बिहार के19 फीसदी स्कूलों में कुएं से बुझ रही बच्चों की प्यास, NCERT की एफएलएस रिपोर्ट से खुलासा
पहाड़ी इलाकों के जिलों में पेयजल की उपयुक्त व्यवस्था नहीं हो पाने से वहां के स्कूलों में आज भी कुओं पर ही निर्भरता है। दरअसल, बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सभी विद्यालय में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता तय कराने को लेकर शिक्षा विभाग ने निर्देश जारी किया है।
बिहार के 19 प्रतिशत स्कूलों में आज भी पीने का पानी ठीक से नहीं मिल रहा। आस पास के कुएं के पानी से छात्र-छात्राओं की प्यास बुझ रही है। देशस्तर पर यह व्यवस्था 20 प्रतिशत स्कूलों में आज भी चल रही है। जबकि 79 प्रतिशत स्कूलों में पीने के पानी के साधन के रूप में चापाकल मौजूद है। एनसीईआरटी की एफएलएस रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। कुएं का पानी अनसेफ होता है। इसके सेवन से बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
इसके साथ एक तथ्य यह भी उभर कर सामने आया है कि 15 प्रतिशत स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से पानी का स्टोर कर उसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। 65 फीसदी स्कूलों में पेजयल के लिए नल का जल की व्यवस्था है। इसका खुलासा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की ओर से जारी फाउंडेशनल लर्निंग सर्वे (एफएलएस) रिपोर्ट में हुआ है। विभागीय जानकारों के अनुसार प्रदेश के पहाड़ी इलाकों के जिलों में पेयजल की उपयुक्त व्यवस्था नहीं हो पाने से वहां के स्कूलों में आज भी कुओं पर ही निर्भरता है। दरअसल, विद्यालयों में पढ़ाई कर रहे बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सभी विद्यालय में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता तय कराने को लेकर शिक्षा विभाग ने निर्देश जारी किया है। भागलपुर समेत सभी 38 जिलों के विद्यालयों में नल का जल, हैंडपंप और सबमर्सिबल लगाने का निर्देश दिया गया है। प्रत्येक स्कूल में विभाग की ओर से 2 लाख 97 हजार की लागत से बोरिंग समेत बच्चों के लिए वॉश बेसिन और नल लगाने की योजना शुरू की गई है।
भागलपुर जिले की बात करें तो 104 विद्यालयों में सबमर्सिबल की व्यवस्था कराई गई है, जबकि शेष में काम जारी है। फिलहाल इसपर विभागीय स्तर से जांच के लिए रोक लगी हुई है। इसके अलावा स्कूलों में पेयजल के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना भी लागू की गई है। इसके अलावा बच्चों की शैक्षणिक प्रगति और समस्याओं को लेकर होने वाली शिक्षक अभिभावक बैठक (पीटीएम) का आयोजन किये जाने का शिक्षा विभाग ने निर्णय लिया है।
एनसीईआरटी की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 62 प्रतिशत विद्यालयों में हर महीने इस बैठक का आयोजन हो रहा है। जबकि देशस्तर पर यह आंकड़ा 52 फीसदी का है। वहीं बिहार में प्रत्येक तीन महीने पर होने वाली इस बैठक में 58 प्रतिशत स्कूल हिस्सा ले रहे हैं, जबकि देश स्तर पर यह आंकड़ा 56 प्रतिशत है। वहीं सूबे के 29 प्रतिशत विद्यालयों में आज भी इस बैठक का आयोजन नहीं किया जा रहा है। इसका आंकड़ा देश स्तर पर 17 प्रतिशत स्कूलों का है।