कटोरिया-चांदन के पठारी इलाकों में सिंचाई की समस्या: बंजर खेत और टूटी उम्मीदें
पेज चार की लीडपेज चार की लीड हिन्दुस्तान विशेष धान की कटनी के बाद किसानों के खेत बने बंजर रबी फसल की बुआई होती है प्रभावित अब

कटोरिया (बांका) कविन्द्र कुमार सिंह/ निज प्रतिनिधि कटोरिया और चांदन जैसे पठारी इलाकों में सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने से किसान गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में किसानों की आजीविका पूरी तरह से मानसून की अनिश्चितता पर निर्भर है। पानी की कमी व सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं होने से किसान केवल खरीफ सीजन में धान की खेती कर पाते हैं। धान की कटनी के बाद खेत बंजर पड़े हुए हैं। सिंचाई के अभाव में किसान वैकल्पिक फसलें उगाने में असमर्थ हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। इन इलाकों में खेती का आधार सिर्फ बारिश की बूंदें हैं। आगामी खरीफ सीजन में धान की बुआई तो होगी, लेकिन तब तक ये खेत पानी के अभाव में खाली रहेंगे। धान की खेती भी किसान देववृष्टि के भरोसे करते हैं। मौसम ने साथ दिया तो उपज नहीं तो सूखा झेलना, यहां के किसानों के नसीब में है। नदी से सटे खेतों में कुछ किसान गड्ढा खोदकर पटवन कर अपने फसल को बचा लेते हैं। लेकिन गर्मी आते ही तालाब या अन्य जल स्त्रोतें किसानों का साथ छोड़ देती है। जबकि रबी सीजन में किसान किसी भी फसल की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि, नदी किनारे के कुछ खेतों में किसान रबी फसल की खेती करने में सक्षम हैं, लेकिन बाकी क्षेत्र का बुरा हाल है। कुछ किसान बोरवेल के सहारे सब्जियों की खेती कर रहे हैं, लेकिन यह विकल्प केवल सीमित किसानों के लिए उपलब्ध है। बोरवेल की ऊंची लागत और पानी की कमी के कारण ज्यादातर किसान इसका उपयोग नहीं कर पाते। इस वजह से सब्जी उत्पादन भी छोटे स्तर तक सीमित रह गया है। कटोरिया और चांदन जैसे क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का अभाव कृषि विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
कहते हैं किसान
किसान सुरेंद्र सिंह, नरेश पंजियारा, शिवशंकर सिंह, रामजी सिंह, विशेषर यादव, रणधीर सिन्हा, चंद्रदेव यादव आदि का कहना है कि सिंचाई साधनों के अभाव में रबी फसलों की बुआई लगभग असंभव हो गई है। हम गेहूं, चना, मसूर जैसी फसलों की खेती करना चाहते हैं, लेकिन सिंचाई व्यवस्था की कमी हमारे प्रयासों को विफल कर देती है। पानी की कमी के कारण इन क्षेत्रों में रबी सीजन में फसल नहीं हो पाती। धान की कटनी के बाद खेत खाली पड़े हुए हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी घट रही है। यदि सरकार और प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाते हैं, तो हम किसानों की स्थिति में सुधार आ सकता है।
फाइलों में दबकर दम तोड़ चुकी दरभाषण जलाशय योजना
दरभाषण जलाशय योजना, जो इस क्षेत्र में सिंचाई की समस्या का स्थाई समाधान बन सकती थी, आज सरकारी फाइलों में दबकर दम तोड़ चुकी है। जिससे हजारों किसानों का समृद्ध होने का सपना बिखर गया। इसका मुख्य कारण वन विभाग की भूमि अधिग्रहण में हो रही परेशानी एवं जलाशय के पूर्वी केनाल की मेढ़ पर रेलवे लाईन बनना बताया गया। यह योजना लगभग 4 दशक से अपने कर्णधार की आस देखते देखते थक गई। इस योजना के पूरी होने से लगभग 3 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचित होती। जिससे लगभग 15 हजार किसानों की सिंचाई की समस्या दूर हो जाती। लेकिन आज तक कोई भी राजनीति के दिग्गज या अधिकारी इसको पूरा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं।
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