Hindi Newsधर्म न्यूज़When Nandi took poison with Shiva

जब नंदी ने शिव के साथ विष पान किया

Shiv and nandi: महादेव, ‘नंदी को अपने पिता ऋषि शिलाद से यह पता चला कि वह अल्पायु है। यही विचार कर नंदी भुवन नदी के किनारे साधना करने लगा। अटूट लगन और एकचित्तता थी उसके सुमिरन में! जब एक कोटि सुमिरन पूर्ण हुए, तो मैं प्रकट होकर दर्शन देने को विवश हो गया।

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानTue, 22 Oct 2024 07:47 AM
share Share

एक दिन माता पार्वती ने महादेव से पूछा, ‘आपको नंदी इतना प्रिय क्यों है?’ महादेव ने कहा,‘नंदी में सेवा और भक्ति दोनों का समन्वय है। उसके सेवा-कर्म में शौर्य है। उसकी भक्ति-आराधना में तप है, समर्पण है। निरंतर सुमिरन है इसलिए नंदी मुझे प्राणवत प्रिय है।’मां पार्वती, ‘प्रभु! भक्ति-भाव और समर्पण तो आपके सभी भक्तों और गणों में है। फिर नंदी की भक्ति में ऐसा क्या विशेष है?’

महादेव, ‘नंदी को अपने पिता ऋषि शिलाद से यह पता चला कि वह अल्पायु है। यही विचार कर नंदी भुवन नदी के किनारे साधना करने लगा। अटूट लगन और एकचित्तता थी उसके सुमिरन में! जब एक कोटि सुमिरन पूर्ण हुए, तो मैं प्रकट होकर दर्शन देने को विवश हो गया। जानती हो, वह साधना-सुमिरन में इतना मग्न था कि मुझसे वर मांगने का उसे ध्यान ही नहीं रहा। उसे साधनारत छोड़कर मैं अंतर्धान हो गया। ऐसा ही एक बार और हुआ। तीसरी बार जब मैं प्रकट हुआ, मैंने ही अपना वरद हस्त उठाकर उसे वर-प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। जानती हो देवी, तब भी नंदी ने दीर्घ आयु का वर नहीं मांगा। अपनी अखंड साधना का एक ही फल चाहा। उसकी चाह थी— केवल मेरा सान्निध्य!’ ‘हे महादेव! मुझे अपनी अलौकिक संगति का वर दो। अपना प्रेममय सान्निध्य और स्वामित्व दो। मैं दास भाव से आपके संग रहना चाहता हूं। मेरा हृदय अन्य कोई अभीप्सा नहीं रखता।’ ‘मैंने प्रसन्न होकर उसे अपना अविनाशी वाहन और परम गण घोषित कर दिया।’ पार्वती, ‘किंतु वाहन ही क्यों, महादेव? कोई अन्य भूमिका क्यों नहीं?’ महादेव, ‘देवी! वाहन का समर्पण अद्वितीय होता है। नंदी का मन इतना समर्पित है कि मैं सदा उस पर आरूढ़ रहता हूं। उसकी अपनी कोई इच्छा, कोई मति, कोई आकांक्षा नहीं। नंदी मेरी इच्छा, मेरी आज्ञा, मेरे आदर्शों का वाहक बन गया है। इसलिए वह मेरा वाहन है।’

पार्वती, ‘सत्य है प्रभु! नंदी की भक्ति-साधना और समर्पण तो अनुपम है। अब उसके सेवा या कर्म-शौर्य की भी तो विशेषता बताइए।’

महादेव, ‘तुम्हें स्मरण है देवी, समुद्र-मंथन की वह असाधारण घटना! समुद्र को मथते-मथते अमृत से पहले निकला हलाहल विष! संसार के त्राण के लिए मुझे उसका पान करना पड़ा। परंतु विषपान करते हुए विष की कुछ बूंदें धरा पर गिर गईं। इन बूंदों के कुप्रभाव से पृथ्वी त्राहि-त्राहि करने लगी थी। पर तभी मेरे नंदी ने अपनी जिह्वा से उन विष-बिंदुओं को चाट लिया।’ देवों ने व्यग्र होकर कारण पूछा। नंदी ने कहा, ‘मेरे स्वामी ने प्यालाभर विष पान किया। क्या मैं सेवक होकर कुछ बूंदें ग्रहण नहीं कर सकता?’ सो, ऐसा है नंदी का कर्म-शौर्य! (‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ से साभार)

(‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ से साभार)

अगला लेखऐप पर पढ़ें