वीआरएस कर्मी भी अनुबंध पर नौकरी का हकदार : हाईकोर्ट
उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले कर्मचारी भी सरकारी विभाग में पुन रोजगार योजना के तहत अनुबंध पर काम पाने के योग्य हैं। न्यायालय ने कहा है क
उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले कर्मचारी भी सरकारी विभाग में पुन रोजगार योजना के तहत अनुबंध पर काम पाने के योग्य हैं। न्यायालय ने कहा है कि वीआरएस लेने वाले कर्मचारी भी सेवानिवृत्त कर्मचारियों के समान हैं।
जस्टिस वी. कामेश्वर राव और अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त होने वाले दो कर्मचारियों की याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया है। केंद्रीय संचार मंत्रालय की ओर से जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसके तहत केंद्र व राज्य सरकार के विभागों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले कर्मियों/अधिकारियों को पुन रोजगार योजना के तहत अनुंबध पर दोबारा नौकरी पाने से वंचित कर दिया था। पीठ ने कहा है कि ‘हमारा विचार है कि वीआरएस योजना-2019 को अंतिम रूप देने और स्वीकार किए जाने के बाद सक्षम प्राधिकार द्वारा जारी कोई भी दिशा निर्देश/ अधिसूचना बीएसएनएल वीआरएस-2019 को चुनने वाले कर्मचारियों के पुनरोजगार पाने अधिकातर को प्रतिबंधि नहीं करता है। उच्च न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ वीआरएस 2019 योजना के तहत सेवानिवृत्त होने वाले बीएसएनएल के दो अधिकारियों की अपील को स्वीकार कर लिया। न्यायाधिकरण ने दोनों पूर्व कर्मियों की याचिका को खारिज करते हुए वीआरएस कर्मियों को दोबारा से अनुबंध पर नौकरी पाने के अधिकार को प्रतिबंधित किए जाने के लिए जारी अधिसूचना को सही ठहाराया था। उच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायाधिकरण मामले में कानूनी पहलुओं को उचित परिप्रेक्ष्य में विचार करने में विफल रहा है।
संचार मंत्रालय के आदेश का हवाला दिया था
बीएसएनएल से 2019 में वीआरएस लेने वाले अश्वनी पांडेय व अन्य ने हरियाणा एलएसए जोन में अनुबंध पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। उनका चयन भी हो गया, लेकिन बाद में संचार मंत्रालय से मिले निर्देश के बाद याचिकाकर्ताओं के अनुबंध को यह कहते हुए खत्म कर दिया गया, वीआरएस लेने वाले कर्मी दोबारा से नियुक्त नहीं हो सकते। इसके लिए संचार मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय आदेश का हवाला दिया गया। अनुबंध पर नौकरी से हटाए जाने के बाद पांडेय व अन्य ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में चुनौती दी।
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