त्योहार के मौसम में बिहार में टीचरों की अटक जाएगी सैलरी?, शिक्षक संगठनों ने क्यों जताई आशंका; CM नीतीश से गुहार
फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार (FUTAB) के अध्यक्ष केबी सिन्हा और महासचिव संजय कुमार ने कहा, ‘यूनिवर्सिटी के शिक्षकों और इसके वर्किंग तथा रिटायर्ड कर्मचारियों के वेतन में एक बार फिर देरी हो सकती है।’
त्योहारों का मौसम आ रहा है लेकिन इस बीच बिहार के शिक्षकों के वेतन और पेंशन मिलने को लेकर सस्पेंस गहराता जा रहा है। यहां सबसे आपको याद दिला दें कि साल 2022 और 2023 में ऐसा ही हुआ था कॉलेजों और अलग-अलग शिक्षकों को त्योहारों के मौसम में वेतन से वंचित रहना पड़ा था। इसके अलावा रिटायर कर चुके शिक्षकों को भी वेतन नहीं मिल सका था। अब शिक्षकों के अधिकारों से जुड़े प्रमुख संगठनों ने आशंका जताई है कि साल 2024 में भी एक बार फिर शिक्षक त्योहारों के मौसम में वेतन और पेंशन से महरूम हो सकते हैं। इस संगठनों ने अब इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार (FUTAB) के अध्यक्ष केबी सिन्हा और महासचिव संजय कुमार ने कहा, 'यूनिवर्सिटी के शिक्षकों और इसके वर्किंग तथा रिटायर्ड कर्मचारियों के वेतन में एक बार फिर देरी हो सकती है। अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने वित्तिय वर्ष 2024-25 के लिए बजटीय अनुदान कब दिया जाएगा इसकी कोई सीमा अवधि नहीं रखी है। 11 सितंबर को विश्लविद्यालयों को मिली चिट्ठी में कहा गया है कि वो विभाग के पोर्टल पर वर्किंग और रिटायर्ड गेस्ट टीचरों का वेतन डाटा अपलोड करें।'
शिक्षा विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव ने विश्वविद्यालयों को लिखित तौर से कहा है कि मौजूदा समय में सभी विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का डेटा अपलोड किया जा चुका है। लेकिन पेंशन पाने वाले और गेस्ट टीचरों का डेटा अब तक अपलोड नहीं किया गया है। इसके अलावा उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा किया था कि कई बार याद दिलाने के बावजूद खर्च नहीं हो सकी राशि विभाग को नहीं लौटाई गई है। इससे यह साफ है कि जब तक सभी आदेशों का पालन नहीं होता है तब तक नया अनुदान जारी किया जाएगा।
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई बार पत्र और फोन के जरिए यह याद दिलाया जा चुका है कि फंड तब ही जारी होंगे जब डेटा को पेरोल मैनेजमेंट पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। पेस्लिप और अन्य जानकारियां अपलोड नहीं की गई हैं। उन्होंने कहा, 'जहां तक नियमित शिक्षकों और कर्मचारियों की बात है तो इनके 90 फीसदी डेटा को अपलोड कर दिया गया है और फंड जारी करने को लेकर प्रक्रिया चालू है। लेकिन जो पेंशन और फैमिली पेंशन पा रहे हैं उनकी जानकारी अभी भी पोर्टल पर नहीं है। यहां तक कि गेस्ट शिक्षकों का भी डेटा अपलोड नहीं किया गया है।
हमने सामान्य डेटा मांगा है जो कि किसी भी विभाग के लिए जरूरी है। अब हम इस मामले को टॉप लेवल तक लेकर गए हैं ताकि जिम्मेदारी तय करने के लिए जरूरी गाइडलाइंस और सुझाव हम ले सकें। इसके अलावा विश्वविद्यालयों के शीर्ष अधिकारियों मसलन - वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार, फाइनेंस ऑफिसर और आर्थिक सलाहकार की सैलरी तब तक रोकी जाए जब तक कि सभी डेटा अपलोड नहीं हो जाते हैं।'
उन्होंने कहा कि जब सेंट्रल फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (CFMS) को साल 2018 में लॉन्च किया गया था तब उसी समय से राशि का रिफंड रूका हुआ है। हालांकि, कुछ विश्वविद्यालयों ने थोड़ी-बहुत राशि सरकारी खजाने में जमा कराई है। हालांकि, फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी सर्विस टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार (FUSTAB) के अध्यक्ष राम जदन सिन्हा और महासचवि दिलीप चौधरी ने कहा, 'इसके लिए सभी का भुगतान रोकना न्याय नहीं हैं क्योंकि शिक्षकों औऱ कर्मचारियों को सरकार और विश्वविद्यालयों के बीच क्या चल रहा है?
इससे कोई लेना-देना नहीं है। साल 2007 में टीचरों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से उनके आवास पर मुलाकात की थी और शिक्षकों से जुड़े विभिन्न समस्याओं से उन्हें अवगत कराया था। सीएम ने कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता शिक्षकों की सैलरी, पैंशन और पीएफ को नियमित कराना है और यह हुआ भी। लेकिन पिछले कुछ सालों से वहीं कुछ समस्याएं फिर से सामने आ रही हैं जिसका समाधान नहीं हो रहा है।'
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