सूर्यरथ खरों ने खींचा तब नाम हुआ ‘खर’ मास, क्या है खर मास और मल मास में अंतर है, 13 अप्रैल तक रहेगा खरमास
- Kharmas: 14 मार्च से सूर्य के मीन राशि में आने पर खर मास आरंभ हो गया है, जो 13 अप्रैल तक रहेगा। इस अवधि में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है।

14 मार्च से सूर्य के मीन राशि में आने पर खर मास आरंभ हो गया है, जो 13 अप्रैल तक रहेगा। इस अवधि में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठ कर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। इस परिक्रमा के दौरान सूर्य का रथ एक क्षण के लिए भी नहीं रुका। लेकिन निरंतर चलने और सूर्य की गरमी से घोड़े प्यास तथा थकान से व्याकुल होने लगे। घोड़ों की दयनीय दशा देखकर सूर्य देव ने उन्हें विश्राम देने और उनकी प्यास बुझाने के उद्देश्य से रथ रुकवाने का विचार किया। लेकिन उन्हें अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हो आया कि वे अपनी इस अनवरत चलने वाली यात्रा में कभी विश्राम नहीं लेंगे। यह विचार करते हुए सूर्य देव का रथ आगे बढ़ रहा था। कुछ दूर चलने पर सूर्य को एक तालाब के पास दो खर (गधे) दिखाई दिए। उनके मन में विचार आया कि जब तक उनके रथ के घोड़े पानी पीकर विश्राम करते हैं, तब तक इन दोनों खरों को रथ में जोतकर आगे की यात्रा जारी रखी जाए। ऐसा विचार कर सूर्य ने अपने सारथि अरुण को उन दोनों खरों को घोड़ों के स्थान पर जोतने की आज्ञा दी। सूर्य के आदेश पर उनके सारथि ने खरों को रथ में जोत दिया। खर अपनी मंद गति से सूर्य के रथ को लेकर परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ने लगे। मंद गति से रथ चलने के कारण सूर्य का तेज भी मंद होने लगा। सूर्य के रथ को इन खरों द्वारा खींचने के कारण ही इसे ‘खर’ मास कहा गया। खर मास साल में दो बार आता है। एक, जब सूर्य धनु राशि में होता है। दूसरा, जब सूर्य मीन राशि में आता है। इस दौरान सूर्य का पूरा प्रभाव यानी तेज पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध पर नहीं पड़ता। सूर्य की इस कमजोर स्थिति के कारण ही पृथ्वी पर इस दौरान गृह-प्रवेश, नया घर बनाने, नया वाहन, मुंडन, विवाह आदि मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। किसी नए कार्य को शुरू नहीं किया जाता। लेकिन इस मास में सूर्य और बृहस्पति की आराधना विशेष फलदायी होती है। गरुड़ पुराण के अनुसार खर मास में प्राण त्यागने पर सद्गति नहीं मिलती। इसलिए महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपने प्राण खर मास में नहीं त्यागे थे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था।
‘खर’ मास और ‘मल’ मास में अंतर होता है। सूर्य के धनु और मीन राशि में आने पर खर मास होता है। यह साल में दो बार आता है। जबकि मल मास तीन साल में एक बार आता है। इसे ‘अधिक’ मास और ‘पुरुषोत्तम’ मास भी कहा जाता है। असुर हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसकी मृत्यु बारह मासों में से किसी भी मास मेें नहीं होगी। इसलिए भगवान विष्णु ने उसका वध करने के लिए ‘मल’ मास की रचना की।
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