सिस्टम को फंक्शनल बनाना युवा डीएम के समक्ष बड़ी चुनौती
अररिया की डीएम इनायत खान का तबादला कर दिया गया है। अब जिले की कमान अनिल कुमार को सौंपी गई है। हालांकि, जिले में विकास की कई समस्याएं हैं जैसे भूमि विवाद, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और शिक्षा की स्थिति...
अररिया, संवाददाता दो साल से अधिक का कार्यकाल पूरा करने के बाद अररिया की डीएम इनायत खान का तबादला कर दिया गया है। उन्होंने नौ मई 2022 को अररिया डीएम का पदभार ग्रहण किया था। वहीं सरकार ने अब जिले की कमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2017 बैच के युवा अधिकारी अनिल कुमार को सौंपी है। कुमार जिले के 30वें डीएम होंगे। जबकि वर्ष 1990 में जिला बनने के बाद पहले डीएम आईएएस एके चौहान थे। सरकारी अधिसूचना के मुताबिक अररिया के डीएम बनने से पहले अनिल कुमार बिहार एड्स नियंत्रण सोसाइटी के परियोजना निदेशक के साथ साथ जल जीवन हरियाली के मिशन निदेशक के प्रभार में भी थे। कारण चाहे जो भी विकास के तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद कमोबेश हर साल बाढ़ की त्रासदी झेलने वाला ये जिला अब भी कई समस्याओं के मकड़ जाल में फंसा हुआ है। कागज पर तो सारी व्यवस्थाएं चुस्त दुरुस्त हैं, लेकिन तल्ख हकीकत ये भी है कि सिस्टम बहुत फंक्शनल नहीं है। छोटे छोटे कामों के लिए आम लोगों के बार बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। आम जन के लिए जिला स्तरीय वरीय अधिकारियों तक बात पहुंचानी भी आसान नहीं है। ये बात कमोबेश जिले का हर व्यक्ति भी जानता है कि भूमि विवाद और दाखिल खारिज अब भी जिले की शायद सबसे बड़ी समस्या है। ये आपस में एक दूसरे से जुड़े भी हैं। दाखिल खारिज की जमीनी हकीकत ये है कि ऑनलाइन आवेदन महज एक औपचारिकता बन कर रह गई है। भूस्वामियों को दर्जनों बार राजस्व कर्मचारी से लेकर सीओ के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। बाबुओं की मुट्ठी गर्म किए बगैर तो काम तकरीबन ना मुमकिन है। और मामला चंद सौ में नहीं हजारों के बाद ही अंजाम तक पहुंचता है। हल्का कर्मचारियों के ईद गिर्द ही नहीं बल्कि अंचल कार्यालयों तक में बिचौलिए बेखौफ दनदनाते फिरते हैं।
डेढ़ साल बाद भी परिमार्जन का मामला लंबित:
दाखिल खारिज तो बड़ी बात है मामूली त्रुटियों के लिए परिमार्जन आवेदनों के निष्पादन का हाल तक बहुत बुरा है। कुछ मामलों तो ऐसे हैं जहां साल डेढ़ साल बाद भी परिमार्जन लंबित है। पीड़ित जनता हल्का कर्मचारी और सीओ से लेकर संबंधित कंप्यूटर ऑपरेटर तक का चक्कर काटती रहती है। अररिया अंचल कार्यालय का तो हाल और भी बुरा है। भूमि सर्वे का काम शुरू होने की बात सामने आने के बाद रैयतों में आपाधापी मची है। इस मामले में भी बहुत स्पष्ट जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही है कि करना क्या होगा। कौन कौन से प्रपत्र भरने होंगे। प्रपत्र कहां से मिलेगा। सब कुछ अंधेरे में है। नतीजा ये है कि गांव गांव में बिचौलिए चांदी काट रहे है। कहा तो ये जा रहा है कि कुछ अंचलाधिकारी वंशावली निर्गत करने से साफ इंकार कर रहे हैं।हालांकि ऐसी शिकायतें आलाधिकारियों तक भी पहुंचती रही हैं, लेकिन समस्या जस की तस है।
भूविवाद की समस्या निबटाने की चुनौती:
भूमि विवाद को निपटाने के लिए थाना में जनता दरबार के आयोजन की व्यवस्था है। ऐसे दरबार के आयोजित होने की खबरें भी आती रहती हैं। पर स्थायी रूप से समस्या का निदान नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि भूमि विवाद को लेकर जिले में अक्सर छोटी बड़ी घटनाएं होती रहती हैं।
दोनों एनएच को छोड़ दिया जाए तो शहर की बहुत सारी सड़कें अब भी जर्जर हैं। हाल के दिनों में नगर परिषद और कुछ अन्य विभागों द्वारा कुछ सड़कों का निर्माण हुआ है और कुछ का जो रहा है। लेकिन इन नव निर्मित सड़कों की गुणवत्ता का आलम ये है कि छह माह भी नहीं गुजरे हैं कि सड़कों पर जगह जगह गड्ढे बन गए हैं।
जिले में नल जल योजना का हाल बुरा:
राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना हर घर नल का जल का भी कुल मिला कर हाल बुरा है। बताया जाता है कि आधार कार्ड को अपडेट कराने में भी आम लोगों को भारी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है। बिना कुछ खर्च किए काम नहीं होता। जिले में डॉक्टरों और पारा मेडिकल स्टॉफ की सख्त कमी है। सदर अस्पताल को मिला छह वेंटिलेटर अब तक चालू ही नहीं है। हाल ही चालू हुआ ब्लड बैंक में भी बहुत सारी सुविधाओं का अभाव है। सेपरेटर नहीं है। अधिकांश हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर एएनएम के भरोसे हैं।
शिक्षा व्यवस्था में अब भी सुधार की जरूरत:
जिला अभिलेखागार की स्थिति और भी बदतर है। शिकायत है कि आम लोगों को काम कराने के लिए बिचौलियों का सहारा लेना पड़ रहा है। खतियान निकलवाना लोगों के लिए बड़ी समस्या है। अनावश्यक विलंब होने पर पदस्थापित कर्मी ये कहते हैं कि फाईल पर साहब दस्तखत नहीं कर रहे हैं, वे क्या करेंगे। जिला अवर निबंधन कार्यालय की सेहत ठीक नहीं है। जिले की शिक्षा व्यवस्था में अब भी सुधार की जरूरत है। हालांकि बड़ी संख्या में शिक्षकों की पोस्टिंग हुई है, लेकिन ये सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले। वहीं जिले में शुरू हुए महानंदा बेसिन परियोजना फेज चार को भी व्यवस्थित कर गति देने की जरूरत है।
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