Shani pradosh vrat katha 2023:कल इस समय करें शनि प्रदोष की पूजा और पढ़ें यह शनि प्रदोष व्रत कथा
कल शनिवार एक जुलाई को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यह वो दिन है जब भक्त व्रत रखकर एक साथ भगवान शिव और शिव जी दोनों को प्रसन्न कर सकते हैं। जैसा कि प्रदोष व्रत के बारे में कहा जाता है इसकी पूजा प्रदोष का
कल शनिवार एक जुलाई को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यह वो दिन है जब भक्त व्रत रखकर एक साथ भगवान शिव और शिव जी दोनों को प्रसन्न कर सकते हैं। जैसा कि प्रदोष व्रत के बारे में कहा जाता है इसकी पूजा प्रदोष काल में शाम के समय करनी चाहिए। शाम को 4.30 बजे से शाम 6.30 तक भगवान शिव और शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। आपको पता ही होगा कि प्रदोष व्रत हर साल त्रयोदशी के दिन होता है, लेकिन अगर यह शनिवार को पड़े तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। कल त्रयोदशी तिथि 30 जून और 1 जुलाई के बीच 1 बजे शुरू होगी और 1 जुलाई को रात 11 बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार 1 जुलाई को ही प्रदोष व्रत रखा जाना चाहिए। इस दिन शनि की साढ़ेसाती और ढैया वालों को भी शनि को प्रसन्न करने के उपाय करने चाहिए, खासकर पीपल पर दीपक जलाना चाहिए और शनि के दिन छाया दान करना चाहिए। संतान पाने के लिए यह व्रत खास तौर पर रखा जाता है। यहां पढ़ें शनि प्रदोष व्रत की कथा-
प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना।
एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।
अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।
तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।
ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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