व अक्षत मारते हैं तब लड़खड़ाते हुए बकरा गर्भ गृह से बाहर निकलने लगता है।

Sudhir Kumar लाइव हिन्दुस्तानWed, 9 Oct 2024 08:49 PM
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इसे आश्चर्य एवं श्रद्धा, जो चाहे जो कह लीजिए। भक्तों की कामना पूरी होने पर बकरे की बलि दी जाती है। लेकिन, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है और पुजारी अक्षत (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं, तब बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद दुबारा अक्षत फेंकने की प्रक्रिया करने पर बकरा उठ खड़ा होता है।

कैमूर की पंवरा पहाड़ी पर स्थित मंदिर में विराजमान मां मुंडेश्वरी के दरबार में बकरे की बलि देने की प्रथा अद्भुत है। ऐसी बलि जहां रक्त की बूंद नहीं गिरती और बकरा अचेत हो जाता है। जब मंदिर के पुजारी मंत्र पढ़कर बकरे के उपर फूल व अक्षत मारते हैं तब लड़खड़ाते हुए बकरा गर्भ गृह से बाहर निकलने लगता है। इस पल को देखना हर कोई चाहता है, पर किसी-किसी को ही यह सौभाग्य प्राप्त हो पाता है। बकरे के अचेत होने पर ही मां द्वारा बली स्वीकार करने की बात मानी जाती है।

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शारदीय नवरात्र के सातवें दिन बुधवार को चंदौली के राज कुमार अपनी पत्नी व बच्चों संग मां के दरबार में आए थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि मां के आशीर्वाद से नौकरी मिली है। मां का भार उतारने के लिए आए हैं। बकरे की बलि चढ़ाकर गांव लौटना है, पर अभी दूसरे का नंबर है। कहते हैं कि आप माता की मूर्ति पर अधिक देर तक अपनी दृष्टि टिकाए नहीं रख सकते हैं। इसी मंदिर के गर्भगृह चतुर्मुखी शिवलिंग है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह तीनों वक्त सुबह, दोपहर व शाम भिन्न-भिन्न रंग में दिखते हैं।

इस कारण पड़ा मां मुंडेश्वरी नाम

मान्यता के अनुसार, इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे। पीड़ित मानव की पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं और इनका वध करने के लिए जब निकली तो उन्होंने सबसे पहले चंड का वध किया। मां भवानी से युद्ध करते हुए मुंड इसी पंवरा पहाड़ी पर छुप गया था। लेकिन, माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर उसका वध कर दिया। तब से ही मां को मुंडेश्वरी देवी के नाम जाना जाने लगा।

महिष पर सवार हैं मां मुंडेश्वरी

मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुंडेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीन मूर्ति दिखता है। यहां मां वाराही रूप में विराजमान हैं। इनका वाहन महिष है। माता की मूर्ति ऐसी भव्य है, जिसपर नजर अधिक देर तक टिक नहीं सकती है। मंदिर के भीतर भी ऐसी भव्यता और बनावट है, जो मंदिर को और भी आकर्षक बना देती है। भीतर मंदिर चार पायों पर टिका हुआ है।

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