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पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से कृतज्ञता प्रकट करने के दिन

पितृ पक्ष निकट आ रहा है। हमारे मन में कई बार यह प्रश्न उठता है कि श्राद्ध क्यों किया जाता है? किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद किया जाने वाला श्राद्ध दिवंगत आत्मा की किस प्रकार सहायता करता है?

Anuradha Pandey श्री श्री रविशंकर, नई दिल्लीWed, 27 Sep 2023 12:07 AM
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पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से कृतज्ञता प्रकट करने के दिनश्राद्ध हमारे पूर्वजों की याद में अच्छे कर्म करने का माध्यम हैं। यह केवल एक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि पूरी श्रद्धा के साथ अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के दिन हैं। भले ही हमारे पितृ भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन सूक्ष्म रूप में वे न केवल हमारे साथ हैं, बल्कि उनका आशीर्वाद भी हमारे साथ है

वास्तव में श्राद्ध हम अपने मन की शांति के लिए करते हैं। श्राद्ध केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि पूरी श्रद्धा के साथ किया जाने वाला एक ऐसा कार्य है, जिसके द्वारा हम अपने जीवन में परिवार के मृत सदस्यों के योगदान को पहचानते हैं, स्वीकार करते हैं और उन्हें याद करते हुए कृतज्ञता की भावना व्यक्त करते हैं। ऐसा करने पर निश्चित रूप से कुछ ऐसे कंपन उत्पन्न होते हैं, जो इस भौतिक संसार के दायरे से परे चले जाते हैं, और इस अर्थ में दिवंगत आत्मा तक पहुंचते हैं। यदि आप कृतज्ञता और श्रद्धा की भावना महसूस किए बिना केवल अनुष्ठान करते हैं तो उसका कोई अर्थ नहीं है।

श्राद्ध हमारे उन पूर्वजों की याद में अच्छे कर्म करने का एक माध्यम है, जो अस्तित्व के इस भौतिक स्तर को पार कर चुके हैं। यह जीवित लोगों को यह स्मरण कराता है कि सब कुछ अनित्य है।

हमारे प्राचीन ग्रंथ कहते हैं, ‘यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे,’ जिसका अर्थ है— ‘जो शरीर (पिंड) या व्यष्टि में है वह ब्रह्मांड अथवा समष्टि में भी मौजूद है।’ कोई आत्मा अपने सांसारिक जगत से निकलती है, तो वह सार्वभौमिक चेतना में विलीन हो जाती है। जो एक निराकार और अगोचर क्षेत्र है। यह टेलीविजन के विभिन्न चैनलों में ट्यूनिंग के कार्य के समान है; हम एक चैनल से संपर्क बनाते हैं, लेकिन उसी स्थान पर अन्य चैनलों की तरंगें भी मौजूद होती हैं, जिन्हें हम आवृत्ति बदलने पर प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार, हम अपने दिवंगत प्रियजनों की आत्मा की उपस्थिति को तब महसूस कर सकते हैं, जब हम उन्हें श्रद्धा और विश्वास के साथ याद करते हैं।

इन पवित्र अनुष्ठानों को करने की जिम्मेदारी आमतौर पर परिवार के निकटतम सदस्यों, विशेष रूप से बड़े पुत्र या पुत्री पर आती है। ये अनुष्ठान उस विशिष्ट तिथि पर मनाए जाते हैं, जब दिवंगत आत्मा ने अपना नश्वर शरीर छोड़ा था। इन्हें 15 दिनों की विशिष्ट अवधि के दौरान जिसे पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है, जो महा नवरात्रि से ठीक पहले होता है, किया जाता है। इस पक्ष के दौरान हम जरूरतमंदों को खाना खिलाते हैं और दिवंगत लोगों की याद में दान के कार्यों में संलग्न होते हैं। ऐसा करने से हम न केवल अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं, बल्कि उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं।

गरुड़ पुराण हमें उन घटनाओं के बारे में बताता है, जो आत्मा के शरीर छोड़ने के बाद घटित होती हैं। इसमें कहा गया है कि इस संसार को छोड़ने के बाद आत्मा ‘प्रेत योनि’ में रहती है। अब जब आत्मा ने शरीर त्याग दिया है तो वह वापस लौटना नहीं चाहती। भौतिक शरीर एक त्यागे हुए खोल की तरह महसूस होता है। मृत्यु द्वारा लाया गया यह परिवर्तन इतना प्रभावशाली है और आत्मा को दूसरे लोक में रहने की आदत भी नहीं है, इसलिए वह भ्रमित रहती है। यह मध्य की स्थिति में है; इस अवस्था में ज्ञान सहायता करता है। जब कोई चला जाता है, तो पंडित मंत्रों का जाप करते हैं, जो आत्मा को याद दिलाते हैं कि आप शरीर, मन या बुद्धि नहीं हैं, इसलिए शरीर को पृथ्वी तत्व में, अग्नि को अग्नि तत्व में और वायु को वायु तत्व में विलीन कर दें। हम शरीर को प्रकृति के साथ एक कर देते हैं। आत्मा, जो अब तक सोचती थी, ‘मैं यह शरीर हूं’, धीरे-धीरे जागरूक हो जाती है। ‘अगर मैं यह नहीं हूं तो क्या हूं? मैं कौन हूं?’ यहां ज्ञान में संलग्न होने से उन लोगों को भारी राहत मिलती है जो पार जा चुके हैं।

कहा जाता है आत्मा गाय की पूंछ पकड़कर वैतरिणी नदी पार कर जाती है। यहां गाय का अर्थ ज्ञान, गति और मुक्ति भी है। ज्ञान की पूंछ पकड़कर अर्थात थोड़े से ज्ञान को प्राप्त करने से भी आत्मा नदी पार कर सकती है। इस मध्य अवस्था से आत्मा को ‘पितृ लोक’ में जाने के लिए कहा जाता है। हम दिवंगत आत्मा को पूर्वजों, पैतृक वंश के लोगों से मिलने के बारे में बताते हैं कि वे किस प्रकार उससे मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

कहा जाता है कि पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूपों में जीवन की अलग-अलग इकाइयां होती हैं। पत्थरों में एक इकाई होती है। पानी में दो इकाइयां होती हैं। अग्नि में तीन इकाइयां होती हैं। पेड़ों में छह इकाइयां होती हैं और मनुष्य में जीवन की आठ इकाइयां मानी जाती हैं, जिन्हें ‘अष्टवसु’ कहा जाता है। जो लोग असाधारण कार्य करते हैं, चाहे वे अच्छे हों या बुरे, उनके पास जीवन की नौ इकाइयां होती हैं। मनुष्य में जीवन की सोलह इकाइयों तक विकसित होने की क्षमता है। जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो वह अधिक शक्ति की स्थिति में पहुंच जाता है, जीवन की नौ से दस इकाइयों के मध्य। उसकी आत्मा स्वतंत्र हो जाती है और उसे कोई रोक नहीं सकता। यही कारण है कि हम अपने पूर्वजों का आदर और सम्मान करते हैं। उनमें हम जीवित लोगों की तुलना में अधिक जीवन और चेतना है। उनमें हमें आशीर्वाद और कुछ वरदान देने की क्षमता है।

दिवंगत आत्माओं को याद करने की प्रथा किसी एक संस्कृति तक सीमित नहीं है। दुनियाभर में, विभिन्न परंपराओं और समुदायों के पास दिवंगत लोगों को याद करने के अपने-अपने अनूठे तरीके हैं। सिंगापुर में, यह एक उत्सव का अवसर बन जाता है। यहां तक कि एक सार्वजनिक अवकाश भी इसके दौरान होता है। यहां ऐसा विश्वास है कि पूर्वजों को दी गई भेंट आशीर्वाद के रूप में वापस आती है।

दिवंगतों को याद करने की प्रथा, चाहे वह श्राद्ध, पितृ पक्ष या अन्य सांस्कृतिक परंपराओं के माध्यम से हो, हमारी आध्यात्मिक यात्रा में गहरा स्थान रखती है। यह हमारे पूर्वजों का सम्मान करने, उन लोगों से जुड़ने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक उपाय है। यह पवित्र परंपरा हमें अपनी जड़ों से जोड़ती रहे और हमें जीवन की नश्वरता की याद दिलाती रहे, जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति की ओर हमारा मार्गदर्शन करती रहे।

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