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Hindi Newsधर्म न्यूज़Navratri is the night of worship and rituals

आराधना और अनुष्ठान की रात्रि है नवरात्र

शक्ति के मिलन से ही शव हो जाने वाली देह शिव हो जाती है। शक्ति के बिना सांसारिक जीवन में गति नहीं है तो फिर आध्यात्मिक जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।

Saumya Tiwari आनंद मूर्ति गुरुमां, नई दिल्लीTue, 17 Oct 2023 08:04 AM
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नौ दिनों की आराधना और अनुष्ठान-विधि को ‘नवरात्र’ के नाम से जाना जाता है। यह सर्वमान्य है कि जिन्हें दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, बगलामुखी आदि नामों से जाना जाता है, वह एक ही शक्ति के बदले हुए स्वरूप हैं। सारे ब्रह्मांड में व्याप्त यह चैतन्य शक्ति हर मनुष्य के भीतर कुंडलिनी के रूप में मौजूद है। कुंडलिनी शक्ति मूलाधार चक्र में सुप्त है। मूलाधार आदि सात चक्र मनुष्य के स्थूल शरीर में नहीं, अपितु सूक्ष्म शरीर में स्थित हैं। मूलाधार चक्र में उलटे त्रिकोण के रक्त वर्ण स्वरूप में स्थित यह आदिशक्ति कुंडलिनी जब तक प्रसुप्त रहती है, तब तक मनुष्य का जीवन उन्नत नहीं हो पाता। योग विशेषकर राजयोग और चक्रानुसंधान-योग इस सुप्त शक्ति को जाग्रत करने के लिए विभिन्न प्रकार की साधनाओं को इंगित करते हैं।

तंत्र के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शक्ति हर मानव शरीर में कुंडलिनी के रूप से मूलाधार चक्र में विराजमान है। प्राय यह शक्ति मूलाधार में सुप्त ही रह जाती है और मनुष्य की चेतना निम्न तलों पर रहते हुए ही नष्ट हो जाती है। चूंकि शिव सातवें सहस्रार चक्र में स्थित हैं, तो जब तक इन शिव और शक्ति का मिलाप नहीं हो जाता, तब तक मनुष्य का जीवन पूर्ण रूप से उन्नत और परिपक्व नहीं हो पाता। कुंडलिनी शक्ति का जागरण मनुष्य के जीवन में एक ऐसे रूपांतरण को ले आता है, जिससे शव हो जाने वाली देह शिव रूप हो जाती है।

शक्ति तो प्रकृति के कण-कण में मौजूद है। विवेक भी एक शक्ति है। विद्या भी एक शक्ति है, ललित कलाएं भी शक्ति हैं। अर्थ का ज्ञान-विज्ञान भी एक शक्ति है। भोजन को पकाना भी एक शक्ति है। किसी भी कला में कुशलता एक शक्ति है। समाज, परिवार और देश को एक सूत्र में बांधना भी एक शक्ति है। बिना शक्ति के जब इनसान का सांसारिक जीवन भी अपूर्ण है, तो आध्यात्मिक जीवन कैसे पूर्ण हो सकता है? यह बात स्मरण में रहनी चाहिए कि जब तक मनुष्य के भीतर इस पराशक्ति का जागरण नहीं होता है, तब तक मनुष्य का जीवन एक पशु की भांति आहार, निद्रा, भय और भोग का सेवन करने और पदार्थों का संग्रह करने में ही व्यर्थ हो जाता है। इसी शक्ति के जागरण हेतु हमारे ऋषियों ने यह नवरात्र का नौ दिवस का साधना अनुष्ठान दिया है, ताकि प्रथम दिवस से लेकर नवमी तक उपवास और साधना का सात्त्विक जीवन जीने का अवसर भक्त को मिले।

आजकल नवरात्र का अर्थ बहुत रूढ़िवादी व परंपरवादी हो गया है। नौ दिनों तक दुर्गा के मंदिर में पूजा करना, शाकाहारी रहना, तामसी चीजों से परहेज, इतना भर कर लेने से नवरात्र का अनुष्ठान पूरा नहीं होता है। योगासन, प्राणायाम, षट्कर्म, धारणा, इन चारों को आधार बनाकर विशेषत कुंडलिनी का जागरण करना, यही है नवरात्र के अनुष्ठान का सांकेतिक रहस्य। बहुत-से लोग दुर्गा पूजा का अर्थ सिर्फ इतना ही मानते हैं कि स्थूल रूप से बनी दुर्गा की मूर्ति अथवा चित्र के सामने फल-फूल चढ़ा देना। प्राय समाज का बहुत बड़ा वर्ग इसी को दुर्गा पूजा मानता है। मात्र इंद्रिय सुख, शारीरिक सुख और भौतिक सुख ही अगर आपके जीवन का लक्ष्य है, तो आपने अभी दुर्गा के उस वास्तविक स्वरूप को जाना नहीं है, क्योंकि दुर्गा का वास्तविक स्वरूप है ज्ञान। जिस अंतकरण में यह ज्ञान स्थिर हो जाता है, उसी अंतकरण में एक दिन महासंबोधि घटित हो ही जाती है। जिस अंतकरण में महासंबोधि घटित हो चुकी है, उस व्यक्ति के लिए फिर यह समस्त जगत उसी ऊर्जा का ही संघटित रूप है। पदार्थ और पदार्थ का सूक्ष्म रूप है ऊर्जा। हम ऊर्जा के इसी दिव्य परा-स्वरूप को शक्ति कहते हैं।

भारत में शक्ति के हजारों चिह्न और धारणाएं मानी जाती हैं। ‘दुर्गा’ के रूप में वह सभी संकटों का निवारण करती है। ‘काली’ के रूप में वह काल और अहंकार को मारती है। ‘सरस्वती’ के रूप में वह ज्ञान-विज्ञान की दात्री है। ‘लक्ष्मी’ के स्वरूप में वही देवी धन-संपदा और समृद्धि का वरदान देती है। ‘तारा’ के स्वरूप में वह जीवन में ज्ञान की दिशा दिखाती है और ‘जगदंबा’ के स्वरूप में समस्त सृष्टि की जननी और माता कहलाई जाती है। देवी के इन सभी स्वरूपों की उपासना में दया, क्षमा, करुणा, वीरता इत्यादि महिमापूर्ण शक्तियों का आह्वान और जागरण किया जाता है।

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