Hindi Newsधर्म न्यूज़one vrat and Shiva and Shani dev will be happy Shani dosh also end padhein Shani Pradosh Vrat Katha

Shani Pradosh Vrat Katha: एक व्रत और शिवजी सहित दो देव होंगे प्रसन्न, प्रदोष काल में कथा भी पढ़िए

आज है शनि प्रदोष व्रत और सावन की शिवरात्रि। एक व्रत और दो देव प्रसन्न। इस दिन व्रत से भोलेनाथ की कृपा तो मिलेगी ही , साथ ही शनिदेव को दोष भी कहते हैं अगर शिवजी प्रसनन् हो तो शनिदेव भी शांत हो जाएंगे

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 15 July 2023 12:17 PM
share Share

आज है शनि प्रदोष व्रत और सावन की शिवरात्रि। एक व्रत और दो देव प्रसन्न। इस दिन व्रत से भोलेनाथ की कृपा तो मिलेगी ही, अगर शिवजी प्रसनन् हो तो शनिदेव भी शांत हो जाएंगे। कई दोषों के निवारण के लिए उत्तम दिन है शनि प्रदोष का दिन। इसलिए इस दिन आपके थोड़े से उपाय आपको दो देवताओं को प्रसन्न करने का मौका दे रहे हैं। इनमें सावन के महीने में भोले बाबा प्रमुख है, इसके बाद उनके शिष्य यानी सभी के कर्मों का हिसाब करने वाले शनिदेव हैं। इन दोनों का प्रदोष काल में पूजन और उपाय आपको कई दोषों से राहत दिला सकते हैं। पूजा के लिए शाम को प्रदोष काल सबसे उत्तम है।

व्रत सुबह से शुरू हो जाता है और शाम को फिर से स्नान करके प्रदोष काल में में लाल चंदन और लाल फूल से पूजन शिव जी का पूजन करें। उनके मंत्रों से एक माला का जाप करें। शिवजी को जल और दूध से अभिषेक कराएं। इसके बाद शनि दोष वालों को इस दिन पीपल का पौधा लगाना चाहिए और उसकी सेवा करनी चाहिए। इस दिन व्रत करें और किसी गरीब को खाना खिलाकर ही खुद खाना खाएं।  शनि ढैया और साढ़ेसाती वाले  शनि के मंत्र का जाप करते हुए हवन करें। अपने बुरे कार्यों के लिए उनसे क्षमा मांगे। शाम के समय शनि प्रदोष की कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाएगा।

यहां पढ़ें शनि प्रदोष व्रत की कथा-

प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना। 

एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।

अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्‍नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।

तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्‍नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें