Hindi Newsधर्म न्यूज़shani vakri horoscope rashifal sade sati and dhaiya upay hanuman chalisa ke fayde

3 नवंबर तक शनि की उल्टी चाल से ये 5 राशि वाले रहेंगे प्रभावित, देखें क्या आपको भी रहना होगा सावधान

shani vakri horoscope rashifal : ज्योतिषशास्त्र में शनिदेव को विशेष स्थान प्राप्त है। शनिदेव के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। इस समय शनिदेव कुंभ राशि में वक्री अवस्था में चल रहे हैं।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 11 Sep 2023 01:15 AM
share Share

ज्योतिषशास्त्र में शनिदेव को विशेष स्थान प्राप्त है। शनिदेव के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। इस समय शनिदेव कुंभ राशि में वक्री अवस्था में चल रहे हैं। 3 नवंबर तक शनिदेव वक्री अवस्था में ही रहेंगे। शनि के वक्री अवस्था में रहने से साढ़ेसाती और ढैय्या वालों को अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। आइए जानते हैं, 3 नवंबर तक किन राशि वालों को अपना विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है-

3 नवंबर तक कर्क, वृश्चिक, मकर, कुंभ, मीन राशि वालों को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। इस समय मकर, कुंभ, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए रोजाना श्री हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।

शनि देव ने हनुमान जी को दिया था वचन

  • धार्मिक कथाओं के अनुसार शनि देव को रावण ने लंका में बंधी बना रखा था। हनुमान जी ने ही शनि देव को रावण के बंधन से मुक्त करवाया था। तब शनि देव ने हनुमान जी को ये वचन दिया था कि मेरा अशुभ प्रभाव आपके भक्तों पर कभी भी नहीं पड़ेगा।

हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए व्यक्ति को नित्य नियम से रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और भगवान श्री राम का नाम जपना चाहिए। जो व्यक्ति रोजाना नियम से हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे जीवन में समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और मृत्यु के पश्चात बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है।

श्री हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 

चौपाई :

 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

 

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

 

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

 

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

कांधे मूंज जनेऊ साजै।

 

संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

 

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

 

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे।।

 

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

 

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

 

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

 

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

 

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

 

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।।

 

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।

 

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

 

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

 

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

 

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।

 

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

 

चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

 

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

 

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

 

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

 

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

 

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

 

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

 

जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

 

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

 

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 

 

दोहा :

 

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

अगला लेखऐप पर पढ़ें