Hindi Newsबिहार न्यूज़भभुआWomen in Semriya Nai Basti Struggle with Ujjwala Yojana Gas Refills Resort to Traditional Fuels

चूल्हा-सिलेंडर कोना में रख लकड़ी-गोइठा से पका रहीं खाना (पेज चार की लीड खबर)

भभुआ के सेमरियां नई बस्ती की महिलाओं ने उज्जवला योजना से गैस कनेक्शन लिया, पर गैस की महंगी कीमतों के कारण वे लकड़ी-गोइठा के चूल्हे पर ही खाना पकाने को मजबूर हैं। 800 की आबादी वाले इस क्षेत्र में 60...

Newswrap हिन्दुस्तान, भभुआFri, 30 Aug 2024 09:03 PM
share Share

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से सेमरियां नई बस्ती की महिलाओं को मिला है कनेक्शन, मजदूरी से बमुश्किल कर पाते हैं दाल-रोटी का इंतजाम एक सिलेंडर से 15-20 दिन खाना पकाने पर खाली हो जाता है सिलेंडर गोइठा-लकड़ी के चूल्हे पर घरों में खाना पका रही हैं मजदूर की पत्नियां 90 घरों में निवास करती है करीब 800 आबादी 60 घरों की महिलाओं ने ले रखा है गैस कनेक्शन भभुआ, एक प्रतिनिधि। शहर से सटे सेमरियां नई बस्ती की 60 महिलाओं ने अपने नाम से प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से गैस कनेक्शन लिया है। लेकिन, इनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह सिलेंडर में गैस भरवाकर उसके चूल्हे पर वह खाना पका सकें। इसलिए इस बस्ती की महिलाएं आज भी लकड़ी-गोइठा के चूल्हे पर ही खाना पका रही हैं। इस बस्ती की महिला उपभोक्ताओं रामरति देवी, बाउदी कुअर, मुन्नी कुंअर, फूला देवी, निर्मला देवी आदि ने बताया कि कनेक्शन देते समय उन्हें गैस सिलेंडर, चूल्हा, रेगुलेटर, पाइप आदि सामान मिले थे। जब उन्हें उज्ज्वला योजना का कनेक्शन मिला था, तब गैस भरा सिलेंडर भी मिले थे, जिसका सभी ने उपयोग किया। उक्त महिलाओं ने बताया कि जब सिलेंडर की गैस खत्म हो गई, तब कोई-कोई ही गैस भरवा सका। शुक्रवार की सुबह जब इस बस्ती में यह संवाददाता पहुंचा तो कुछ महिलाएं फूंस की बनी झोपड़ी में लकड़ी-गोइठा के चूल्हे पर खाना पकाते, चावल बुनते व सब्जी काटते मिलीं। महिलाओं ने बताया कि सरकार ने चूल्हा, सिलेंडर, पाइप, रेगुलेटर दिया है, लेकिन गैस इतनी महंगी है कि वह भरवा नहीं पाती हैं। मजदूरी कर किसी तरह दाल-रोटी का इंतजाम कर लेते हैं। महिलाओं का कहना था कि आसपास के पेड़ से सूखकर गिरी लकड़ियां चुनकर लाती हैं, जिससे खाना पकाती हैं। एक सिलेंडर गैस भराने में लगभग 1100 रुपए लगता है। गैस 15-20 दिनों में खत्म हो जाती है। महिलाओं ने घर के कोने में रखे खाली सिलेंडर दिखाया और कहा कि इसी तरह रखा हुआ है। जब कभी मोहल्ले में किसी के घर शादी होती है, वह लोग मांगकर ले जाते हैं और फिर खाली होने के बाद पहुंचा देते हैं। महिलाओं ने बताया कि उनके पास तो लकड़ी-गोइठा खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। ताड़ के पत्तों, पेड़ की लकड़ियों के झुनखून से खाना पका रहे हैं। इस बस्ती के 90 घरों में करीब 800 आबादी निवास करती है। 60 घरों की महिलाओं के नाम से उज्जवला योजना से गैस कनेक्शन मिले हैं। इस बस्ती के 25 घरों में मुसहर बिरादरी के लोग रहते हैं। इनमें से 20 घरों की महिलाओं को मुफ्त में गैस कनेक्शन मुहैया कराए गए हैं। इस बस्ती की प्रमीला देवी, फूला देवी, अनीता देवी, प्रभावती देवी, लालती देवी, सोनी देवी आदि महिलाओं का कहना था कि जब सिलेंडर उन्हें मिला था, तब उसमें गैस भरी थी और उसका उपयोग भी किया। घूम-घूमकर चुनते हैं लकड़ी व कोयला सेमरियां नई बस्ती की महिलाओं ने बताया कि वह सुबह उठकर आसपास के इलाकों में पेड़ से टूटकर गिरी लकड़ियां और किसी दुकान के चूल्हे की राख निकालने पर मिले जले कोयलो को चुनकर घर लाती हैं, जिससे वह खाना पकाती हैं। खाना पकाकर वह मजदूरी करने चली जाती हैं। अपने साथ वह रोटी-गुड़, नमक, प्याज, मिर्च की पोटली बनाकर कार्य स्थल पर ले जाती हैं, जिसे दोपहर में खाती हैं। कुआर व कार्तिक महीने में टेनी काटती (आहर के किनारे उगे धान) हैं और उसका चावल निकालकर भोजन का प्रबंध करती हैं। इसी से परिवार का गुजारा होता है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का उद्देश्य ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने, महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा करने, खाना पकाने में उपयोग होने वाले हानिकारक इंधन से मुक्त करने, वायु प्रदूषण को कम करने, असुरक्षित इंधन से घरों को आग लगने से बचाने, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में मजदूर दिवस पर उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर सरकार ने यह योजना लागू की है। बरसात में बढ़ जाती हैं मुश्किलें भारत सरकार की महत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना महिलाओं को बीमारी से बचाने एवं महिला सशक्तिकरण के लिए लागू की गई है। लेकिन, कनेक्शन लेने के बाद भी इस योजना का लाभ इस बस्ती की महिलाएं नहीं ले पा रही हैं। शहर में स्थित नागा बाबा गैस एजेंसी के संचालक प्रतीक कुमार ने बताया कि वष्र्ज्ञ 2016 से अब तक लगभग 18000 उज्ज्वला योजना से गैस कनेक्शन दिए गए हैं, जिसमें सामान्य दिनों में 40 से 45 फीसदी और बरसात में 55 से 60 फीसदी रिफिलिंग हो जाती है। लालती देवी, राम प्यारी देवी ने बताया कि सामान्य दिनों में पेड़ों से टूटी हुई लकड़ी मिल जाती है। लेकिन, बरसात में इंधन का प्रबंध करने में दिक्कत होती है। बरसात में हमलोग बड़ी मुश्किल से गैस भरवाकर काम चलाते हैं। मजबूरी है ऐसे खाना पकाना पैसे के अभाव में गैस की रिफिलिंग नहीं कराने वाली महिलाएं फूंस के घर में लकड़ी के टुकड़ों व ताड़ के पत्तों को जलाकर खाना पका रही थीं। खाना पका रही बबुनी कुंअर से पूछने पर कहा कि चिंगारी से आग लगने व धुआं से बीमार होने की आशंका बनी रहती है। लेकिन, यह मेरी मजबूरी है। रात में बारिश हुई है। जमीन की मिट्टी गीली है। कहां भोजन पकाएं? फोटो- 30 अगस्त भभुआ- 6 कैप्शन- भभुआ शहर से सटे सेमरियां नई बस्ती में शुक्रवार को अपने घर में खाना पकाती महिला।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें