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Som Pradosh Vrat 2022: साल के आखिरी सोम प्रदोष व्रत का बढ़ रहा कई गुना महत्व, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व व कथा

Pradosh Vrat December 2022: प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। जानें सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 5 Dec 2022 08:21 AM
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Som Pradosh Vrat 2022 Katha and Shubh Muhurat: प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। पहला कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। इस बार मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 5 दिसंबर 2022, सोमवार को पड़ रही है। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे सोम प्रदष व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भी भगवान शंकर को समर्पित माना गया है। ऐसे में साल के आखिरी सोम प्रदोष व्रत का महत्व और बढ़ रहा है। प्रदोष व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की विधिवत पूजा का विधान है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व व कथा-

सोम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त 2022-

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 05 दिसंबर को सुबह 05 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होगी और 06 दिसंबर को सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 05 दिसंबर को शाम 05 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 15 मिनट तक है।

प्रदोष व्रत का महत्व-

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। 
सोम प्रदोष व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को करने से संतान पक्ष को लाभ होता है।

प्रदोष व्रत पूजा- विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
अगर संभव है तो व्रत करें।
भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। 
भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान शिव की आरती करें। 
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

सोम प्रदोष व्रत कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी।

एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।

(इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

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