Shani Pradosh Vrat: शनि प्रदोष व्रत रखने से क्या लाभ होते हैं?
Shani Pradosh Benefits: शुद्ध श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि 15 जुलाई 2023 दिन शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है। शनि प्रदोष व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत करने से तथा शनिदेव
Shani Pradosh Benefits: शुद्ध श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि 15 जुलाई 2023 दिन शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है। शनि प्रदोष व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत करने से तथा शनिदेव के साथ-साथ भगवान शिव की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है । इस वर्ष ग्रहों की भी बहुत सुंदर युति बनी हुई है क्योंकि शनिदेव अपनी राशि कुंभ में स्वराशि के होकर गोचरीय संचरण कर रहे हैं। ऐसे में शनि की विशेष उपासना करने से शनिदेव से संबंधित सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव से मुक्ति के साथ-साथ शुभताओ में वृद्धि होगी। इस वर्ष त्रयोदशी तिथि 15 जुलाई दिन शनिवार को रात में 8:20 तक है। तदुपरांत चतुर्दशी तिथि लग जाएगी । त्रयोदशी तिथि पर मृगशिरा नक्षत्र, वृद्धि योग तथा शनि रिक्ता समायोग नामक सिद्धि योग है। चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में विद्यमान हो करके सुविधाओं में वृद्धि करने वाले हैं।
*शास्त्रों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है।
*मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
नौकरी की प्राप्ति तथा पदोन्नति की स्थिति बनती है।व्यापार में वृद्धि का योग बनता है।
*अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
*जन्म कुंडली मे चंद्रमा से संबंधित सभी प्रकार का दोष दूर होता है।
* मानसिक बेचैनी खत्म होता है।
*दरिद्रता का नाश होता है।
* शनि की शुभ कृपा प्राप्ति से साढ़ेसाती , ढैया आदि के नकारात्मक प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
लंबी आयु की प्राप्ति होती है तथा भगवान शिव माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होता है।
शास्त्रों की माने तो प्रदोष व्रत के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कथा है। एक बार चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था । अत्यंत पीड़ा के कारण स्थिति उत्पन्न हो रहा था, तब चंद्रमा द्वारा भगवान शिव की उपासना पूर्ण विधि विधान के साथ किया गया । चंद्रमा की उपासना से भगवान शिव प्रसन्न हुए तथा उनके क्षय रोग की पीड़ा को अर्थात चंद्रमा के दोष को उन्होंने दूर कर दिया। जिस दिन भगवान शिव ने चंद्रमा का यह दोष दूर किया था। वह दिन त्रयोदशी था। इसी कारण त्रयोदशी तिथि को प्रदोष कहा जाता है। दोष को दूर करने के कारण ही इस तिथि का नाम प्रदोष पड़ा । वर्ष में सामान्यतः 24 प्रदोष व्रत होता है। परंतु मलमास की स्थिति में 26 प्रदोष व्रत हो जाता है। इस वर्ष स्थिति यही बनी हुई है , क्योंकि श्रावण मास का मलमास लगा हुआ है। अतः दो प्रदोष व्रत बढ़ जाएगा।
त्रयोदशी तिथि अर्थात प्रदोष के दिन सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व तथा सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक विशेष रूप से पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन भगवान शिव माता पार्वती नंदीश्वर भगवान सहित शनि देव की उपासना करने का विधान बताया गया है। प्रति दिन गोधुल अर्थात प्रदोष काल भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी के मिलन की अवधि होता है। इस कारण से इस अवधि में पूजा आराधना करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है । इस समय स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल की साफ सफाई करके पूजा स्थल में विद्यमान सभी देवताओं को शुद्ध जल से स्नान कराने के बाद उपलब्ध सामग्री से पूजन करने के बाद सबका ध्यान करना चाहिए। फिर पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ व्रत तथा पूजन का संकल्प लेना चाहिए। सबका ध्यान करने के बाद भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए फिर शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए । फिर दूध, दही, पंचामृत, घी, चीनी, शहद, चंदन, सुगंधित द्रव्य, भांग एवं भस्म से विधि पूर्वक स्नान कराने के बाद वस्त्र, यज्ञोपवीत भगवान शिव को अर्पित करने के बाद भगवान शिव को अक्षत, चंदन, रोली ,अबीर, गुलाल, अभ्रक, भस्म, भांग, बेलपत्र, धतूरा, शमी पत्र के साथ-साथ भोग के लिए मौसमी फल, मिष्ठान, पान , सुपारी, इलायची भगवान शिव को अवश्य अर्पित करना चाहिए। उसके बाद प्रदोष व्रत का कथा श्रवण करने के उपरांत प्रसाद ग्रहण करते हुए पूजन का समापन करना चाहिए।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।