बाढ़ में बेजार हो गया मसाढ़ू, डूबे आशियाने का निशां तक नहीं
गंगा की धारा ऐसी बदली कि मसाढ़ू गांव पर कहर बनकर टूटी कई पक्के दो
भागलपुर, प्रधान संवाददाता। सबौर प्रखंड का पुरानी मसाढ़ू अब गांव का नाम तो है लेकिन गांव नहीं रहा। गंगा की वेग ने इस गांव के आधे से अधिक हिस्से का नामोनिशान मिटा दिया है। जो बचे वह भी कटाव के मुहाने पर हैं, लोग अपना सामान खाली कर चुके हैं, घर की ईंटों, खिड़कियों-दरवाजे को उखाड़ रहे हैं। पूरे गांव में तबाही का मंजर है। टूटे घरों से औरतों की सिसकियां सुनाई दे रही हैं, दूध के लिए बच्चे रो रहे हैं। गांव के बुजुर्ग घरों को जमींदोज करने वाली इस त्रासदी पर नि:शब्द हैं। उनकी डबडबायी आंखों में बस एक ही सवाल है- अब कहां बसेंगे...जिंदगी कैसे गुजरेगी। सबौर से लगभग सात किमी आगे, बांयी तरफ 300 घरों का यह गांव एक ग्रामीण सड़क के इर्द-गिर्द बसा था। पिछले कुछ सालों से बदली गंगा की धारा ने पहले तो गांव की कृषि योग्य भूमि को अपने में समा लिया। लेकिन इस साल गंगा की धार इनकी घरों तक पहुंच गई। पहले सड़क की दूसरी ओर बसे घर कटे फिर सड़क और अब सड़क पार के मकान भी कट गए। शनिवार को कटाव के बाद बची छोटी सी सड़क पर बैठे ग्रामीण कृष्ण कुमार कहते हैं- पूरा गांव तबाह हो गया। लगभग 300 घरों वाले इस गांव के 150 घर इस बार गंगा के कटाव की भेंट चढ़ गए। इनमें से कई दो मंजिले और तीन मंजिले पक्के मकान भी थे। पिछले साल जहां गंगा ठहरी थी वहां से लगभग 200 मीटर तक कटाव हो गया जिसकी जद में आधा से ज्यादा गांव भी आ गये।
इधर, हिन्दुस्तान टीम को देखकर गांव की महिलाएं भी इकट्ठा हो गईं। इनमें से एक आभा देवी ने बताया कि घर कट जाने के बाद कई लोग अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए, कुछ लोग स्कूलों में तो कुछ बचे घरों में शरण लिए हुए हैं। वहीं पूजा देवी ने बताया हमलोगों को हमारे हाल पर छोड़ दिया गया। कोई देखने नहीं आया। आज शिविर है तो कच्चा-पक्का खाना मिल जाएगा। कल क्या करेंगे? कहां जाएंगे, कैसे बच्चों को खाना खिलाएंगे। न जमीन बची न घर। बहरहाल, गांव की इस तबाही के बाद जल संसाधन विभाग और प्रशासन के अधिकारी आ-जा रहे हैं। पीड़ितों की सूची बन रही, मुआवजा का आश्वासन दिया जा रहा है तो दूसरी ओर कटाव रोकने के लिए बंबू रॉल और जियो बैग लगाए जा रहे हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि अब पुरानी मसाढ़ू नहीं रहा और इन कवायदों के बाद भी गांव में रहने वालों को फिर से बसाना ही बड़ी चुनौती है। वरना एक भरा-पूरा गांव खानाबदोश होने को मजबूर होगा।
हमारी आंखों के सामने गंगा में समा गया हमारा आशियाना
राजेश कुमार मंडल ने बताया कि पहले रोड कटा तो हमलोगों ने घर खाली कर दिया। दूसरे ही दिन हमारी आंखों के सामाने दो मंजिला मकान गंगा में बैठ गया। इसमें हमारी दुकान भी थी। वहीं आभा देवी ने बताया कि उनका खपड़ैल का मकान था। पूरा घर 10 मिनट के अंदर गंगा में विलीन हो गया। मेहनत मजदूरी से बनाए घर को गंगा में कटते बस हम निहारते रह गए। इसी तरह सुमरा मंडल का भी तीन मंजिला मकान 15 मिनट में ही जमींदोज हो गया।
हर आने-जाने वालों से मदद की आस
कटाव की इस त्रासदी के बाद पूरा गांव मददगारों को ढूंढ़ रहा है। गांव आने-जाने वाले हर व्यक्ति से मदद की आस जगती है। जब भी गांव की तरफ कोई मुड़ता है तो उन्हें लगता है हमारी मदद को आ रहे हैं। कागज कलम देखकर लोग पीड़ितों की सूची में नाम लिखाने आ जाते हैं।
पहले सैकड़ों बीघा खेत कटा, अब गांव ही कट गया
मसाढ़ू के रणजीत मंडल और पिंटू कुमार ने बताया कि कटाव 2013 से शुरू हुआ था। तब गांव के आगे गंगा की धार से पहले सैकड़ों बीघा जमीन थी। वही जमीन इस गांव की रोजी रोटी का सहारा था। लेकिन धीरे-धीरे गांव की धार में वो जमीन कटती गई। अंत में गांव भी जद में आ गया। कह लें कि पहले हमारी रोजी-रोटी का स्थायी साधन छीना उसके बाद हमारा घर भी नहीं रहा। जब जमीन थी तो सब्जी, मक्का, कलाई आदि उपजाते थे और उसी से गांव में संपन्नता थी।
अगर पहले से होता बचाव का काम तो बच जाता हमारा गांव
मसाढ़ू के ग्रामीणों का आरोप है कि पिछले दस साल में प्रशासन ने कटाव से बचाने के लिए कोई काम नहीं किया। अगर बाढ़ से बचाव के लिए पहले काम किया गया होता तो कम से कम हमारा गांव नहीं कटता। पहले जमीन कटती रही और अधिकारी देखकर जाते रहे। हमलोग दियारा में नहीं बसे थे, एक बसा बसाया गांव था जो अब उजड़ गया।
हमारी चिंता अब बसेंगे कहां, घर कैसे बनाएंगे
गांव के बुजुर्ग मुनीलाल मंडल कहते हैं कि हमलोग बचपन में गंगा जाने के लिए ढाई तीन किलोमीटर चलते थे, पता नहीं था एक दिन गंगा घर के इतनी पास आ जाएगी कि घर ही नहीं बचेगा। अब तो हमारी चिंता यही है कि हम कहां जिंदगी गुजारेंगे, हमारे बच्चे कहां रहेंगे। पूरे गांव में खाने के लाले पड़े हैं।
बड़े अधिकारी एक बार आकर हमारी तबाही का मंजर तो देखें
ग्रामीणों ने कहा कटाव के बाद एक बार अधिकारियों की टीम आयी लेकिन पूरे गांव की स्थिति नहीं देखे। गांव में सामुदायिक रसोई खुलवाकर चले गए। लेकिन हमलोग चाहते हैं कि बड़े अधिकारी हमारी उजड़ी दुनिया को करीब से देखें और हमें बसाने के लिए प्रयास करें।
सरकारी आंकड़ा क्या है
सबौर के अंचलाधिकारी सौरव कुमार ने बताया कि कटाव पीड़ितों का सर्वे जारी है। शनिवार शाम 5 बजे तक मसाढ़ू के 42 कटाव पीड़ितों का आवेदन जमा हुआ है। मुआवजा के लिए अभिलेख तैयार किया जा रहा है।
अधिकारियों को दिया गया है निर्देश, मॉनिटरिंग कर रहे हैं: सांसद
सांसद अजय मंडल ने बताया कि मसाढ़ू की पीड़ा से वाकिफ हैं। अभी गांव के बचे हिस्से को बचाने के लिए फ्लड फाइटिंग का काम हो रहा है। पानी निकलने के बाद बांध बनाने का काम होगा। जिनका घर कटा है उन्हें बसाने का भी प्रयास होगा।
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