आठ वर्षों से वाल्मीकि महोत्सव ठप, प्रशासन व लोगों ने बिसारा
वाल्मीकिनगर, जो महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है, पिछले आठ वर्षों से महोत्सव के बिना है। 2014 में शुरू हुआ वाल्मीकि महोत्सव प्रशासनिक लापरवाही के चलते ठप पड़ा है। इस क्षेत्र में माता सीता और लव-कुश की...
बगहा। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि वाल्मीकिनगर को उनके नाम से ही प्रसिद्धी मिली। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित वाल्मीकिनगर से सटे नेपाल में आज भी वाल्मीकि आश्रम मौजूद हैं। यहां मौजूद है माता सीता व लव-कुश की यादें। देश-विदेशों में महषि वाल्मीकि को याद किया जा रहा है लेकिन वाल्मीकिनगर में ही उन्हें भुला दिया गया। प्रशासनिक स्तर पर होने वाला वाल्मीकि महोत्सव भी पिछले आठ वर्षों से ठप पड़ा हुआ है। बता दें कि वर्ष 2014 में कला एवं संस्कृति मंत्रालय की पहल पर वाल्मीकिनगर में वाल्मीकि महोत्सव की शुरुआत की गई थी। तत्कालीन कला एवं संस्कृति मंत्री ने इसे राजकीय महोत्सव के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अगले वर्ष 2015 में ही महोत्सव नहीं हुआ। इसके अगले वर्ष 2016 में प्रबुद्धजनों व जनप्रतिनिधियों की पहल पर महोत्सव हुआ। लेकिन इसके बाद अब तक यह बंद है। शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है। इधर, सरकार की ओर से नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय कंवेंशन सेंटर में महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा लगाई गई है। स्थानीय रामअवध प्रताप सिंह, राघवेन्द्र प्रसाद, मोहन प्रसाद, डी.आनंद आदि ने बताया कि वाल्मीकि आश्रम में आज भी अमृत कुंआ, यज्ञ स्थल, लव-कुश के घोड़ा बांधने की जह, माता सीता वनदेवी के रूप में भोजन बनाने की जगह, मंदिर मौजूद हैं। महोत्सव होने पर पर्यटन के दृष्टि से भी वाल्मीकिनगर को बढ़ावा मिलेगा।
60 पूर्व वर्ष तत्कालीन राज्यपाल ने दिया था नाम वाल्मीकिनगर:
60 वर्ष पूर्व 14 जनवरी 1964 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल अनंतस्यनम आयंगर ने भैंसालोटन का नाम बदलकर वाल्मीकिनगर रखा था। 28 अप्रैल 1963 को राज्यपाल गंडक बराज का निरीक्षण करने आये थे। इसी दौरान महर्षि वाल्मीकि से जुड़े यादों को देखकर 14 जनवरी 1964 को अधिकारिक तौर पर भैंसालोटन का नाम बदलकर वाल्मीकिनगर करने की घोषणा की थी।
सुभाषचन्द्र बोस के सहयोगी रहे धनराजपुरी ने वाल्मीकि आश्रम को दिलाई थी पहचान:
महंथ धनराज पुरी (फारवर्ड ब्लाक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर पुस्तक लिखी थी। वाल्मीकिनगर:वाल्मीकि आश्रम। इस पुस्तक में उन्होंने प्रमाणित किया कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के किनारे स्थित था, जो आज भी वाल्मीकि आश्रम के पास कलकल करती हुयी बहती है। वाल्मीकिनगर के निकट, भारत व नेपाल की सीमा पर गंडक नदी में तमसा नामक एक छोटी सी पहाड़ी नदी मिलती है। इसी जगह तमसा, गंडक व स्वर्णरेखा (सोनहा) नामक तीन नदियों का संगम है। इसे त्रिवेणी संगम कहे जाते हैं। प्राचीन काल से इस स्थल पर माघ अमावस्या के दिन त्रिवेणी मेला लगता है। मेले में चम्पारण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के नागरिक हजारों की संख्या में आते हैं और पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं। श्रद्धालु यहां तमसा नदी के किनारे स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम एवं मां सीता की कुटिया और कुएं के दर्शनों करते हैं। यहां का अद्भूत प्राकृतिक सौंदर्य मन मोह लेता है।-प्राणों को परम पावन बना देता है। यहां जटाशंकर महादेव का मंदिर, नरदेवी का मंदिर, और अन्य कई दर्शनीय स्थल है।
बयान:
वाल्मीकि महोत्सव के बारे में मुझे किसी तरह की जानकारी नहीं है। ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा है।
- गौरव कुमार, एसडीएम, बगहा
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