नवरात्र को लेकर मंदिरों का रंग-रोगन, चुनरी से पटा बाजार
शारदीय नवरात्र की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। मां दुर्गा के मंदिरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम पूरा हो चुका है। बाजारों में चालीस से लेकर ढाई-तीन सौ रुपये तक की चुनरियां उपलब्ध हैं। रामरेखा घाट...
पेज चार पर बॉटम --------------- उल्लास बाजार में चालीस रुपये से लेकर ढाई-तीन सौ तक की चुनरी उपलब्ध है वहीं मां दुर्गा की प्रतिमाओं की भी खूब बिक्री हुई नौ दिनों तक माता रानी की विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी मुनीम चौक स्थित दुकानों पर लोगों की काफी भीड़ नजर आई फोटो संख्या 10 कैप्शन - नवरात्रि को लेकर रामरेखा घाट पर सजी चुनरी व माला की दुकान। बक्सर, हिन्दुस्तान संवाददाता। शारदीय नवरात्र को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। मां भगवती के मंदिरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम लगभग पूरा हो चुका है। बाजारों में चुनरी और पूजा सामग्रियों की दुकानों पर मंगलवार को काफी भीड़ देखी गई। आचार्य पंडित सुनील मिश्र ने बताया कि इस साल साल शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर यानी गुरुवार से शुरू होगा। इसी दिन सुबह में मंदिरों और घरों में शक्ति के उपासक कलश स्थापना करेंगे। फिर लगातार नौ दिनों तक माता रानी की विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी। बता दें कि नवरात्र लेकर पिछले कुछ दिनों से मां दुर्गा के मंदिरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम चल रहा था। मंदिरों और घरों में नवरात्र के नौदिवसीय अनुष्ठान की सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। बाजारों में भी दुकानें चुनरी और पूजा सामग्रियों से पट गई हैं। मंगलवार को शहर के रामरेखाघाट और मुनीम चौक स्थित इन दुकानों पर लोगों की काफी भीड़ नजर आई। बाजार में चालीस रुपये से लेकर ढाई-तीन सौ तक की चुनरी उपलब्ध है। वहीं मां दुर्गा की प्रतिमाओं की भी खूब बिक्री हुई। लोगों ने अपने सामर्थ्य और आवश्यकता के अनुसार खरीदारी की। ------- सीता स्वयंबर, धनुष यज्ञ व राजा भर्तृहरि प्रसंग का मंचन रामलीला धनुष खंडित होने पर सीताजी श्रीराम के गले में वरमाला पहनाती है संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंप उज्जैन की एक गुफा में आ गए बक्सर, निज संवाददाता। नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे विजयादशमी महोत्सव के सातवें दिन सीता स्वयंवर व धनुष यज्ञ प्रसंग का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि सभा में देश-देशांतर से राजा आए। एक-एक कर सभी धनुष उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन, असफल हो जाते हैं। जिस पर राजा जनक क्रोध में पृथ्वी को वीरों से खाली बता दिया। यह सुन लक्ष्मणजी गुस्सा हो जाते हैं। तब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम धनुष का खंडन करते हैं। धनुष खंडित होने पर सीताजी श्रीराम के गले में वरमाला पहनाती है। यह देख देवतागण पुष्प की वर्षा करते हैं। वहीं दिन में कृष्णलीला के दौरान राजा भर्तृहरि चरित्र का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि उज्जैन में राजा भर्तृहरि प्रतापी राजा हैं। उज्जैन में एक तपस्वी संत गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। भर्तृहरि ने उनका आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी प्रसन्न होकर राजा को एक फल दिए और कहा कि यह खाने से वे सदैव जवान बने रहेंगे। राजा ने फल अपनी प्रिय रानी रानी पिंगला को दे दिया। रानी पिंगला राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या से प्रेम करता था। उसने फल उसे दे दिया। वेश्या ने सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे नर्क समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी। उसने फल राजा को दे दिया। राजा ने वैश्या से पूछा कि फल कहां से मिला। वैश्या के बताने के बाद पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य जाग गया। वे संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंप उज्जैन की एक गुफा में आ गए। लीला देख दर्शक भाव विभोर हो उठे। लीला मंचन के दौरान समिति के बैकुण्ठनाथ शर्मा, निर्मल गुप्ता, हरिशंकर गुप्ता व कृष्णा वर्मा थे।
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