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सुजानपुर:दुर्गा पूजा में सुदर्शन चक्र की तरह बनेगा भव्य पंडाल

फ्लायर या बॉटम.... करीब आता जा रहा है उसी तरह पूजा की तैयारी में भी जोर-शोर से शुरू हो गया है। जगह-जगह पंडाल आकृति लेना शुरू कर दिया है। वहीं मूर्तिकार प्रतिमा को बनाने में जुट गए हैं। प्रखंड के...

Newswrap हिन्दुस्तान, बेगुसरायWed, 25 Sep 2024 07:01 PM
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गढ़पुरा, निज संवाददाता। जैसे-जैसे शारदीय नवरात्र करीब आता जा रहा है उसी तरह पूजा की तैयारी में भी जोर-शोर से शुरू हो गया है। जगह-जगह पंडाल आकृति लेना शुरू कर दिया है। वहीं मूर्तिकार प्रतिमा को बनाने में जुट गए हैं। प्रखंड के सुजानपुर गांव में वैष्णवी दुर्गा मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। यहां प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार अन्य वर्षों की अपेक्षा और ही बेहतर तरीके से दुर्गा मेले की तैयारी की जा रही है। इस बार दुर्गा पूजा में सुदर्शन चक्र की तरह भव्य पंडाल बनाया जाएगा। सुजानपुर गांव का भगवती मंदिर वर्ष 1936 में स्थापित किया गया था। बताया जाता है कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद बखरी, रामपुर के महंथ ने इस मंदिर को स्थापित किया था। तबसे यह मंदिर क्षेत्र के लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। वैसे तो यहां की पूजा बड़े ही सादगी से की जाती है, लेकिन शारदीय नवरात्र के दौरान मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर भारी भीड़ लगी रहती है। मूल्य वृद्धि से प्रतिमा निर्माण पर खर्च बढ़ा इस मंदिर में प्रतिमा का निर्माण कुम्हारसो के मूर्तिकार जयजय राम पंडित द्वारा किया जाता है। इसमें मां भगवती के साथ ही विभिन्न देवी दवताओं की प्रतिमा स्थापित की जाती है। प्रतिमा को अलौकिक और जीवंतता प्रदान करने को लेकर मूर्तिकार अपनी हुनर से इसे गढ़ रहे हैं। मूर्तिकार ने बताया कि समय के साथ-साथ सारी चीजों के मूल्य में वृद्धि हो गई है। पूजा समिति द्वारा जैसा खर्च किया जाता है उसी के अनुरूप प्रतिमा का निर्माण होता है। पंडाल और डेकोरेशन होगा आकर्षण का केंद्र पूजा के दौरान सजावट और लाइटिंग पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इस बार यहां का पूजा पंडाल देखने लायक होगा। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र तरह बनाए जाएंगे पंडाल। इसे बनाने का दायित्व रौशन टेंट हाउस सुजानपुर को सौंपा गया है। पूरे परिसर में रोलेक्स सजावट की जाएगी। वही मेला परिसर के अलावा मुख्य मार्ग में लगभग ढ़ाई किलोमीटर तक लाइटिंग और ध्वनि विस्तारक यंत्र की व्यवस्था रहेगी। बेल और शीशकोहरा की दी जाती है बलि वैष्णवी दुर्गा होने के कारण यहां जीव-जंतुओं की बलि नहीं दी जाती है, बल्कि उसके स्थान पर फलों की बलि प्रदान करने की व्यवस्था है। इसके तहत महा सप्तमी की रात शीशकोहरा, बेल और गन्ने को बलि प्रदान कर इस प्रक्रिया को पूरी की जाती है। उसके बाद मंदिर के पट खोल दिये जाते हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी लाल झा ने बताया कि मैया की महिमा अपरंपार है। जो भी सच्चे मन से माता की आराधना करते हैं उनकी हर मनोरथ पूरी होती है। महाअष्टमी से नवमी तक श्रद्धालुओं की रहती है अपार भीड़ इस मंदिर में माहाअष्टमी से लेकर महानवमी तक श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रहती है। मंदिर परिसर में तिल रखने भर की जगह नहीं रहती। माता के खोईछा भरने के साथ ही कन्या पूजन और ब्राह्मण भोजन को लेकर काफी संख्या में श्रद्धालु यहां जुटते हैं। पूजा के दौरान संध्या बेला में बड़ी संख्या में महिलाएं, युवतियां तथा बच्चियां दीपदान करने पहुंचती हैं। जो देखने में बड़ा ही मनोहारी लगता है। पूजा पर खर्च होते हैं ढाई से तीन लाख दुर्गा मेला के दौरान यहां पूरी व्यवस्था पर ढाई से तीन लाख रुपये खर्च होते हैं। इस बार यहां की पूजा वृहत रूप ले रहा है। नए सिरे से मंदिर का निर्माण भी किया गया है। इनमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी मुख्य योगदान रहा है। जिसके कारण अन्य वर्षो की अपेक्षा इस बार दुर्गा मेला की व्यवस्था को व्यापक रूप दिया जा रहा है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन की भी तैयारी चल रही है। विनोद कुमार झा,अध्यक्ष यहां का मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है इस मंदिर का कनेक्ट बखरी स्थित पुरानी दुर्गा मंदिर से है। जिस दिन वहां प्रतिमा का विसर्जन होगा उसी दिन यहां भी माता की प्रतिमा का विसर्जन शोभायात्रा निकालकर की जाती है। मंदिर का नए सिरे से निर्माण कर दिया गया है। उसके परिसर की सजावट भी की जा रही है। मेला के दौरान व्यवस्था में कोई कमी नहीं रहने दी जाएगी। विधि व्यवस्था को पूजा समिति के द्वारा कार्यकर्ताओं को भी लगाया जाएगा। संतोष कुमार झा,सचिव

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