राष्ट्रीय चेतना में 1857 संग्राम की बड़ी भूमिका
दरभंगा में आयोजित छात्र-युवा सम्मेलन में भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम देश की राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में महत्वपूर्ण था। उन्होंने धार्मिक विभाजन के...

दरभंगा। देश की राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बहुत बड़ी भूमिका है। सन 57 अंग्रेजों के लिए बिल्कुल आउट ऑफ सिलेबस प्रश्न था। उन्हें यह यकीन ही नहीं हुआ कि अलग-अलग धर्मों को मानने वाले सभी मिलकर औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ लड़ सकते हैं। तभी से अंग्रेजों ने भारत के लोगों को धार्मिक स्तर पर बांटना शुरू कर दिया। आइसा-आरवाईए एवं नागरिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को दरभंगा ऑडिटोरियम में आयोजित छात्र-युवा सम्मेलन में भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ये बातें कही। उन्होंने कहा कि इसी धार्मिक विभाजन का असर था कि 1947 आते-आते धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ।
भारतीय संविधान उस दौर में लिखा गया जब विभाजन हो चुका था, देशभर में दंगे हो रहे थे। वैसे समय में संविधान की प्रस्तावना में सबके लिए आजादी, समानता और बंधुता को शामिल किया गया। हमारे आंदोलन का घोषणा पत्र भी यही है। इसका वैचारिक आधार 1857 ही था। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब जो संविधान लिखना चाहते थे, उसका एक प्रारूप उनकी पुस्तक स्टेट एंड माइनॉरिटीज में मिलती है। वो दलितों को भी माइनोरिटी मानते थे। पहलगाम की घटना को लेकर पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में पीड़ितों की ओर से उठी एकता की आवाज को दबाया गया। घटना से जुड़े कई प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। घटनास्थल के आसपास सुरक्षा इंतजाम को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि आज ऑपरेशन सिंदूर के बाद लोग इंदिरा जी को याद कर रहे हैं। यह समझना होगा कि 1971 केवल भारत-पाकिस्तान युद्ध नहीं था, वह बांग्लादेश का मुक्ति-संग्राम था। कहा कि जंग को लेकर कोई हल्की बात देश के लिए खतरनाक है। भारत-पाकिस्तान के बीच अमेरिका के दखल को लेकर निशाना साधते हुए उन्होंने इसे मोदी सरकार की विदेश नीति की असफलता करार दिया।माले महासचिव ने कहा कि ट्रंप और उसकी नीतियों का विरोध किए बगैर कोई राष्ट्रवाद नहीं हो सकता। कहा कि जब जाति जनगणना के लिए बिहार के सीएम के नेतृत्व में शिष्टमंडल प्रधानमंत्री से मिला तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन बिहार में चुनाव को देखते हुए जाति जनगणना करने की बात कही जा रही है। राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने चुनाव के समय भूमि सुधार का वादा किया था, लेकिन जीतने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। जाति जनगणना के साथ भी ऐसा ही होने वाला है। वक्फ संशोधन बिल का भी विरोध करने की अपील की। एमएलसी शशि यादव ने कहा कि महिलाओं को जब तक बराबरी का अधिकार नहीं मिलेगा, तबतक लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा। बिहार में महिलाओं को सबसे सस्ते श्रम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अतिथि प्राध्यापक डॉ. लक्ष्मण यादव ने देश के वर्तमान हालात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार की नीतियों को कटघरे में रखते हुए कहा कि पुलवामा हमले के समय भी शहीदों की लाशों पर वोट मांगे गए थे। इस तरह की चुनावी राजनीति शर्मनाक है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी पीएम का चुनाव प्रचार स्थगित नहीं होता। इससे बिहार चुनाव की अहमियत समझी जा सकती है। उन्होंने छात्रों-युवाओं से शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ को अपना प्राथमिक मुद्दा बनाने की अपील करते हुए कहा कि समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोलने वालों की पहचान जरूरी है। पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि आज देश के नौजवानों का भविष्य संकट में है। बेरोजगारों की लंबी फौज खड़ी हो चुकी है। पूर्व विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि आज राष्ट्र का, दलितझ्रबहुजन, महिला, बाबा साहेब आंबेडकर आदि किसी का भी सम्मान सुरक्षित नहीं है।आइसा के राष्ट्रीय महासचिव प्रसेनजीत ने कहा कि आज संविधान की मूल भावना पर लगातार हमला किया जा रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिनेश साफी, अशर्फी राम, केसरी कुमार यादव, ओणम सिंह, रंजीत राम, बिपिन कुमार एवं सबा रौशनी की सात सदस्यीय अध्यक्ष मंडली ने की। संचालन आरवाईए राज्य सह सचिव संदीप कुमार चौधरी ने किया। मौके पर पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, रंजीत राम, जिला सचिव बैद्यनाथ यादव सहित कई लोगों ने संबोधित किया। इस अवसर पर भीम आर्मी की ओर से वक्ताओं का स्वागत किया गया।
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