बोले पूर्णिया: तरबूज की खेती को मिले सरकारी बढ़ावा, किसान होंगे समृद्ध
पूर्णिया में 600 हेक्टेयर में तरबूज की खेती होती है, जहां किसानों को प्रति एकड़ 2 लाख रुपए तक की आमदनी होती है। हालांकि, उन्हें पौधों की कमी, सरकारी अनुदान की कमी और बाजार की अनुपस्थिति जैसी समस्याओं...
तरबूज के किसानों की परेशानी : प्रस्तुति : भूषण/ सुबोध
-600 हेक्टेयर रकबे में पूर्णिया में होती है तरबूज की खेती
-किसानों को 200000 तक होती है प्रति एकड़ आमदनी
-जिले में 4 से अधिक नदियों के किनारे हो रही है खेती
-आम, लीची और जामुन जैसे सीजनल फल की तरह तरबूज और खरबूज की खेती आरंभिक काल से पूर्णिया समेत पूरे सीमांचल की नदियों के कछार पर बड़े पैमाने पर होती रही है। आरंभिक काल से पूर्णिया और इसके आसपास के जिलों में कोसी नदी की कई धारा एवं उप धारा चलती थी जिसके किनारे बालू जमा रहते थे और बड़े विस्तृत भूभाग पर दियारा इलाका होता था। दूसरी ओर महानंदा, कनकई और पनार नदी के कछार पर और कोसी नदी के किनारे भी दियारा जैसा इलाका है। मिट्टी बलुई है। इस दियारा इलाके के लोगों की जिंदगी काफी विपन्नता में बीतती थी। दियारा इलाके में अनाज की खेती नहीं के बराबर होती थी। अनाज के विकल्प में दियारा के लोग फूंट, ककड़ी, बतिया और तरबूज की खेती करते थे। इन मौसमी फलों की खेती महज 3 महीने की होती थी। इसी 3 महीने की खेती से 12 महीने की जिंदगी चलती थी। बाद के समय में इन्हीं मौसमी फलों में तरबूज और खरबूज की डिमांड ज्यादा होने लगी तो इसकी खेती भी दियारा के किसान जमकर करने लगे। बाद के समय में दियारा इलाके के लोगों के लिए तरबूज और खरबूज कमर्शियल क्रॉप हो गया। इसके बावजूद भी उनकी समस्याएं कम नहीं है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान आम के किसानों ने अपना दर्द बयां किया।
-शिकायत :
1. पूर्णिया जिले में तरबूज और खरबूज का पौधा नहीं मिलता
2. काफी कम लोगों को सरकारी अनुदान का लाभ मिलता है
3. तरबूज-खरबूज की खेती के लिए अलग से लोन नहीं मिलता
4. अभी तरबूज-खरबूज के लिए फसल मुआवजा नहीं मिला
5. तरबूज और खरबूज बेचने के लिए पूर्णिया में कोई मार्केट नहीं
-सुझाव :
1. पूर्णिया जिले में ही मिले तरबूज और खरबूज का पौधा
2. प्रोत्साहन के लिए बीज अनुदान की दर बढ़ाने की जरूरत
3. तरबूज-खरबूज की खेती के लिए फसल क्षति का मुआवजा लागू हो
4. तरबूज के किसानों के लिए सहज लोन मिले
5. तरबूज-खरबूज की बिक्री के लिए मार्केट की व्यवस्था हो
-एक तरफ कोसी के कछार पर तो दूसरी ओर बायसी अनुमंडल क्षेत्र के महानंदा एवं कनकई नदियों के बालू पर नगदी फसल के रूप में तरबूज की खेती किसानों को लिए वरदान साबित होती है। नदी में बालू के लाल सोना उगाने के लिए उपयुक्त भूमि एवं जलवायु होने से किसान इस खेती को तेजी से अपना रहे हैं। बायसी अनुमंडल क्षेत्र में 15 अप्रैल के बाद तरबूज निकलने की संभावना है। लगातार पछुवा हवा चलने से तरबूज की जड़ सूखने से किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। तकरीबन चार माह की खेती में मौसमी फल तरबूज बिक्री के लिये तैयार हो जाता है। कृषकों से मिली जानकारी के अनुसार खेती पर प्रति एकड़ चालीस हजार के लागत खर्च पर लगभग 80 हजार या उससे अधिक का लाभ मिलता है। किसानों को खेतों में फल के तैयार होने पर बाजार तक लाने में बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। नाव पर फलों को लेकर नदियों को पार करना पड़ता है। उसके बाद ट्रैक्टरों पर लाद कर बाजार तक बिक्री के लिये लाना पड़ता है। इस बीच किसानों को आर्थिक एवं मानसिक रूप से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसानों से मिली जानकारी के अनुसार तरबूज का फल थोक रूप से पांच से लेकर बीस रुपये प्रति किलो के दर से बिक्री होता है। स्थानीय स्तर पर फल का सीमित बाजार नहीं होने से बिक्री में परेशानी का सामना करना पड़ता है। खेत में फल पका रहने पर बारिश होने पर खेतों में ही ओने पौने दामों में बेचा दिया जाता है। जिससे कभी कभी किसानों को परेशानी का भी सामना करना पड़ता है।
-विदेश में भी पूर्णिया का तरबूज मचा रहा धमाल:-
-अधिकांश व्यापारी इसे नेपाल से लेकर देश-प्रदेश के शहरों तक बिक्री के लिये भेज देते हैं। बताया जाता है कि फल के तैयार होकर पकने के बाद प्रतिदिन 25 से 50 ट्रैक्टर तरबूज सिमलबाड़ी चौक एवं बायसी में बिक्री के लिये आता है। बाजार मांग से कई गुणा अधिक फलों के आने पर इसे बायसी से बाहर ट्रक एवं पिकअप मालवाहक से बिक्री के लिये भेजा जाता है। किसानों ने बताया कि प्रतिदिन पांच से दस ट्रक तरबूज बिक्री के लिये नेपाल, कोलकाता, धुलांग, बरगछिया, पानागढ़, सिलीगुड़ी, आसनसोल, उड़ीसा, झारखंड के रांची, छत्तीसगढ़, रायपुर, राजस्थान आदि जगहों पर बिक्री के लिये भेजा जाता है। इसी तरह प्रतिदिन छोटे पिकअप मालवाहक वाहन से पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, अररिया एवं किशनगंज बिक्री के लिये भेजा जाता है। तरबूज फल का एक माह से डेढ़ माह के करीब तक बाजार में आवक बना रहता है। बताया गया कि 15 अप्रैल के बाद बाजार में हर जगह तरबूज आ जाएगा।
-महानंदा एवं कनकई नदी के क्षेत्रों में होती है खेती-
-नदियों के साथ दियारा के बलधुसर भूमि पर तरबूज सहित ककड़ी, बतिया, खीरा, करेला, परबल आदि मौसमी फलों के सैकड़ों एकड़ क्षेत्र के भुभाग पर मौसमी फलों की खेती की जाती है। जानकारी अनुसार दिसम्बर माह में किसान बीजा रोपन कर तरबूज के पौधे लगाते हैं। पिछात में कुछ किसान जनवरी माह तक इसका पौधा लगाते हैं। अप्रैल से मई तक इसका फल तैयार हो जाता है। करीब तीन से चार महीने में फल तैयार हो जाता है।
-तरबूज के कई फायदे:-
-तरबूज़ खाने से डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है। तरबूज़ खाने से ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। तरबूज़ खाने से आंखों की रोशनी बेहतर रहती है। तरबूज़ खाने से त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है. तरबूज़ खाने से मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। तरबूज़ खाने से तुरंत ऊर्जा मिलती है। थकान दूर होती है। तनाव कम होता है। तरबूज़ खाने से पेट की समस्याएं जैसे गैस, एसिडिटी, और कब्ज़ से छुटकारा मिलता है। तरबूज़ खाने से खून की कमी पूरी होती है। तरबूज़ में लाइकोपीन और विटामिन सी जैसे तत्व होते हैं।
-हमारी भी सुनें : :-
-आधा एकड़ में में छह सौ खरबूज और तरबूज के पौधे लगाया है जिसमें करीब 30 हजार खर्च हुआ है और करीब 1 लाख से डेढ़ लाख रुपए तक तरबूज और तरबूज बिकने की संभावना है।
-सज्जाद आलम
2. एक एकड़ में तरबूज की खेती कर रहा हूं। जिसमें फूल आने लगे हैं। 15 अप्रैल के बाद फलन की संभावना है। कोई प्राकृतिक आपदा नहीं होती है तो किसानों को काफी मुनाफा होगा
-जमसीद
3. निवासी ने बताया कि इस साल दो कट्ठा में खीरा की खेती किया है। इस वर्ष तरबूज नहीं लगाया है। पिछले वर्ष अतिवृष्टि हो जाने के कारण अच्छी कीमत नहीं मिल पाई थी।
-मो. शद्दाम
4. दो कट्ठा में तरबूज की खेती की है पछिया हवा चलने के कारण पौधे की जड़ सूख रहे हैं जिससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नदी के किनारे रेत पर सिंचाई करना भी काफी महंगा है।
-जुम्मेदीन
5. साल 1987 से तरबूज की खेती कर रहे हैं लेकिन अब तक फल मंडी नहीं होने के कारण खेती में खर्च के अनुसार किसानों को फल का वाजिब दाम नहीं मिलता है।
मो. जहरुल
6. पूरा परिवार मिलकर तरबूज की खेती करते हैं। नदी किनारे जमीन होने के कारण वर्ष में एक बार ही खेती कर पाते हैं। नदी से दूर वाले खेतों में घड़ा भरकर पानी पटाना होता है।
-मोहिब आलम
7. कभी-कभी बालू को 2 से 3 फीट खोदकर पानी निकाल कर तरबूज की जड़ में सिंचाई करना पड़ता है। तरबूज की खेती काफी ज्यादा मेहनत वाली खेती है।
-तनवीर आलम
8. अपने पिता के साथ तरबूज एवं खीरा की खेती करने के गुण सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह नगदी फसल है और तैयार होने के साथ ही खेत में बेच दिया जाता है।
-मो नसीहर
9. तरबूज खरबूज की खेती के बढ़ावा देने के लिए यदि सस्ते लोन मिले तो किसानों को काफी बढ़ावा मिलेगा और बाढ़ प्रभावित इलाके के किसानों की माली हालत में काफी सुधार होगा।
-मो. रफीक
10. पहले तरबूज की खेती करते थे लेकिन परेशानी अधिक होने के कारण तरबूज की खेती करना छोड़ दिया है। सरकार अगर सहायता करें तो फिर से तरबूज की खेती शुरू कर देंगे।
-विश्वजीत दास
11. सरकार को तरबूज खरबूज की खेती को बढ़ावा देने के लिए कुछ पंचायत को गोद लेना चाहिए और सारी सुविधा सहज रूप से उपलब्ध कराना चाहिए।
-आशीष कुमार
12. अब किसानों ने तरबूज की खेती करने में काफी दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है। अगर किसानों को फसल का मुआवजा दिया जाने लगे तो किसान निडर होकर खेती करेंगे।
-अबू बकर
13. महज 3 महीने की तरबूज-खरबूज की खेती ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। कमर्शियल क्रॉप में इस खेती ने केला जैसी व्यावसायिक फसल को भी पछाड़ दिया है।
-एजाज अंजुम
14. तरबूज एक ऐसी खेती है जो सोने के अंडे जैसी कही जा सकती है क्योंकि एक बड़ा तरबूज मार्केट में दे जाने से 2 से 3 किलो हरी सब्जी मिल जाता है। रिश्तेदारों के यहां बताओ संदेश तरबूज भेजा जाने लगा है।
-गुलाम नुरानी
बोले जिम्मेदार :
1. सरकार ने पूर्णिया में तरबूज के किसानों के लिए बीज खरीदगी पर 75 फ़ीसदी अनुदान की योजना लागू किया है। आने वाले समय में तरबूज की खेती का विस्तार किया जाएगा। अभी तक मात्र 8000 पौधे लगाने के लिए सरकारी टारगेट है, जो पूरा हो गया है।
राहुल कुमार, सहायक निदेशक (उद्यान)।
2. महानंदा नदी के किनारे तरबूज की खेती की पट्टी बनी हुई है। तरबूज की खेती करने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे आने लगे हैं। उनकी कुछ समस्याएं हैं, उसका समाधान करवाया जाएगा और तरबूज के किसानों के कल्याण और विकास की बात सरकार से की जाएगी।
सैयद रुकनुद्दीन, विधायक बायसी, विधायक।
डुब्बा इलाके में तरबूज से आमदनी ही किसानों के लिए बाढ़ से पहले जमा पूंजी :
पूर्णिया। मानसूनी बारिश के टपकने के साथ नदी किनारे के लोगों के बीच दहशत समा जाता है। बाढ़ की चिंता लोगों के माथे पर स्पष्ट दिखने लगती है। ऐसे में गर्मी के मौसम में तरबूज से होने वाली आमदनी ही बाढ़ के दिनों में बायसी अनुमंडल के किसानों के लिए हाथ में जमा पूंजी होती है। महानंदा, कनकई, कोसी के कछार के किसानों का तरबूज की खेती से ही घर परिवार चलता है। कई तो अपने बच्चों की परवरिश से लेकर शादी तक तरबूज बेचकर ही करते हैं। बायसी में तरबूज तैयार होने के बाद इसकी बिक्री बाहर के राज्यों में होती है। यहां से शुरूआती दिनों में तरबूज को बंगाल के अलावा नेपाल तक भेजा जाता है। इससे किसानों को लाभ मिलता है। शुरुआती दिनों में बाहर सप्लाई करने के बाद गर्मी में लोकल मार्केट में भी यहां के तरबूज की बिक्री होती है। हालांकि, लोकल में कम कीमत के कारण किसान इसे बाहर बेचना ही मुनासिब समझते हैं। अलबत्ता फागुन शुरू होते ही पूर्णिया के बाजार में महाराष्ट्र के सोलापुर के तरबूज उतर आते हैं। महाराष्ट्र के सोलापुर के तरबूज भी इस साल बाजार में दो माह पहले ही आ गया है। पूर्णिया जिले के डेंगराह पुल के पुरब पार एनएच 31पर एवं पूर्णिया शहर के खुश्कीबाग मंडी में करीब एक माह से मंगाई जा रही है। अभी 30-35 रुपया प्रतिकिलो है। डेंगराह में तरबूज बेचने वाले तनवीर आलम ने बताया कि करीब एक माह से यहां के बाजारों में महाराष्ट्र के सोलापुर तरबूज दिख रहा है। महाराष्ट्र के सोलापुर से ट्रक से तरबूज मंगवाया जाता है। जनवरी के अंत एवं फरवरी के शुरू होते ही सबसे पहले सोलापुर के फल मंडी में तरबूज पहुंच जाता है, जहाँ से देश के हर कोने तक तरबूज पहुँच जाता है। मो. नसीहर ने बताया कि डेंगराह एवं खुश्की बाग के दुकानदार मिल कर महराष्ट्र के सोलापुर से करीब चार से पांच ट्रक तरबूज रोज लाते हैं। एक ट्रक में आठ से दस लाख की लागत से तरबूज मंगवाते हैं। तरबूज को लाने में 5 से 6 दिन का समय लगता है। तरबूज के व्यवसाय से जुड़े एक व्यापारी ने बताया कि सोलापुर का तरबूज बहुत ही कम दुकानों में मिल रहा है। गांव में अभी नहीं पहुँचा है। 15 अप्रैल तक लोकल तरबूज निकलने की संभावना है। इस वर्ष तरबूज की फसल अच्छी लगी है तो निश्चित रूप से लोकल तरबूज पिछले साल के मुकाबले सस्ती रहेगी। लोकल तरबूज की बात ही निराली है। गर्मी में लोग बायसी के तरबूज ही खाते हैं।
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